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क्या अनिल पाल्टा की लॉटरी खुलेगी ?

प्रशासनिक हलकों में अब दूसरी चर्चा भी आम होने लगी


  • कोलकाता या कोयला या दोनों ही

  • थानेदार भी ऐसे नहीं बदले जाते

  • केंद्र अपने गाइडलाइन से फैसले लेगा

राष्ट्रीय खबर


 

रांचीः डीजीपी बदलने का फैसला अब तक अपने अंतिम मुकाम तक नहीं पहुंचा है। इसी वजह से झारखंड की ब्यूरोक्रेसी में दूसरे किस्म की चर्चाएं भी चल रही है।

इसकी खास वजह सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला है, जिसका उल्लंघन झारखंड सरकार ने किया है और इस तरीके से हेमंत सरकार अवमानना के मामले में फंस सकती है।

झारखंड के अनेक अधिकारी इस वक्त तेल देखो और तेल की धार देखो की फार्मूले पर चल रहा है।

इसी वजह से यह बात सामने आ रही है कि क्या अदालती पेंच फंसने की वजह से मजबूरी में हेमंत सरकार को अनिल पाल्टा को डीजीपी बनाना पड़ेगा।

जानकार मानते हैं कि अनिल पाल्टा दूसरे मिजाज के अफसर है। इसलिए सरकार के लिए उन्हें मैनेज करना आसान नहीं होगा।

वरीयताक्रम में वह हटाये गये डीजीपी अजय सिंह से  नीचे और नये प्रभारी डीजीपी अनुराग गुप्ता से ऊपर है। वर्तमान में वह होमगार्ड और फायर सर्विस के डीजी है।

वैसे पुलिस विभाग में यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि जिस तरीके से डीजीपी को हटाया गया, उसमे कोलकाता का लिंक साफ साफ जुड़ रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि कोयला कारोबार से जुड़े कुछ हैवीवेट भी इसमें शामिल हो सकते हैं, जिनके पहले से ही सरकार के भीतर पैठ रही है।

यह सोच रखने वाले मानते हैं कि अचानक ही कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी वजह से सरकार ने रातोंरात ऐसा फैसला लिया,  जिसकी दिल्ली से पुष्टि होने की बहुत कम संभावना है।

साथ ही लोग यह भी मानते हैं कि इस तरीके से जो थाना प्रभारी तक को नहीं बदला जाता जब तक कि कोई बड़ी घटना ना घटे। लिहाजा इसके पीछे के पेंच को समझने में कई लोग जुटे हैं।

दूसरी तरफ लोगों का आकलन है कि अनुराग गुप्ता के खिलाफ हाईकोर्ट में चल रहे तीन मामलों का फैसला भी बहुत कुछ बदल सकता है।

कानून के जानकार मानते हैं कि जिन मामलों में कनीय पुलिस अधिकारियों ने अपने ही वरीय अधिकारी को क्लीन चिट दी है, वह अदालत में स्वीकार्य होगा, इसकी बहुत कम संभावना है।

 

शीघ्र ही उच्च न्यायालय में इन मामलों की सुनवाई भी होने वाली है। इसी वजह से यह भी आकलन है कि अगर अदालत ने किसी दूसरे एजेंसी से मामलों की जांच का आदेश निर्गत कर दिया तो आगे फिर से हेमंत सरकार के लिए आगे कुआं और पीछे खाई जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर अपने पक्ष में फैसला हासिल करने वाले हेमंत सोरेन दोबारा सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला कितना झेल पायेंगे, इस पर भी संदेह है। मजेदार बात यह है कि अवमानना का यह मामला खुद वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सुना था और फैसला दिया था।

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