सिर्फ सरकार और एजेंसी छोड़ पूरी जनता को पता है सच
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दो नाम जानते हैं पुलिस अधिकारी
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चुनाव से पहले दुकानदारी तेज हुई
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नीचे के लोग जानकर भी चुप है
राष्ट्रीय खबर
रांचीः मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विधि व्यवस्था को मजबूत बनाने की बात कह रहे हैं तो पुलिस विभाग के अंदर दूसरा ही खेल चल रहा है। सिपाही से करोड़पति बिल्डर बने व्यक्ति ने अब बड़ी चालाकी से अपने बदले कई लोगों को इस वसूली के काम में लगा दिया है। विभागीय लेनदेन की जानकारी रखने वाले सूत्र के मुताबिक अब कोई पैसा सीधे किसी अधिकारी तक नहीं पहुंचता।
सिपाही के एजेंट संबंधित जिलों का दौरा कर वहां से पैसे की वसूली करते हैं और इसे बाद संबंधित अधिकारी तक पहुंचाते हैं। मामले की सच्चाई जानने के क्रम में कोयलांचल से प्रशांत प्रधान नाम के एक व्यक्ति का नाम सामने आया है।
कोयलांचल के पुलिस अधिकारियों को पता है कि हजारीबाग का यह व्यक्ति दरअसल किसके इशारे पर काम करता है जबकि अब पहली बार यह खुलासा हुआ है कि नाम किसी दूसरे अफसर का बिकता है और असली वसूली किसी दूसरे अफसर के लिए हो रही है।
पुलिस महकमा में कई लोग ऐसे पहचाने जा रहे हैं जो दरअसल दो नावों की सवारी कर रहे हैं।
उनकी सोच है कि अगर हेमंत सोरेन की दोबारा सरकार बनती है तो उनके गुड बुक में रहा जाए और अगर भाजपा चुनाव जीत जाती है तो उन्हें व्यक्तिगत तौर पर कोई परेशानी नहीं हो।
इसी मामले की जांच में एक महिला अधिकारी के यहां रहकर धंधा करने वाले इस सिपाही के दूसरे दलाल का नाम भी सामने आया है।
मनोज गुप्ता नामक यह व्यक्ति यह चतरा और अन्य जिलों के पुलिस अधिकारियों से रिश्ता बनाकर चल रहा है।
कनीय अफसर स्वीकार करते हैं कि वसूली करने वाले दलाल दरअसल किस माध्यम से ऊपर पैसा पहुंचाते हैं, यह जानकारी विभाग में सार्वजनिक है।
वैसे कुछ लोगों ने इसी क्रम में दो नावों पर सवारी की जानकारी भी दी क्योंकि कई स्तरों पर जांच के बाद वे अफसर इस नतीजे पर पहुंचे थे कि दरअसल कमाई का बड़ा हिस्सा सिपाही से बिल्डर बना व्यक्ति खुद अपने पास रख लेता है और दूसरे अधिकारियों तक भी कमिशन पहुंचाता है।
हर स्तर पर भ्रष्टाचार की रोकथाम का दावा करने के बाद भी पुलिस विभाग के अंदर का यह गोरखधंधा नीचे के लोगो की जानकारी में है। सिर्फ शीर्ष स्तर पर संरक्षण प्राप्त होने अथवा कार्रवाई नहीं होने की वजह से ऐसे लोगों की दुकानदारी खुलकर चल रही है।
अभी विधानसभा चुनाव करीब आने की वजह से यह दुकानदारी अभी तेज हो चुकी है क्योंकि चुनाव से पहले तबादला होना एक प्रशासनिक प्रक्रिया है। ऐसे में जो भी अधिकारी इस मौके का लाभ उठाना चाहता है, वह खुद इन दलालों से संपर्क साध रहा है और वसूली का धंधा सरकार की नाक के नीचे चल रहा है।