सहयोगी दलों के दबाव के आगे झूकने को तैयार नहीं भाजपा
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः इस बार सिर्फ मोदी सरकार नहीं है, ये एनडीए सरकार है। भाजपा को सहयोगियों के कंधों पर निर्भर रहना होगा। क्योंकि भाजपा को अकेले बहुमत नहीं मिला। एनडीए अपने सहयोगियों के साथ सरकार बनाना चाहती है। फिलहाल मोदी के शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियां चल रही हैं।
मूल रूप से, भाजपा जिन चार पार्टियों को समर्थन देना चाहती है, उनमें एन चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी जिसके पास 16 सीटें हैं, नीतीश कुमार की जेडीयू जिसके पास 12 सीटें हैं। एकनाथ शिंदे शिव सेना के पास 7 सीटें हैं और चिराग पासवान की जन शक्ति पार्टी के पास 5 सीटें हैं। फिलहाल, मोदी ने उनसे मुलाकात की है और उनके साथ खड़े रहने का आश्वासन दिया है। लेकिन आख़िर में क्या होगा ये जानने में थोड़ा समय लगेगा।
इस बीच चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार ये दोनों भाजपा के लिए बड़े भरोसेमंद हैं। हालाँकि, इस समर्थन के बदले में उन्होंने कुछ ऐसी मांग की जो काफी महत्वपूर्ण थी। पता चला है कि टीडीपी ने लोकसभा अध्यक्ष का पद मांगा है। रिपोर्ट के मुताबिक पता चला है कि जेडीयू सूत्रों का कहना है कि वे एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की मांग कर रहे हैं। वे नीतीश कुमार की अध्यक्षता में एक समन्वय समिति की भी मांग कर रहे हैं।
लेकिन इस बार सवाल ये है कि क्या भाजपा स्पीकर का पद टीडीपी के लिए छोड़ेगी? सूत्रों के मुताबिक, उनसे डिप्टी स्पीकर का पद मांगा जा सकता है। इसके साथ ही प्रतिभागी कई महत्वपूर्ण मंत्री पदों पर भी दावेदारी कर सकते हैं। साफ है कि भाजपा दबाव में है। उस नजरिए से हम देखेंगे कि सौदेबाजी कर कौन इसका फायदा उठा सकता है।
लेकिन जो ज्ञात है वह मूल रूप से चार विभाग हैं रक्षा, वित्त, गृह मामले और विदेश मामले। भाजपा इन चारों कार्यालयों को साझेदारों को सौंपने को तैयार नहीं है। साथ ही सड़क परिवहन जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी। खबर है कि मोदी अब जनकल्याण जैसे महत्वपूर्ण काम दूसरों पर नहीं छोड़ना चाहते। इस बीच मोदी ने बार-बार गरीबों, महिलाओं, युवाओं और किसानों का जिक्र किया। मोदी इन चार मुद्दों को महत्व देना चाहते हैं।
दूसरी चीज है रेलवे। इस बीच, जदयू ने इस कार्यालय को लेने में रुचि व्यक्त की है। नीतीश कुमार खुद एक समय रेल मंत्री थे। लेकिन अंत में देखना यह है कि रेल किसके पास जाती है। पहले साझेदारों को खाद्य प्रसंस्करण, भारी उद्योग जैसे कुछ कार्यालय मिलते थे। लेकिन इस बार अगर उन्हें अहम मंत्रालय नहीं मिले तो वे दिक्कतें खड़ी कर सकते हैं। इसलिए भाजपा अंदर ही अंदर दूसरे निर्दलीयों और छोटे दलों से भी संपर्क साध चुकी है।