लगातार चार दिनों से प्रधानमंत्री नफरती भाषण दे रहे हैं। उनका भाषण कुछ ऐसा है जिस पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही रोक लगाने का फैसला सुना चुका है। इस बारे में चुनाव आयोग तक एक नहीं अनेक शिकायतें पहुंची है। श्री मोदी के भाषण की दो बड़ी गलतियां हैं, जिन्हें झूठ भी कहा जा सकता है।
पहला तो वह कांग्रेस के घोषणापत्र में उल्लेखित तथ्यों पर गलतबयानी कर रहे हैं और दूसरे समुदायों के बीच नफरत फैला रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी जबर्दस्त आलोचना हो रही है। बावजूद इसके चुनाव आयोग अब तक इस पर कोई फैसला नहीं ले पाया है। अगर टीएन शेषण अभी पद पर होते तो शायद नरेंद्र मोदी पर चुनावी गतिविधियों में भाग लेने पर ही प्रतिबंध लग चुका होता।
वैसे यह उनकी सफल साबित हुई राजनीतिक चाल भी है। नरेंद्र मोदी की राजनीति की मुख्य विशेषताओं में से एक दक्षिणपंथी बयानबाजी के अप्राप्य ब्रांड पर उनकी निर्भरता है, जो कि लोकतंत्र, अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत भरे भाषण और कुत्ते की सीटियों के इस्तेमाल में डूबा हुआ है। उनके राजनीतिक संदेश का उद्देश्य उनके समर्थन आधार के कट्टर वर्गों को खुश करना है।
शायद पहले चरण में मोदी समर्थकों के कम मतदान को लेकर यह बदलाव हुआ है। रविवार को, ये तीनों पहलू पूरी तरह से उजागर हो गए जब श्री मोदी ने दावा किया कि कांग्रेस पार्टी भारतीयों की संपत्ति मुसलमानों के बीच वितरित करेगी और वे बड़ी संख्या में बच्चे और घुसपैठिए वाले लोग हैं। उन्होंने एक और झूठ कहा कि उनके पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह ने कहा था कि मुसलमानों का देश के संसाधनों पर पहला दावा है। इनमें से कोई भी कथन सटीक होने के करीब नहीं है।
अपने घोषणापत्र में, कांग्रेस ने गरीबों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बीच अधिशेष भूमि के वितरण की निगरानी के लिए एक प्राधिकरण स्थापित करने के अलावा, सकारात्मक कार्रवाई को मजबूत करने के लिए सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना का वादा किया है। अब बाद के घटनाक्रमों पर गौर करें तो राजस्थान के बांसवाड़ा में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के खिलाफ चुनाव आयोग को शिकायत मिली, जिसमें उन्होंने लोगों को चेतावनी देने के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र और पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का हवाला दिया था कि कांग्रेस नागरिकों की संपत्ति को घुसपैठियों को फिर से वितरित करेगी। प
ढ़ना लिखना जानने वाले यह अच्छी तरह जानते हैं कि यह एक झूठ है। दूसरी तरफ चुनाव आयोग ने कहा कि वह इस मामले पर विचार कर रही है। मोदी के मुताबिक शहरी नक्सली मानसिकता से प्रभावित होने के लिए कांग्रेस की आलोचना करते हुए, मोदी ने बांसवाड़ा में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था, कांग्रेस के घोषणापत्र में कहा गया है कि यह (पार्टी) माताओं और बहनों के साथ सोने की गणना करेगी, इसके बारे में जानकारी प्राप्त करेगी और फिर इसे वितरित करेगी।
मोदी की टिप्पणी से विपक्ष नाराज हो गया और कांग्रेस ने चुनाव आयोग से संपर्क कर कांग्रेस के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणी और असत्यापित आरोप लगाने के लिए प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। यहां तक कि सीपीएम ने भी शिकायत की कि मोदी की टिप्पणियों का उद्देश्य हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करना था।
चुनाव आयोग को मोदी के भाषण को कई कोणों से देखने की जरूरत हो सकती है। जैसे कि क्या यह एक विशेष अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ तंज था और कांग्रेस को वोट न देने की सांप्रदायिक अपील थी, या क्या वह बस अपने पूर्ववर्ती के पुराने भाषण को सामने ला रहे थे और उसकी तुलना कर रहे थे। यह कांग्रेस के घोषणापत्र के वादों के साथ है। इसके बाद भी चुनाव आयोग अपने ऊपर पहले से लग रहे आरोपों के संदर्भ में कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा है।
इसी वजह से इस स्वायत्त संस्था की स्वतंत्रता पर पहले से ही सवाल उठ चुके हैं। हाल के घटनाक्रम इस आरोप को और मजबूती प्रदान कर रहे हैं। पहले चरण का चुनाव समाप्त होते ही प्रधानमंत्री की जेब से ध्रुवीकरण का कार्ड निकल आए। संयोग से, श्री मोदी के सहयोगी केंद्रीय गृह मंत्री ने अपने भाषणों में विभाजनकारी स्वरों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए विकसित भारत और चार सौ पार की शब्दावली को त्याग दिया है।
लेकिन जब आदर्श आचार संहिता की लाल रेखाओं का उल्लंघन करने की बात आती है तो प्रधान मंत्री और उनके साथियों के प्रति भारत के चुनाव आयोग के आचरण को देखते हुए, सवाल उठना लाजिमी है। भारतीय लोकतंत्र के गर्त में जाने की अंतर्राष्ट्रीय चर्चा में अब चुनाव आयोग के वर्तमान पदाधिकारियों का इतिहास कैसे लिखा जाएगा, यह अब आइने की तरह साफ होता जा रहा है।