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चुनाव आयोग में जाएगा कोई यहां का अफसर ?

झारखंड की अफसरशाही में शह और मात का खेल


  • दिल्ली दरबार से निरंतर संपर्क बना है

  • चार नावों की सवारी कर रहे थे जनाब

  • ईडी के निशाने पर पहले से ही दो लोग


राष्ट्रीय खबर

रांचीः हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झारखंड की अफसरशाही का असली खेल धीरे धीरे उजागर हो रहा है। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यहां पदस्थापित कई अधिकारी राज्य के बदले दिल्ली दरबार के प्रति अधिक निष्ठा रखते हैं। इतना ही नहीं झारखंड की गतिविधियों के बारे में दिल्ली तक सूचनाएं पहुंचाने का काम भी इनलोगों का हो सकता है। इसके बीच ही चुनाव आयोग में दो पद रिक्त होने की वजह से एक अधिकारी के चुनाव आयोग में जाने की चर्चा तेज होने लगी है।

दरअसल झारखंड कैडर के कई अधिकारी दिल्ली में प्रमुख पदों पर तैनात हैं। इन अधिकारियों ने अपने सहयोगियों के साथ निरंतर संपर्क बनाकर राज्य सरकार को भी अपने हित में फैसला लेने के लिए प्रेरित किया था। शायद इस खेल को हेमंत सोरेन ने पकड़ लिया था। इस वजह से वह एक अधिकारी को आनन फानन में किनारे लगाने के लिए मजबूर किये गये थे। सूत्रों की मानें तो झारखंड कैडर के अधिकारी राजीव गौवा इसके केंद्र में हैं। वैसे बताने के लिए इसी कैडर के अमित खरे भी दिल्ली के साथ साथ झारखंड की गतिविधियों पर भी नजर रखते हैं, ऐसी सूचना आयी है।

इस बीच एक साथ चार नाव की सवारी करने वाले एक वरीय आईएएस भी धीरे धीरे घिरते जा रहे हैं। उन्हें ईडी पहले से ही घेरने की कोशिश में है। इस वजह से उन्होंने हेमंत सोरेन के साथ साथ सुदेश महतो, भाजपा और दिल्ली के अफसरों को साधने की पुरजोर कोशिश की  है। शायद उनके किसी करीबी ने ही इसकी जानकारी झामुमो खेमा तक पहुंचा दी थी। इसके बाद उनपर कड़ी नजर रखी जा रही है जबकि वह खुद ईडी की जाल से बचने के लिए हर तरफ से प्रयासरत हैं।

मजेदार बात यह भी है कि अफसरों की इस खींचतान के  बीच ही किसके पास कहां और कितनी संपत्ति है तथा किसने हाल के दिनों में झारखंड के किसी इलाके में कितनी जमीन खरीदी है, इसकी चर्चा भी आम होने लगी है। यह जांच का विषय है कि इन तमाम संपत्तियों और कारोबार के बारे में इन अधिकारियों ने अपनी वार्षिक विवरणी में कितनी जानकारी सही दी है। कुल मिलाकर यह फिर से स्पष्ट होता जा रहा है कि झारखंड में सत्ता पर भले ही राजनीतिक दलों के नेता रहे, असली शासन झारखंड में पदस्थापित रहे अधिकारियों के पास ही केंद्रित हो चुका है। जो अपने फायदे के लिए नीतिगत फैसले के लिए सरकार को मजबूर करते हैं।

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