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पारिवारिक विरासत का राजनीतिक बंटवारा

आंध्रप्रदेश में जगन रेड्डी की सरकार और पार्टी को पहली बार जमीनी तौर पर नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वाई.एस. के नेतृत्व वाली युवजन श्रमिका रायथू तेलंगाना पार्टी के विलय के साथ लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक पारिवारिक कलह अब खुलकर सामने आ गई है। शर्मिला, जो एकीकृत आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री वाई.एस. की 50 वर्षीय बेटी हैं।

आंध्र प्रदेश में अपने पिता स्वर्गीय राजशेखर रेड्डी और वर्तमान आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की बहन होने के नाते जमीनी तौर पर वह भी राजशेखर रेड्डी की राजनीतिक विरासत में अपनी पहचान रखती हैं। अब परिवार के बीच का यह विवाद राजनीतिक तौर पर सामने आ गयी है। अपने भाई की छाया से निकलकर वह कांग्रेस में शामिल होते ही जगन रेड्डी के लिए नई चुनौती पेश कर चुकी हैं।

सुश्री शर्मिला ने मई 2012 में आय से अधिक संपत्ति के मामले में उनकी गिरफ्तारी के बाद अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया। उन्होंने नवोदित वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के लिए 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा की, जिसे श्री जगन मोहन ने 2009 में अपने पिता की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु के बाद कांग्रेस द्वारा दरकिनार किए जाने के बाद 2011 में बनाया था।

सुश्री शर्मिला को इसके लिए व्यापक रूप से श्रेय दिया गया था। 2012 में हुए उपचुनावों में 18 विधानसभा क्षेत्रों में से 15 पर वाईएसआरसीपी की जीत हुई, लेकिन पार्टी के भीतर उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया। न ही उन्होंने कोई चुनाव लड़ा, जिससे भाई-बहन की प्रतिद्वंद्विता और वाईएसआर परिवार के भीतर दरार की अटकलें लगने लगीं।

इन अटकलों को तब बल मिला जब उन्हें 2019 के विधानसभा चुनावों के दौरान उनके काम और उनकी लोकप्रियता के लिए मान्यता नहीं मिली, जिसने उनके भाई को पहली बार मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाया। इसके बाद से किसी वजह से दोनों के बीच के रिश्ते बिगड़ते चले गये और अब उसका नतीजा पहली बार सामने दिखने लगा है।

यह पहले से ही निष्कर्ष था कि सुश्री शर्मिला के राज्यव्यापी पदयात्रा के साथ अपने राजनीतिक भाग्य को पुनर्जीवित करने के उत्साही प्रयास के बावजूद वाईएसआर तेलंगाना विफल हो जाएगा, जो 2012 में उनके प्रयासों को प्रतिबिंबित करता है।

वाईएसआर परिवार ने समाख्या आंध्र आंदोलन के पीछे अपना वजन डाला था, जिसने गठन का विरोध किया था तेलंगाना के. हैदराबाद रियासत के पूर्व प्रांतों से तेलंगाना को अलग करने के तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के फैसले के विरोध में वाईएसआरसीपी के कई विधायकों और संसद सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था।

सुश्री शर्मिला को पता होगा कि तेलंगाना की राजनीति में फिर से प्रवेश करने का उनका निर्णय राज्य के निवासियों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। कांग्रेस के लिए, वह एक बड़ी संपत्ति हैं और अपने भाई को मात देने के संभावित रणनीतिक कदम का हिस्सा हैं। कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले आंध्र प्रदेश ने 2014 के बाद से विधानसभा और संसदीय चुनावों में पार्टी का सफाया कर दिया है, और निर्दयी मतदाताओं ने उस पर हैदराबाद के आसपास केंद्रित महत्वपूर्ण उद्योगों और संसाधनों को जाने देने का आरोप लगाया है।

ऐसे व्यक्ति का होना जिसने राज्य को एकीकृत करने और वाई.एस. जैसे बेहद लोकप्रिय जन नेता की विरासत के लिए संघर्ष किया हो। राजशेखर रेड्डी के अनुसार, कांग्रेस कम से कम राज्य में अपनी किस्मत को पुनर्जीवित करने की कुछ उम्मीद तो पाल सकती है। अब तक तो संकेत मिल रहे हैं, उससे कांग्रेस इस राज्य में फिर से सक्रिय होती हुई नजर आ रही है।

शर्मिला के अपने जनाधार की वजह से उनके समर्थक भी उत्साहित हैं, जो किसी न किसी तरीके से जगन रेड्डी की सरकार और पार्टी में दरकिनार कर दिये गये थे। आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा भी हाथ आजमाने वाली है। यानी जगन रेड्डी को दो राष्ट्रीय पार्टियों की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

अब तक को जगन रेड्डी तटस्थ रहकर केंद्र सरकार के साथ अपने बेहतर रिश्तों का फायदा उठाते रहे हैं। भाजपा ने भी आंध्र में कोई चुनौती नहीं होने की वजह से उन्हें परोक्ष तौर पर अपने सहयोगी के तौर पर ही स्वीकार किया है। लेकिन अब परिस्थितियां बदलती नजर आ रही है। लोकसभा चुनाव में अगर यह लड़ाई तीन तरफा हुई तो तय है कि इससे सबसे अधिक नुकसान को जगन रेड्डी की पार्टी को ही होना है।

25 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में पिछले लोकसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस ने सबसे अधिक 22 सीटें जीती थी। तेलेगु देशम को शेष तीन सीटें मिली थी। सभी सीटों पर लड़ने के बाद भी भाजपा या कांग्रेस अपना खाता तक नहीं खोल पाये थे। अब शर्मिला के साथ होने के बाद परिस्थितियां बदल रही हैं जो स्वाभाविक तौर पर जगन रेड्डी का रास्ता कठिन हो रहा है। अगर कांग्रेस ने चंद सीटें जीती दी तो विधानसभा चुनाव में जगन रेड्डी के लिए इस सत्ता को बनाये रखना और कठिन हो जाएगा।

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