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राम जी की निकली सवारी.. .. ..

राम जी के दर्शन के लिए अभी मैंगो मैन की इंतजार करना पड़ेगा। जो चंद लोग पहले ही अयोध्या के होटलों में ऑनलाइन बुकिंग करा चुके थे, उनके पैसे भी लौटाये गये हैं। दरअसल नरेंद्र मोदी द्वारा इस राम मंदिर के उदघाटन की वजह से देश विदेश से आने वाले महत्वपूर्ण अतिथियों को ठहराने और उनकी सुरक्षा की वजह से आम लोगों को इससे दूर रखा गया है। इस समारोह में भाग लेने आये अतिथियों के चले जाने के बाद ही सारी स्थिति सामान्य हो पायेगी। वरना तब तक यह पूरा शहर की सुरक्षा के कड़े घेरे में कैद रहेगा।

लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं। इसलिए खुद नरेंद्र मोदी को अपनी गारटीं के अलावा राम लला की याद फिर से आ रही है। लेकिन पुराने लोगों को इस बात से तकलीफ है कि इस आंदोलन को नई ऊंचाई देने वाले लालकृष्ण आडवाणी को इस सरकार ने किनारे लगा दिया।

शोर होने के बाद औपचारिक तौर पर उन पुराने नेताओं को भी आमंत्रित किया गया, जिन्होंने बाबरी मस्जिद को गिराने जाने के वक्त वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी। लेकिन इस पशोपेश को लेकर बहुत अधिक टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। आडवाणी जी की उम्र अधिक हो गयी है। अत्यधिक भीड़ में उनका आना और चलना कठिन हो सकता है।

फिर भी तय मानिये कि पूरे देश में इस समारोह की भागीदारी दूसरी तरह से रहेगा और भाजपा ने इसका राजनीतिक लाभ उठाने की पूरी तैयारी भी कर रखी है।

भारतवर्ष में भारतीय जनता पार्टी हर शहर गांव तक इस राम उत्सव को मनाते हुए लोकसभा चुनाव के लिए चुनावी तैयारी को गति देना चाहती है। इसलिए जो लोग अयोध्या नहीं जा पा रहे हैं, वे भी किसी न किसी रूप में अपने इलाके में आयोजित होने वाले इस समारोह में शामिल होकर भाजपा के एजेंडा को मजबूत अवश्य करेंगे।

इसी बात पर एक पुरानी हिंदी फिल्म का यह गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था आनंद बक्षी ने और संगीत में ढाला था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। वर्ष 1979 मे बनी फिल्म सरगम के इस गीत को गाया था मोहम्मद रफी ने। इस गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।

सर पे मुकुट सजे मुख पे उजाला
हाथ धनुष गले में पुष्प माला
हम दास इनके ये सबके स्वामी
अंजान हम ये अंतरयामी
शीश झुकाओ राम गुण गाओ
बोलो जय विष्णु के अवतारी

रामजी की निकली सवारी,
रामजी की लीला है न्यारी,
एक तरफ लक्ष्मण एक तरफ सीता,
बीच में जगत के पालनहारी,
रामजी की निकली सवारी,
रामजी की लीला है, न्यारी न्यारी

धीरे चला रथ ओ रथ वाले,
तोहे खबर क्या ओ भोले भाले,
एक बार देखे दिल ना भरेगा,
सौ बार देखो फिर जी करेगा,
व्याकुल बड़े हैं कबसे खड़े हैं,
दर्शन के प्यासे सब नर नारी

रामजी की निकली सवारी,
रामजी की लीला हैं न्यारी

चौदह बरस का वनवास पाया,
माता पिता का वचन निभाया,
धोखे से हर ली रावण ने सीता,
रावण को मारा लंका को जीता,
तब तब ये आए, तब तब ये आए,
जब जब ये दुनिया इनको पुकारी

रामजी की निकली सवारी, रामजी की लीला हैं न्यारी
रामजी की निकली सवारी, रामजी की लीला है
एक तरफ लक्ष्मण एक तरफ सीता,
बीच में जगत के पालनहारी,
रामजी की निकली सवारी, रामजी की लीला है, न्यारी न्यारी,

दूसरी तरफ तीन राज्यों की हार से पीड़ित कांग्रेस यह तय नहीं कर पा रही है कि वह क्या करे। अगर इस समारोह में जाते हैं तो अल्पसंख्यक वोट के बिदक जाने का खतरा है। दूसरी तरफ अगर नहीं जाते हैं कि हिंदु वोट के नाराजगी है। कुल मिलाकर तुष्टिकरण की राजनीति में कांग्रेस सहित दूसरे दलों की गाड़ी मंझधार में फंसी हुई है।

अपवाद सिर्फ उद्धव ठाकरे हैं, जिनकी पार्टी शुरु से ही राम मंदिर आंदोलन के समर्थन में रही है। यह अलग बात है कि भाजपा विरोधी दलों के अनेक नेता मन ही मन में अयोध्या जाने की योजना बनाकर बैठे हुए हैं। यह राजनीतिक मजबूरी है कि वह अपनी इस इच्छा को सार्वजनिक तौर पर व्यक्त नहीं कर सकते हैं।

अब रामजी की सवारी निकलने के बाद मोदी जी और शाह जी को अपने चुनावी दांवों के अलावा राम पर ही भरोसा है। हो सकता है कि वे भी चुपके चुपके यह दोहराते होंगे कि मेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को डरे। अंदरखाने में चुनाव के वक्त पराजय का भय स्वाभाविक है।

दूसरी तरफ पूर्व के चुनाव का वोट प्रतिशत भी भाजपा को डराता ही है। अगर बहुसंख्यक प्रतिशत का यह विरोधी मत एकजुट हो गया तो परेशानी होगी, यह सामान्य गणित है। कुल मिलाकर इस बार के चुनाव में भी दोनों पक्षों को राम जी के तेवर का इंतजार है। अगर सामान्य किस्म के रामभक्तों ने देश के असली मुद्दों पर ध्यान दे दिया तो मोदी जी की पार्टी की परेशानी बढ़ेगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो तय मानिए कि रामजी खुद बेड़ा पार लगा ही देंगे।

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