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डीजीपी को एक साल के कार्यकाल में जनसंवाद का एक दिन नही

अपराधी तो पकड़े गए पर अफसरों पर कड़ाई नहीं


  • पुलिस मुख्यालय अब गुटबाजी का अड्डा

  • कानून व्यवस्था पर भी इसका प्रतिकूल असर

  • अपने अफसरों से ही दूरी बनाकर चलते हैं


दीपक नौरंगी

भागलपुर: बिहार पुलिस के मुखिया के रूप में आरएस भट्ठी का एक वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है। इस एक वर्ष के कार्यकाल में उनके खाते कुछ उपलब्धियां रही तो कुछ खामियां भी। एक वर्ष के कार्यकाल में डीजीपी ने कभी धरातल पर आकर जनता के दुख-दर्द को सीधे संवाद के द्वारा समझने का प्रयास नहीं किया।

यहां तक कि कुछ महीनों तक अपराध नियंत्रण के लिए सीधे जिम्मेवार पुलिस कप्तानों से भी दूरी बनाए रखी। यह सच है कि इस दौरान एसटीएफ की उपलब्धि शानदार रही। एसटीएफ की वजह से कई दुर्दांत अपराधी पकड़े भी गए।

देखें इस पर वीडियो रिपोर्ट

आईएएस और आईपीएस महकमें में यह चर्चा खूब हो रही है कि इस दौरान भ्रष्ट अधिकारियों कानूनी शिकंजा से दूर रहे। डीजीपी साहब के 365 दिन के कार्यकाल में एक दिन भी जनता से जन संवाद नहीं करना यह किस तरह की मानसिकता है? इसको लेकर अन्य राज्यों के अधिकारियों में भी चर्चा हो रही है

श्री भट्ठी ने जब डीजीपी का पद ग्रहण किया था तो सबसे पहले उन्होंने सभी थानाध्यक्ष को उन्होंने विलेज डायरी बनाने का निर्देश दिया था। कुछ समय तक इसका पालन ठीक तरीके से हुआ। इसकी समीक्षा नहीं होने की वजह से थानेदार इस काम में अब ढीले पड़ गए। डीजीपी का जनता से सीधा संवाद नहीं होने की वजह से पुलिस कर्मियों की मनमानी की शिकायतें अकसर मिलती रहती है।

कई दुहसाहसी पुलिस कप्तान ऐसे है जिन्होंने नियम कानून को ताक पर रखकर दागदार पुलिस कर्मियों को फिर से कमान सौंप दी। फिर से कमान सौंपने का मतलब डीजीपी साहब अच्छी तरह जानते हैं। इनकी प्रशंसा पुलिस कर्मियों के बीच इस बात को लेकर भी है कि प्रोन्नति को लेकर जो खेल होता था वह बंद हो गया।

गया के पूर्व आईजी अमित लोढ़ा को बचाने के लिए सीबीआई से लौटे कुछ सीनियर पुलिस पदाधिकारियों के एक गुट ने हर संभव कोशिश की। फिलहाल वे बचाने में सफल भी हैं। इस मामले में डीजीपी की चुप्पी निश्चिततौर पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। गया के पूर्व आईजी के मामले में पर्दे के पीछे क्या डीजीपी ने सच में आईजी अमित लोढ़ा को बड़ी मदद की है?

कई दागी पुलिस अफसर की फाइल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। पूर्णिया के पूर्व एसपी विशाल शर्मा के मामले में दो विभागीय कार्रवाई भी पुलिस हेड क्वार्टर में पेंडिंग बताई जा रही है। जिन पर गंभीर आरोप है वैसे आईपीएस को डीजीपी साहब साथ क्यों मिल रहा है बड़ा सवाल है जांच के दौरान जिन अधिकारियों पर गंभीर आरोप पाए गए थे।

वह वो मुंछ पर ताव देकर घूम रहे हैं। सबसे बड़ी जो खामी सामने आई है कि पुलिस मुख्यालय में अधिकारियों के बीच गुटबाजी बढ़ी है। इस गुटबाजी का ही दुष्परिणाम यह है कि बालू माफिया पर पुलिस आजतक बेहतर तरीके से नकेल नहीं कस पाई। शराब कारोबारी भी समय-समय पर अपना खेल दिखाने से बाज नहीं आते। जनता की सुविधा के लिए एक टोल फ्री नंबर जारी किया गया है। लेकिन उस टोल फ्री नंबर का कोई असर फिलहाल नहीं दिख रहा है।

डीजीपी साहब के मनपसंद आईपीएस अधिकारी काफी सुर्खियों में

डीजीपी साहब के जिन्हें अधिक पसंद करते हैं उन आईपीएस अधिकारियों में एडीजी भृगु श्रीनिवासन साहब, हाल फिलहाल बहुत करीब हुए एडीजी रेल बच्चू सिंह मीणा, पटना आईजी राकेश राठी, सीआईडी आईजी पी कन्नन का बड़ा बोल वाला पुलिस मुख्यालय में माना जा रहा है।

आखिर सरदार पटेल भवन में यह चर्चा चारों तरफ क्यों है कि तीन सीनियर आईपीएस अधिकारी के विभागीय कार्य सीआईडी आईजी पी कन्नन साहब से लिया जा रहा है 29 सालों के दौरान 94 बीच के सब इंस्पेक्टर को मात्र एक प्रमोशन मिला है पुलिस कर्मियों के प्रमोशन को लेकर 1994 बैच के इंस्पेक्टर का प्रमोशन नहीं होना कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।

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