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गलवान घाटी को शी जिनपिंग जिंदगी में नहीं भूलेंगेः जनरल नरवणे

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः भारत के पूर्व सेनाध्यक्ष (सीओएएस) जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने अपने संस्मरण फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान चीन के साथ भारत के सीमा तनाव पर प्रकाश डाला है और कैसे भारत और भारतीय सेना को चीन को यह एहसास कराने में मदद मिली कि अब पहले जैसी हालत नहीं है।

देश के 28वें सीओएएस ने रात के समय हुई झड़पों और 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद के तनाव को याद किया, जिसने दो एशियाई दिग्गजों को पूर्ण युद्ध के कगार पर धकेल दिया था। जनरल लिखते हैं, भारत और भारतीय सेना को दुनिया को यह दिखाने में मदद मिली कि अब बहुत हो गया और पड़ोस के गुंडों को चुनौती देनी पड़ी।

जनरल लिखते हैं कि चीनी नेता शी जिनपिंग 16 जून को कभी नहीं भूलेंगे क्योंकि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को दो दशकों में पहली बार हिमालय पर अपने भारतीय समकक्षों के हाथों भारी नुकसान उठाना पड़ा। नरवाने लिखते हैं, 16 जून (चीनी राष्ट्रपति) शी जिनपिंग का जन्मदिन है।

यह ऐसा दिन नहीं है जिसे वह जल्द ही भूल जाएंगे। दो दशकों में पहली बार, चीनी और पीएलए को घातक हताहतों का सामना करना पड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि झड़प वाला दिन उनके पूरे करियर के सबसे दुखद दिनों में से एक था। नरवणे का कार्यकाल, दिसंबर 2019 से अप्रैल 2022 तक, सीमा पर बढ़ी हुई चीनी शत्रुता और भारत और तिब्बत के बीच की वास्तविक सीमा, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए भारत की तीव्र प्रतिक्रिया द्वारा चिह्नित किया गया था।

नरवणे के मुताबिक, पीएलए द्वारा पेट्रोलिंग प्वाइंट-14 (पीपी-14) की स्थिति खाली करने से इनकार करने के बाद झड़प हुई। पीपी-14 पर, हालांकि, जब भी हमने पीएलए से अपने तंबू हटाने के लिए कहा, वे अपना रुख बदलते रहे। कुछ और समय चाहिए से लेकर हम अपने वरिष्ठों के साथ जांच करेंगे से लेकर जनादेश से परे होने तक बातचीत का रास्ता अपनाया था।

उनके मुताबिक भारतीय सेना द्वारा उनकी भाषा में उत्तर दिये जाने के बाद चीन की सेना मोर्चा छोड़कर भाग खड़ी हुई थी। वे अपने साथ सैनिकों के शवों को भी ले भागे थे। भारत ने तो अपनी सेना को हुए नुकसान की जानकारी दी पर चीन ने अब तक इस बारे में कुछ नहीं कहा।

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