जैसे ही महुआ मोइत्रा ने कहा कि एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष ने कौन से सवाल पूछे हैं, उनका रिकार्ड अपने पास है, एथिक्स कमेटी ने अपनी अगली बैठक की तिथि दो दिन टाल दी। भाजपा के कई सांसद एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष के समर्थन में खड़े जरूर हुए हैं लेकिन इनमें से किसी ने भी महुआ मोइत्रा के इस आरोप पर सफाई नहीं दी है कि पैसा लेकर सवाल पूछने का किससे रात को बात करते हैं, का क्या संबंध हो सकता है।
अब तक की सुनवाई में मामले को दर्शन हीरानंदानी के शपथ पत्र पर रखा गया है जबकि मूल प्रश्न पैसा लेकर सवाल पूछने का है, जिसमें आरोप को अपनी बात रखने के साथ साथ कमेटी को यह विचार करना है कि वाकई शपथ पत्र पर कितना भरोसा किया जा सकता है। यह सवाल जनता की नजरों में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दर्शन हीरानंदानी का शपथ पत्र आने के पहले ही निशिकांत दुबे इस बारे में सब कुछ बोल चुके थे।
भारत में राजनीति और पितृसत्ता हमेशा साथ-साथ चले हैं। यद्यपि राजनीति को लोगों की सेवा करने का पेशा माना जाता है, लेकिन इसका अभ्यास हमेशा उन पर शासन करने के लिए किया गया है। चूंकि ऐतिहासिक रूप से पुरुषों ने ही शासन किया है और समाज पितृसत्तात्मक रहा है, राजनीति और पितृसत्ता के बीच संबंध घनिष्ठ रहा है।
स्त्री-द्वेष में संबंध को अक्सर अनारक्षित रूप से व्यक्त किया गया है, और इसका प्रमाण राजनीति और सत्ता के कक्षों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और सार्वजनिक मंचों पर उनके उपचार में पाया जाता है। विधायिका में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून बनने से बहुत पहले, उन्हें बदनामी और बेइज्जती के हॉल में 100 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त था।
यहां तक कि संसदीय समितियां जैसे वैध और लिंग-तटस्थ मंच भी महिलाओं के लिए शत्रुतापूर्ण और अपमानजनक स्थान हैं, जैसा कि तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के अनुभव से पता चलता है, जिसे उनके द्वारा बताया गया है और लोकसभा की आचार समिति में अन्य विपक्षी सांसदों द्वारा इसकी पुष्टि की गई है।
मोइत्रा को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और वकील जय अनंत देहाद्राई द्वारा लगाए गए आरोपों को संबोधित करने के लिए समिति के सामने पेश होने के लिए बुलाया गया था कि उन्होंने रिश्वत और उपहार के बदले में व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी के कहने पर लोकसभा में प्रश्न पूछे थे। यह आरोप लगाया गया था कि हीरानंदानी ने विभिन्न स्थानों, विशेषकर दुबई से प्रश्न दर्ज करने के लिए अपने लॉगिन का उपयोग किया था।
महुआ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अडानी बिजनेस समूह की एक मजबूत और मुखर आलोचक रही हैं। उन्होंने समिति पर भाजपा सांसद की तुलना में अनुचित और भेदभावपूर्ण व्यवहार करने का आरोप लगाया है, जिनकी एक अन्य आरोप के लिए जांच की जा रही है। उन्होंने यह भी गंभीर आरोप लगाया कि एक महिला के रूप में उन्हें गलत तरीके से निशाना बनाया गया और पैनल के अध्यक्ष वीके सोनकर, जो कि एक भाजपा सांसद हैं, ने उनसे उनके निजी जीवन, देर रात की कॉल और उनके दोस्त के साथ संबंधों के बारे में अशोभनीय सवाल पूछे।
उन्होंने कहा कि समिति के सभी सदस्यों की उपस्थिति में उन्हें अपमानित करने के लिए एक योजनाबद्ध वस्त्रहरण किया गया था और इसलिए वह बैठक से बाहर चली गईं। सुनवाई में मौजूद विपक्षी सांसद भी बहिर्गमन कर गए और उन्होंने उनके आरोपों की पुष्टि की है। इसलिए जनता की नजरों में एक भारतीय स्त्री का ऐसा अपमान ज्यादा महत्वपूर्ण है।
इसे भाजपा भले ही ना समझे लेकिन देश की जनता इसे भली भांति समझ रही है। यूं तो एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष सोनकर ने उनका खंडन किया है और कहा है कि महुआ को उन सवालों के जवाब देने का अधिकार दिया गया है जो वह चाहती थी और उन सवालों के जवाब देने का नहीं जो वह नहीं चाहती थी। लेकिन व्यक्तिगत और अप्रासंगिक प्रश्न पूछना गलत है, खासकर यदि उनका उद्देश्य किसी के चरित्र को बदनाम करना हो, और विपक्षी सांसदों ने कहा है कि उन्होंने सोनकर से ऐसा कहा था।
मोइत्रा ने स्पीकर से उन अनैतिक, घिनौने और पूर्वाग्रहपूर्ण सवालों की शिकायत की है जो उनसे पूछे गए थे। इसमें शामिल मुद्दा राजनीतिक पूर्वाग्रह नहीं बल्कि लैंगिक पूर्वाग्रह है, जो सर्वोच्च राष्ट्रीय मंचों पर भी महिलाओं के साथ व्यवहार को प्रभावित करता है। महुआ मोइत्रा की शिकायत से पता चलता है कि राजनीति और समाज के सभी स्तरों पर स्त्री-द्वेषी और लिंगवादी मानसिकता कितनी व्यापक है, और विशेषाधिकार और पद भी इसके खिलाफ ढाल नहीं हैं।
इसके पहले दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी यह कहा था कि छापामारी के दौरान जांच अधिकारी बार बार बाहर जाकर किसी से निर्देश प्राप्त करते थे और यह सिलसिला पूछताछ के दौरान भी चलता रहा था। इसलिए किसी अदृश्य के निर्देश पर ऐसा आचरण आम भारतीय जनता को पसंद नहीं आता, यह जगजाहिर बात है।