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एक चेहरे पे कई चेहरे.. … …

एक चेहरे पे कई चेहरे सिर्फ हिंदी फिल्मों में नहीं होता है बल्कि इंडियन पॉलिटिक्स में यह खुलेआम और बार बार होता रहता है। इसके बाद भी अब तक इसका एक्सपायरी डेट नहीं आया है यानी चुनाव में यह दांव पहले भी चल जाता था और आज भी चल जाता है। इसे लेकर टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। यह देखने वाली बात है कि जो इधर था वह उधर जा रहा है और जो उधर था, इधर आ रहा है। जिसे भाव नहीं मिला वह हिमालय जा रहा है। इंडियन इलेक्शन की गाड़ी ऐसे ही चलती रहती है। इनके बीच ही चेहरे लगातार बदलते रहते हैं और एक चेहरे पे कई चेहरे नजर भी आते रहते हैं।

पहली बार तो मोदी जी को पिछड़ा वर्ग का टेंशन सताने लगा है। जनवरी में श्रीराम मंदिर के उदघाटन के बाद भी हिंदू कार्ड असरदार रहेगा अथवा नहीं, इसे लेकर खुद आरएसएस टेंशन में है। संघ प्रमुख भागवत जी जो कुछ बोल रहे हैं, उसका अर्थ मोदी जी के समर्थन में है अथवा नहीं, इस पर बहस हो सकती है। शायद वहां भी सत्ता संतुलन का एक खेल चल रहा है, यानी संघ बड़ा या नरेंद्र मोदी, इसकी परीक्षा होने लगी है।

इंडियन पॉलिटिक्स की बात करें तो सबसे हॉट टॉपिक तो अपने दुबे जी और महुआ मैडम है। दोनों का वाकयुद्ध अब संसद की एथिक्स कमेटी तक पहुंच गया है। अब महुआ मोइत्रा ने पैसे लेकर सवाल पूछे हैं अथवा अपने गोड्डा वाले दुबे जी की डिग्री फर्जी है, यह सवाल चुनाव पर असर कितना डालेगा, यह देखने वाली बात होगी।

रिजल्ट चाहे कुछ भी हो लेकिन इतना तो साफ हो गया है कि अपने गौतम अडाणी इनदिनों विपक्षी हमले से लगातार घायल हो रहे हैं। अब तो शेयर बाजार भी यह दिखा रहा है कि विदेशी निवेशक अडाणी जी से पीछा छुड़ाते हुए अपने शेयर धड़ाधड़ बेच रहे हैं। वहां पर एक चेहरे पर कितने चेहरे लगे हुए हैं, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है।

इसी बात पर दाग, ए पोयम ऑफ लव फिल्म का वह गीत याद आने लगता है, जिसे साहिर लुधियानवी ने लिखा था। इसे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने संगीत में ढाला था और लता मंगेशकर ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल इस तरह हैं।

जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते है लोग
जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते है लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग
जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते है लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग
याद रहता है किसे गुजरे जमाने का चलन
याद रहता है किसे सर्द पड़ जाती है चाहत
हार जाती है लगन अब मोहब्बत भी है
क्या इक तिजारत के शिव हम ही नादाँ थे जो
ओढा बीति यादो का कफ़न

वरना जीने के लिए सब कुछ भुला लेते है लोग
वरना जीने के लिए सब कुछ भुला लेते है लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग
जाने वो क्या लोग थे जिनको वफ़ा का पास था
जाने वो क्या लोग थे दूसरे के दिल पे क्या
गुजरेगी ये एहसास था अब है पत्थर के
सनम जिनको एहसास न हो
वो जमाना अब कहा जो अहल-इ-दिल को रास था
अब तो मतलब के लिए नाम-इ-वफ़ा लेते है लोग
अब तो मतलब के लिए नाम-इ-वफ़ा लेते है लोग
जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते है लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग

अब ईडी और सुप्रीम कोर्ट की भी बात कर लें। पश्चिम बंगाल के कद्दावर मंत्री गिरफ्तार क्या हुए, अदालत में पेशी के दौरान ही गिर पड़े। यही बात मुझे समझ में नहीं आती है कि कोई भी नेता गिरफ्तार होते ही गंभीर रूप से बीमार कैसे पड़ जाता है और जेल से रिहा होते ही फिर से चंगा क्यों हो जाता है। लेकिन इस सवाल के बीच का बड़ा सवाल यह है कि ईडी के पास मनीष सिसोदिया के खिलाफ ठोस सबूत क्या है।

आम आदमी पार्टी के तीन बड़े नेता जेल के अंदर हैं। इसके बाद भी इस सबसे नई पार्टी के तेवर ढीले नहीं पड़ रहे हैं। फिर से कहता हूं कि पढ़े लिखे लोगों के एक्टिव पॉलिटिक्स  में आने पर कम पढ़े लिखे लोगों को परेशानी होती ही है। ऊपर से भाई लोगों ने गुजरात हाईकोर्ट में मोदी जी की डिग्री की रट लगा रही है। अब एंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री हो या कोई और अदालत ने तो ईडी से सिसोदिया के खिलाफ सबूत मांगा है। अगर सबूत पेश नहीं हुआ तो उसके क्या होगा और किस किस के चेहरे उतर जाएंगे, यह समझने वाली बात है।

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