लालकिला के प्राचीर से भी चुनाव प्रचार वाला भाषण और वही घिसी पिटी बातें, जिनमें भावी कार्ययोजना नदारत रही। इस दौरान कई बार शब्दों का सही उच्चारण नहीं करना और बीच में अटक जाना, यह सारी बातें इस बात की तरफ इशारा करती है कि अब पहली बार नरेंद्र मोदी अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर संदेह में पड़े हुए हैं।
दूसरी तरफ सूचना तकनीक के जानकारों ने उनके पिछले दस ऐसे भाषणों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता से विश्लेषण किया तो यह बात निकलकर सामने आयी कि वह तथ्यों को नज़रअंदाज कर देंगे और चतुराई से पिछले वादों की अवहेलना करेंगे, और लोगों की वैध चिंताओं को दरकिनार कर देंगे। उनकी बयानबाजी में अक्सर एक उच्च दृष्टि होती है जो कार्ययोजना से रहित होती है।
आर्थिक मोर्चे पर, प्रधान मंत्री मोदी ने हमें व्यक्तिगत गारंटी दी है कि भारत अगले पांच वर्षों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। पहली बार में प्रभावशाली लगता है और खोखला लगता है जब हमें एहसास होता है कि 2013 में ही एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि भारत 2028 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है।
वैश्विक विशेषज्ञ यह मानते हैं कि उससे आगे के 75 वर्षों में भारत दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। सच तो यह है कि भारत ने विकास की गति को काफी हद तक खो दिया है और लोगों को परेशानी हो रही है। संवैधानिक पदाधिकारियों के पास तथ्यों को नजरअंदाज करने की सुविधा हो सकती है, लेकिन आम लोगों के पास ऐसा नहीं है। इसलिए, जब युवा प्रधानमंत्री को यह कहते हुए सुनते हैं कि ‘यह देश आपको असीमित अवसर प्रदान करेगा, आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है तो वे आश्वस्त नहीं होते हैं बल्कि निराशा की भावना से उबर जाते हैं।
2014 के बाद से युवा बेरोजगारी 22 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन ने नौकरी बाजार को छोटा कर दिया है जिससे लोगों को कार्यबल से बाहर होना पड़ा है। सरकार आगे बढ़ सकती थी लेकिन उसने अपनी पीठ मोड़ ली और हमारे युवाओं की दुर्दशा को नजरअंदाज कर दिया।
पिछले साल कार्मिक मंत्री ने लोकसभा को बताया था कि 2014 से 2022 के बीच 22 करोड़ सरकारी नौकरी के आवेदन प्राप्त हुए जबकि केवल 7.2 लाख को रोजगार उपलब्ध कराया गया। सरकारी क्षेत्र में प्रत्येक 1,000 आवेदनों पर केवल 3 नौकरियाँ ही सृजित हो रही हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि भर्ती में लगातार गिरावट आ रही है।
2014-15 के बाद से नियुक्त उम्मीदवारों की संख्या में 70 फीसद की गिरावट आई है। 2021-22 में 1.86 करोड़ आवेदनों के मुकाबले केवल 38,850 उम्मीदवारों की भर्ती की गई। क्रमिक रोजगार सृजनकर्ता के रूप में मुद्रा योजना का उल्लेख गलत है। 2021-22 में लगभग 80 फीसद ऋण शिशु श्रेणी में हैं जहां ऋण राशि 50,000 रुपये से कम है। अपने 2014 के भाषण में, प्रधान मंत्री मोदी ने दुनिया से मेक इन इंडिया का आह्वान किया। 2022 तक विनिर्माण क्षेत्र में 10 करोड़ नौकरियां पैदा करने का लक्ष्य था।
2016 से 2023 के बीच 15 लाख विनिर्माण नौकरियां खत्म हो गई हैं। हालाँकि, हम भाषण के रास्ते में तथ्यों को नहीं आने दे सकते। जहाँ भी सुविधाजनक हो, पिछले वादों की अवहेलना की जानी चाहिए। इसलिए, हम अब किसानों की आय दोगुनी करने, या 100 स्मार्ट शहरों, या सभी के लिए घर, या हर घर में बिजली के बारे में नहीं सुनते हैं।
जेनरेटिव एआई के साथ एक बड़ी चिंता यह है कि संदर्भ के बिना, यह ऐसे परिणाम उत्पन्न करता है जो मौजूदा मुद्दे से काफी भिन्न हो सकते हैं। चैटजीपीटी अक्सर ऐसे हाइपरलिंक बनाता है जो मौजूद नहीं होते हैं। इसी तरह, प्रधान मंत्री का भाषण सुनने के दौरान, यह अतिशयोक्ति से भरा और कल्पना में डूबा हुआ प्रतीत हुआ।
आम लोग बढ़ती महंगाई से चिंतित हैं, लेकिन प्रधानमंत्री ने उन मुद्दों को बड़ी सहजता से दरकिनार करते हुए दावा किया, हम मुद्रास्फीति को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने में सक्षम हैं। सांख्यिकी मंत्रालय ने 14 अगस्त की शाम को मुद्रास्फीति के आंकड़े जारी किए और वे हमें बताते हैं कि खुदरा मुद्रास्फीति 15 महीने के उच्चतम स्तर पर है और सब्जियों की कीमतें महीने-दर-महीने 38 फीसद और साल-दर-साल 37 फीसद बढ़ी हैं।
ईंधन और एलपीजी की लगातार ऊंची कीमतें कई महीनों से आम लोगों को परेशान कर रही हैं। लाल किले के दावों और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच विसंगति कोई नई बात नहीं है। मणिपुर फिर गैर जिम्मेदाराना भाषण भी रहा। कुल मिलाकर उनके पूरे भाषण में आत्मप्रचार के बीच गलत उच्चारण और प्रवाह का ठहर जाना ही उनके भय को दर्शाता है। दूसरी तरफ जिस पाक साफ सरकार का वह दावा अब तक करते आये हैं, उनपर भी अब सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में फाइलों में कौन राज दफन है, इसका खुलासा तो कहीं उन्हें नहीं डरा रहा है।