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जनता अब राजनीतिक नाटक समझने लगी है

इंफाल में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे का नाटक हुआ। भाजपा और बीरेन सिंह समर्थक भले ही इसे स्वीकार ना करें लेकिन आम जनता को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गयी थी कि अचानक इस नाटक की आवश्यकता क्यों पड़ी और पर्दे के पीछे से इसके असली कारण क्या थे।

जिधर से भाजपा ध्यान हटाना चाहती थी, वह योजना पूरी तरह विफल रही। घटनाक्रम कुछ ऐसा था कि  मणिपुर के मुख्यमंत्री को उनके समर्थकों ने शुक्रवार को इस्तीफा देने से रोक दिया। श्री सिंह दोपहर 1 बजे अपना इस्तीफा देने के लिए राज्यपाल अनुसुइया उइके से मिलने वाले थे। सीएम दोपहर करीब 2:20 बजे अपने आवास से गाड़ियों के काफिले में मंत्रियों समेत करीब 20 विधायकों के साथ निकले, लेकिन सैकड़ों महिलाओं ने सड़क पर मानव श्रृंखला बनाकर राजभवन तक उनका रास्ता रोक दिया।

उनसे इस्तीफा न देने के लिए कहने के बाद वह अपने आवास पर लौट आए और उनके समर्थन में नारे लगाए। कुछ देर बाद मंत्रियों का एक समूह मुख्यमंत्री आवास से निकला और उनमें से एक ने श्री सिंह का त्यागपत्र पढ़ा और इसे कुछ महिलाओं को सौंप दिया, जिन्होंने इसे फाड़ दिया। इसके बाद कहा गया कि मुख्यमंत्री ने जनता की भावनाओँ का कद्र करते हुए इस्तीफा नहीं देने का फैसला लिया है। इससे नाटक की समाप्ति हो गयी और वहां मौजूद लोग अपने अपने घरों को लौट गये।

अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने इसे कुर्सी बचाने का नाटक करार दिया। श्री सिंह के एक सहयोगी ने बताया कि न तो गृह मंत्री अमित शाह और न ही केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने मुख्यमंत्री को पद छोड़ने का निर्देश दिया था। ऐसा बताया जाता है कि गुरुवार रात इंफाल में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान श्री सिंह को अपशब्द कहे जाने के बाद उन्होंने पद छोड़ने का मन बना लिया था।

प्रदर्शनकारियों ने कांगपोकपी के पहाड़ी जिले में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में दिन में मारे गए दो मैतेई पुरुषों के शवों को राज्य की राजधानी के केंद्र में लाए जाने के बाद अपना गुस्सा व्यक्त किया। सीएम ने यह संदेश देने के लिए इस्तीफा देने का फैसला किया कि उनकी जगह किसी अन्य नेता को लाया जा सकता है जो चीजों को व्यवस्थित करने में सक्षम होगा।

जब उनके अपने लोगों ने उन पर विश्वास करना बंद कर दिया तो उनके पास क्या विकल्प था।  जबकि मैतेई-प्रभुत्व वाली इंफाल घाटी में लोगों का एक वर्ग श्री सिंह के पीछे लामबंद हो रहा है, पहाड़ियों में कुकी समुदाय, जिसमें सात भाजपा विधायक भी शामिल हैं, उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, साथ ही एक अलग आदिवासी प्रशासन की भी मांग कर रहे हैं।

सहयोगी ने कहा, उम्मीद है कि अब शांति बहाल करने के लिए ईमानदार प्रयास होंगे। 3 मई को कुकी-मेइतेई संघर्ष शुरू होने के बाद से कम से कम 130 लोग मारे गए हैं और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। शुक्रवार सुबह से ही मणिपुर में अटकलें लगाई जा रही थीं कि श्री सिंह इस्तीफा दे देंगे, क्योंकि राज्य में 35,000 सेना और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती के बावजूद वह हिंसा को रोकने में विफल रहे हैं।

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि श्री सिंह अपने कुछ मंत्रियों और विधायकों का विश्वास हासिल करने के लिए गुरुवार रात उनके पास पहुंचे थे। कथित तौर पर पार्टी के भीतर से उन पर किसी अधिक सक्षम व्यक्ति के लिए रास्ता बनाने का दबाव बढ़ रहा था। कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री के घर को आग लगाए जाने के बाद रंजन सिंह ने मुख्यमंत्री पर यह कहकर कटाक्ष किया कि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह से विफल रही है।

मैतेई समुदाय के नागरिक समाज संगठनों की एक प्रभावशाली शीर्ष संस्था, मणिपुर इंटीग्रिटी पर समन्वय समिति  ने हिंसा प्रभावित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने का विरोध किया। इस संगठन ने पत्र लिखकर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की निष्क्रियता और पक्षपातपूर्ण कार्यों के खिलाफ शिकायत की थी।

मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में सीओसीओएमआई ने कहा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन स्वीकार नहीं किया जायेगा। मणिपुर के लोग किसी भी प्रकार की अलोकतांत्रिक नीति को स्वीकार नहीं करते हैं। जिन मुद्दों और समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उन्हें लोकप्रिय निर्वाचित सरकार की जिम्मेदारी के तहत हल किया जाना चाहिए। इस बीच लाइसेंसधारी महिला विक्रेता और बड़ी संख्या में रेहड़ी-पटरी वाले चार दिवसीय हड़ताल पर चले गए।

राज्य में शांति कैसे लौटे और कुकी समुदाय का भरोसा कैसे कायम हो, इस पर मुख्यमंत्री या भाजपा के पास कोई योजना तक नहीं है। इससे साफ है कि मणिपुर भी नफरती राजनीति की प्रयोगशाला बन चुकी है। लेकिन इस घृणा को हवा देने वाले दूरगामी परिणामों पर विचार नहीं कर रहे हैं, जो चीन से जुड़ा है। दरअसल लगातार के नौटंकी ने ही जनता को ऐसे प्रंपचों के प्रति अनुभवी बना दिया है, इसे भाजपा को स्वीकार कर लेना चाहिए।

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