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मोदी की अगुवाई में राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान का गठन

नईदिल्लीः केंद्र सरकार के मुताबिक पांच साल में रिसर्च पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसमें से 36 हजार करोड़ रुपये निजी क्षेत्र, राज्य के स्वामित्व वाले उद्योगों, अनुदान एजेंसियों से आएंगे। मोदी सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान का मार्गदर्शन करने के लिए एक राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन बनाने के निर्णय की घोषणा की है।

यह बिल संसद के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को इस विधेयक को मंजूरी दे दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली यह संस्था तय करेगी कि केंद्र विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाजशास्त्र के किन क्षेत्रों और किन विषयों पर पैसा लगाएगा। केंद्र के मुताबिक पांच साल में रिसर्च पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे।

इसमें से 36 हजार करोड़ रुपये निजी क्षेत्र, राज्य के स्वामित्व वाले उद्योगों, अनुदान एजेंसियों से आएंगे। परिणामस्वरूप देश की जरूरतों, विशेषकर आर्थिक प्रगति के अनुरूप अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा। जिस शोध से समाज को बहुत कम ‘फायदा’ होता है, वह पैसे की बर्बादी होना बंद हो जाएगा। अब तक एसईआरबी (साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड) तय करता था कि रिसर्च के लिए कहां पैसा लगाना है।

इसे 2008 में बनाया गया था। उस एजेंसी का अब नेशनल रिसर्च फाउंडेशन में विलय कर दिया जाएगा। विरोधियों को डर है कि भारतीय शिक्षण मंडल जैसे आरएसएस संगठन लंबे समय से भारतीय विज्ञान में अनुसंधान पर जोर देते रहे हैं। उनके अनुसार पौराणिक काल में भारत ने विज्ञान में बहुत प्रगति की।

उस सब पर शोध होना चाहिए। खुद प्रधानमंत्री ने भी गणेश जी की गर्दन पर लगे हाथी के सिर को पहली प्लास्टिक सर्जरी बताया था। सवाल ये है कि क्या इस बार मोदी सरकार रिसर्च में जेंट्रीफिकेशन की राह पर चलेगी। सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के मुताबिक, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और औद्योगिक क्षेत्र-विशिष्ट अनुसंधान पर जोर दिया जाएगा। प्रधानमंत्री निदेशक मंडल के प्रमुख होंगे। उनके साथ 15 से 25 प्रख्यात शोधकर्ता, शिक्षाविद्, पेशेवर भी होंगे।

संगठन की कार्यकारी परिषद प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के नेतृत्व में काम करेगी। वे शोध की दिशा तय करेंगे। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह के मुताबिक, अब आईआईटी, आईआईएससी जैसे संगठनों को रिसर्च फंडिंग का बड़ा हिस्सा मिलता है। राज्य विश्वविद्यालयों को केवल 10% मिलता है। उनका दावा है कि नई व्यवस्था में तस्वीर बदल जाएगी।

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