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जलसंकट तो इस साल का दूर होगा पर अगले साल (भाग 02)

  • नगर निगम के जारी कर रखी है डिजाइन

  • फर्जी रेन वाटर हार्वेस्टिंग सर्टिफिकेट से कमाई

  • भूगर्भस्थ जल भंडार तक पहुंच नहीं रहा पानी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः रांची में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के नाम पर छतों का पानी एकत्रित करने का एक भूमिगत भंडार बना दिया गया है। इसमें कोयला, बालू और पत्थर डाले गये हैं। यह जान लेना जरूरी है कि रांची जैसे पहाड़ी इलाकों में इस तरीके से रेन वाटर हार्वेस्टिंग कारगर नहीं है। यहां रांची नगर निगम ने भी इसके प्रावधान स्पष्ट कर रखे हैं। सिर्फ जागरूकता के अभाव में लोग इस पर ध्यान नहीं देते हैं। इससे होता यह है कि जमीन के नीचे बनाये गये इस सोकपिट से बारिश के दौरान पानी उस जलभंडार तक नहीं पहुंच पाता है, जो इन बहुमंजिली इमारतों को बोरिंग से पानी की आपूर्ति करता है।

रांची जैसे शहरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए जो सॉकपिट बनाया जाता है, उसके नीचे कमसे कम सौ फीट की बोरिंग का प्रावधान निर्धारित है। ऐसा करने पर ही भूमिगत जल का भंडार फिर से रिचार्ज हो पाता है। दूसरी तरफ रांची की हजारों बहुमंजिली इमारतों में सॉकपिट तो बनाये गये हैं पर उसके नीचे की बोरिंग का काम छोड़ दिया गया है।

मामले की छानबीन से यह भी पता चला है कि दरअसल बिना बोरिंग के ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रमाणपत्र देने में भी पुराने नगर निगम भवन के सामने स्थित एक कार्यालय के लोग अमीर हो गये हैं। बिल्डरों ने पैसा देकर उनसे गलत प्रमाणपत्र हासिल कर लिये हैं। मकान खरीदने वालों को वहां बना सॉकपिट दिखता है।

बाद में बिल्डर उन्हें प्रमाणपत्र भी दिखा देते हैं। दरअसल इसमें गड़बड़झाला क्या है, यह आम आदमी नहीं समझ पाता है। सामान्य समझ की बात है कि रांची के हजारों ऐसे मकानों के सॉकपिट में अगर बोरिंग से बरसात का पानी जमीन की गहराई में पहुंचाया जाए तभी आने वाले तीन वर्षों में जलस्तर में सुधार होता हुआ नजर आ सकता है।

अब सरकारी स्तर पर बात करें तो जलसंकट होते ही नया बोरिंग का आदेश भी ठेकेदारों और अफसरों की कमाई का नया जरिया खोल देता है। सरकारी स्तर पर जो बोरिंग किसी वजह से खराब हो चुके हैं, उनका इस्तेमाल सामूहिक रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए करने की कोई सोच ही विकसित नहीं है।

अगर सरकारी स्तर पर योजना बनाकर ऐसे खराब हो चुके बोरिंगों की जांच कर उनमें से सही गहराई वाले पाइप लाइनों के जरिए आस पास के इलाके के रेन वाटर को अंदर पहुंचाया जाए तब भी बहुत राहत मिल सकती है। वैसे यह काम भी तत्काल राहत देने वाला नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि रांची जैसे पहाड़ी इलाके की जमीन की गहराई पत्थर होते हैं।

ऐसे में पत्थरों को भेदकर अंदर पानी पहुंचाने के लिए ही बोरिंग करना पड़ता है। जिस तरीके से बोरिंग से पानी निकाला जाता है, ठीक उसी तरीके से जमीन के अंदर पानी पहुंचाने का भी इंतजाम होना चाहिए। (जारी)

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