केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का एक वीडियो सार्वजनिक मंच पर दिखा, जिसमें वह एक पत्रकार को उसकी कंपनी के नाम पर चेतावनी देती नजर आ रही है। दूसरी तरफ भाजपा के तमाम नेता आज भी महिला पहलवानों के मुद्दे पर बोलने से भाग रहे हैं। पार्टी संगठन लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात का प्रचार करने में जुटा है।
ऐसे मौके पर साफ समझना चाहिए कि जनता का मिजाज बदल रहा है। एक प्रमुख मीडिया घराना और विशेषज्ञ कंपनी के त्वरित सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आयी है कि लोग इस मुद्दे पर भाजपा की चुप्पी को अच्छी नजरों से नहीं देख रहे हैं। इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट आने के बाद पहले अमित शाह और बाद में खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने महिला पहलवानों से बातचीत की है।
दूसरी तरफ घटनाक्रम यह दर्शा रहे हैं कि अब भी पुलिस का नजरिया आरोपी सांसद बृजभूषण सिंह को बचाने वाला ही है। महिला पहलवानों ने साफ तौर पर उन्हें धमकी दिये जाने तथा मामले से पीछे हटने के लिए दबाव डालने की बात कही है। भारतीय जनता का मिजाज ऐसी बातों से नाराज होता है।
जिन पहलवानों के साथ फोटो खिंचवाने में श्री मोदी को कोई परेशानी नहीं थी, उनके मुद्दे पर दो शब्द बोलने से उन्हें क्या परहेज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय एथलीट, विशेष रूप से ओलंपिक पदक और अन्य वैश्विक प्रतियोगिताओं को जीतने वाले खिलाड़ियों को मान-सम्मान करने में पीछे नहीं रहते हैं।
उन्होंने अपनी छवि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश की है जो खेलों को लेकर काफी उत्साहित रहता है। पदक जीतकर लौटे खिलाड़ियों को उन्होंने घर बुलाकर दावत दी और सोशल मीडिया पर भी उन्हें शाबाशी देने में आगे रहे। ऐसे में, हैरानी इस बात को लेकर है कि आखिर पहलवानों के जारी विरोध को वह किस तरह देख रहे हैं या समझ रहे हैं, क्योंकि इस मुद्दे पर उनकी तरफ से एकदम सन्नाटा है।
ऐसा तब है जब विरोध प्रदर्शन कर रही महिला पहलवानों ने विनती की है कि वे उनके मन की बात तो सुन लें। सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगे हैं। कमेटी में भरोसेमंद नाम होने के बावजूद, महिला पहलवानों ने पाया कि कमेटी ने जांच के दौरान कुछ अलग ही रवैया अपना रखा था। आरोप है कि कमेटी के सदस्यों ने जांच के बारे में कुछ चुनिंदा जानकारियां मीडिया के एक धड़े के साथ साझा कीं।
इतना ही नहीं, भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और 6 बार के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के नजदीकी लोग प्रदर्शन करने वाली महिला पहलवानों और उनके परिवार के सदस्यों को फोन कर धमका रहे हैं कि अगर इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने पर जोर दिया तो नतीजे अच्छे नहीं होंगे। बुरी खबर तो यह है कि जांच कमेटी सदस्य ने अपना नाम गोपनीय रखने की शर्त के साथ बताया कि जो अंतिम रिपोर्ट खेल मंत्रालय को अप्रैल माह की शुरुआत में सौंपी गई है, उस पर उन्होंने हस्ताक्षर तो किए लेकिन उन्हें रिपोर्ट पूरी नहीं पढ़ने दी गई।
दरअसल यह पहला मौका नहीं है जब खेल प्रशासक, कोच और कप्तानों पर यौन शोषण के आरोप लगे हों। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि बीते 10 साल के दौरान खेल प्राधिकरण (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के विभिन्न परिसरों में कम से कम 40 ऐसी शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब हरियाणा के एक मंत्री और पूर्व हॉकी कप्तान संदीप सिंह पर इसी तरह के आरोप लगे थे और उन्हें मंत्रालय छोड़ना पड़ा था।
इसलिए मोदी जी के मन की बात के मुकाबले इस पदक विजेताओं की मन की बात का असर जनता पर अधिक हो रहा है, इस छोटी सी बात को भाजपा के लोग क्यों नहीं समझ पा रहे हैं, यह आश्चर्य का विषय है। ऐसे मुद्दों पर सत्ता के शीर्ष की चुप्पी से कोई अच्छा संदेश नहीं जा रहा है, इस पर संदेह की भी कोई गुंजाइश नहीं है।
इन तमाम घटनाक्रमों से जो असली सवाल उभर रहा है वह यह है कि क्या भाजपा के लिए लोकसभा और विधायनसभा की सीटों का इतना अधिक महत्व हो गया है कि वह आम जनता के सवालों से भी भागती रहे। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जिन सवालों से भागना चाहती है, वे जनता के मूल प्रश्न हैं और धीरे धीरे ऐसे सवालों से भाजपा के तमाम नेताओं को दो चार होना ही पड़ेगा।
जनता के सवालों से घिरने की दूसरी वजह यह भी है कि जिन मुद्दों को भाजपा और स्मृति ईरानी ने डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मुखरता से उठाया था, वे आज भी जनता के असली सवाल बने हुए हैं। इसलिए पत्रकारों को कंपनी मालिक की धमकी देकर इन सवालों को झूठलाया नहीं जा सकता और जैसे जैसे दिन बीतते जाएंगे, इस सवालों का शोर और तेज होता चला जाएगा, यह तय बात है।