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देश के दलित और आदिवासी समुदाय को शो पीस बना दिया

  • पूर्व राष्ट्रपति का भी उदाहरण दिया

  • राष्ट्रपति ही देश का सर्वोच्च नागरिक

  • सिर्फ कठपुतली बनाकर सजा दिया गया

नयी दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा नये संसद भवन का उद्घाटन नहीं कराने को लेकर सरकार को घेरते हुए कहा कि मोदी सरकार बराबर सर्वोच्च संवैधानिक पद की मर्यादाओं को लांघने का काम कर रही है। श्री खडगे ने कहा कि यह पहली बार नहीं हो रहा है।

उनका कहना था कि जब नये संसद भवन का शिलान्यास किया गया था तो तब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नजरअंदाज किया गया और अब संसद भवन बनकर तैयार है तो इसका उद्घाटन राष्ट्रपति से नहीं कराया जा रहा है।

कांग्रेस अध्यक्ष ने सरकार पर तीखा हमला किया और कहा ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने दलित एवं आदिवासी समुदाय की सहभागिता राष्ट्रपति चुनाव के लिए सिर्फ चुनावी कारणों से सुनिश्चित की है। नये संसद भवन के शिलान्यास समारोह में भी तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को आमंत्रित नहीं किया गया था और अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्र्मू को भी नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह के लिए नहीं बुलाया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि भारत की संसद राष्ट्र की सर्वोच्च विधायी संस्था है और राष्ट्रपति इसमें सर्वोच्च संवैधानिक अधिकार सम्पन्न है। राष्ट्रपति सरकार, विपक्ष और देश के हर नागरिक का समान प्रतिनिधित्व करती हैं। राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रथम नागरिक है।

उनके द्वारा नये संसद भवन का उद्घाटन लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतीक होगा। श्री खडगे ने आरोप लगाते हुए कहा मोदी सरकार ने बार-बार अधिकारों की इस मर्यादा का उल्लंघन किया है। ऐसा लगता है कि भाजपा-आरएसएस सरकार में राष्ट्रपति कार्यालय महज़ एक प्रतीकवाद तक सिमट कर गया है।

इससे पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सबसे पहले यह मुद्दा उठाया था और संवैधानिक शीर्ष पर बैठी द्रोपदी मुर्मू से इस भवन का उदघाटन नहीं कराने पर आपत्ति जतायी थी।

अब पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा ने भी पीएम के इस प्रतिष्ठित सदन का उद्घाटन करने के फैसले की निंदा की है। पीएम के लिए संसद के नए भवन का उद्घाटन करना संवैधानिक रूप से सही नहीं होगा। उन्होंने कहा कि वैसे तो इतनी अधिक रकम खर्च कर इसे बनाने की ही आवश्यकता नहीं थी। अमेरकिा और ब्रिटिश संसद सैकड़ों वर्षों से एक ही स्थान पर चल रहे हैं।

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