पिछले सोमवार को जारी कुछ संवेदनशील आंकड़ों ने पर्याप्त ध्यान आकृष्ट किया। सरकार के आंकड़े दिखाते हैं कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कलेक्शन अप्रैल में 1.87 लाख करोड़ रुपये के साथ अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। यह राशि पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 12 फीसदी अधिक है।
निरंतर उच्च जीएसटी कलेक्शन से न केवल सरकार की वित्तीय स्थिति संभालने में मदद मिलेगी बल्कि खपत पर लगने वाला कर होने के कारण यह समग्र अर्थव्यवस्था की सेहत के बारे में भी बताता है। लेकिन इस कोष संग्रह को और अधिक गहराई से समझने की आवश्यकता है। इसमें से ढेर सारा पैसा तो सरकार के एक विभाग से जीएसटी मद का भुगतान होगा, उस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है।
दूसरी बात यह है कि इस राजस्व संग्रह में कर के साथ साथ फाइन कितना है, यह स्पष्ट नहीं है। दरअसल जीएसटी के नियम के मुताबिक एक महीने की जीएसटी अगले महीने के पंद्रह तारीख तक जमा नहीं करने पर यह फाइन लगता है। इसलिए मूल कर कितना और उस पर लगा फाइन कितना है, यह स्पष्ट होने के बाद ही यह पता चल पायेगा कि दरअसल देश की अर्थव्यवस्था में कितनी तेजी आ रही है।
देश के दूसरे आंकड़े यह बताते हैं कि सभी यात्री वाहनों की आपूर्ति 13 फीसदी बढ़ी। अन्य आंकड़ों की बात करें तो कोयला उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया जिससे बिजली उत्पादन कंपनियों को मदद मिलेगी। चूंकि सकल घरेलू उत्पाद के आधिकारिक आंकड़े थोड़ा ठहरकर सामने आते हैं इसलिए विश्लेषक इन उच्च संवेदी आंकड़ों की मदद से अर्थव्यवस्था की गति को आंकने की कोशिश करते हैं। शीर्ष आंकड़े भी बेहतर नजर आते हैं, खासकर यह देखते हुए कि वैश्विक अर्थव्यवस्था गति खो रही है और इस वर्ष उसमें खासी गिरावट आने की उम्मीद है।
दरअसल समय पर भुगतान नहीं करने की वजह से देश के केंद्र और राज्य सरकार के विभाग इस जीएसटी पर कितना जुर्माना भर रहे हैं, इसके आंकड़े सामने आने के बाद ही पता चल पायेगा कि देश के अर्थव्यवस्था की गाड़ी कितनी आगे बढ़ रही है या फिर सिर्फ सरकार की एक जेब का पैसा दूसरी जेब में अधिक जा रहा है।
सरकारी अधिकारी इस फाइन पर अधिक ध्यान नहीं देते क्योंकि यह उनकी जेब से नहीं जाता है। इसके बावजूद उच्च संवेदी आंकड़ों का आकलन सावधानी से किया जाना चाहिए और यह काम समुचित संदर्भ के साथ होना चाहिए। उदाहरण के लिए जीएसटी के मामले में अप्रैल का संग्रह मार्च के लेनदेन को दिखाता है।
चूंकि मार्च वित्त वर्ष के समापन वाला माह है इसलिए यह संभव है कि कारोबारियों ने वर्ष समाप्त होने के पहले अपने पास बकाया राशि जमा कर दी हो। हालांकि पिछले वर्ष के समान माह के साथ तुलना करना उचित है लेकिन 12 फीसदी की वृद्धि को समग्र नॉमिनल आर्थिक वृद्धि दर के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए 2022-23 के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक महंगाई समायोजित किए बगैर भारतीय अर्थव्यवस्था के 15.9 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। व्यापक स्तर पर यह ध्यान देना आवश्यक है कि जीएसटी के क्रियान्वयन से समग्र कर संग्रह में काफी सुधार होने की उम्मीद थी। परंतु अब तक यह लक्ष्य हासिल नहीं हो सका है। चालू वित्त वर्ष के लिए केंद्र के स्तर पर समग्र कर संग्रह के जीडीपी के 11.1 फीसदी के बराबर रहने का अनुमान है जो पिछले वर्ष के अनुरूप है।
अप्रत्यक्ष कर संग्रह के जीडीपी के 5.1 फीसदी के बराबर रहने की बात कही गई है। तुलनात्मक रूप से देखें तो 2016-17 में यह जीडीपी के 5.6 फीसदी के बराबर था। जीएसटी प्रणाली के अनुमान के मुताबिक प्रदर्शन न कर पाने की प्राथमिक वजह है दरों में समय से पहले कमी करना और दरों और स्लैब को तार्किक बनाने का अनिच्छुक होना।
ऐसे में यह देखना होगा कि आने वाले महीनों में जीएसटी कलेक्शन किस दिशा में जाता है। मुद्रास्फीति की दर में अनुमानित कमी समग्र संग्रह को प्रभावित कर सकती है। सतत उच्च वृद्धि के लिए निजी निवेश अहम है लेकिन उसमें अपेक्षित तेजी नहीं आ रही है। ऐसे में चालू वर्ष के लिए जहां ये ताजा संकेतक उत्साह बढ़ाने वाले हैं, वहीं यह देखना होगा कि आगे यह वर्ष कैसा बीतता है।
वैश्विक उत्पादन और व्यापार वृद्धि में अहम गिरावट अर्थव्यवस्था की समग्र गतिविधियों को प्रभावित करेगी। इसके अलावा अमेरिका समेत विकसित देशों की वित्तीय दिक्कतें और सख्त मौद्रिक नीति पूंजी प्रवाह को प्रभावित करेगी और इसका असर वृद्धि पर होगा। ऐसे में नीति निर्माताओं को सावधान रहना होगा और आने वाले आंकड़ों का अध्ययन सावधानीपूर्वक करना होगा। इसलिए जीएसटी को आधार मानकर देश की अर्थव्यवस्था के तेजी से दौड़ने की दावेदारी में दरअसल कितनी सच्चाई है, वह इन आंकड़ों के गहन विश्लेषण से ही स्पष्ट हो सकता है। वरना सरकार की एक जेब से दूसरी जेब में पैसा जाने भर को तरक्की नहीं कह सकते।