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नईदिल्लीः संस्कृत में एक श्लोक है, ऋणं कृत्वा घृतम पिवेत। यानी कर्ज लेकर भी घी का सेवन करना। देश का हजारों करोड़ लेकर लंदन भागे उद्योगपति विजय माल्या ने कुछ ऐसा ही किया है। वैसे यह जानकारी उस समय सीबीआई द्वारा दी गयी है जबकि मेहुल चोकसे के खिलाफ इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस हटा लिया गया है।
चोकसे पर इंटरपोल की इस कार्रवाई की वजह से सरकार संदेह के घेरे में है। अब विजय माल्या के बारे में सीबीआई का दावा है कि माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस कर्ज और छंटनी से जूझ रही है, उद्योगपति ने इंग्लैंड और फ्रांस में 330 करोड़ रुपये की संपत्तियां खरीदी हैं। माल्या के खिलाफ चल रही जांच में सीबीआई ने हाल ही में मुंबई की एक अदालत में अतिरिक्त चार्जशीट दायर की थी।
बताया जाता है कि 2015 से 2016 के बीच जब उनकी कंपनी गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रही थी तब माल्या ने इंग्लैंड और फ्रांस में ये संपत्तियां खरीदीं। माल्या पर आरोप है कि वह आईडीबीआई बैंक से 900 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाए बिना देश छोड़कर भाग गया। इस घटना में जांचकर्ताओं ने अतिरिक्त चार्जशीट में उस बैंक के तत्कालीन महाप्रबंधक बुद्धदेव दासगुप्ता को भी नामजद किया है।
बुद्धदेव पर आरोप है कि 2009 में उन्होंने माल्या को 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज दिलाने के लिए अपने पद और ताकत का गलत इस्तेमाल किया। नियमों के मुताबिक माल्या को 750 करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज नहीं मिलना था। लेकिन उस अतिरिक्त 150 करोड़ के लिए माल्या की ऋण राशि 900 करोड़ थी।
सीबीआई के साथ ईडीओ माल्या के खिलाफ वित्तीय धोखाधड़ी के आरोपों की जांच कर रहा है। जनवरी 2019 में मुंबई की एक विशेष अदालत ने माल्या को भगोड़ा घोषित किया था। अगर अदालत किसी को भगोड़ा घोषित करती है तो जांच एजेंसी उस शख्स की सारी संपत्ति जब्त कर सकती है। लेकिन सीबीआई द्वारा जानकारी देने के समय पर सवाल उठ रहे हैं तथा दूसरी तरफ यह सवाल अब भी खड़ा है कि सीबीआई और ईडी ने मेहुल चोकसे के खिलाफ कार्रवाई में ढील क्यों दी है।