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इसका घनत्व पानी के काफी करीब है
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पहले कभी ऐसा कृत्रिम बर्फ नहीं बना
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रासायनिक संरचना पर शोध जारी है
राष्ट्रीय खबर
रांचीः सामान्य पानी से ही बर्फ बनता है और हम जानते हैं कि पानी से बर्फ बनने के बाद दोनों की प्रकृति में काफी बदलाव आ जाता है। आणविक संरचना के स्तर पर भी इस बदलाव की जानकारी पहले से ही वैज्ञानिक क्या आम लोगों को भी है।
वैसे धरती पर प्राकृतिक तौर पर बनने वाले बर्फ के अलावा रासायनिक प्रक्रिया से बने बर्फ के बीच भी संरचना का अंतर होता है। इस क्रम में पहली बार प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका साइंस ने नये प्रकार के बर्फ की जानकारी दी है। यह काम यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन में किया गया है।
इस नये किस्म के कृत्रिम बर्फ की रासायनिक और आणविक संरचना दूसरे बर्फ से अलग है। इसलिए इसे नये किस्म का बर्फ माना जा रहा है। इस बर्फ में दूसरे किस्म के कृत्रिम विधि से बने बर्फ की तरह आणविक संरचना क्रमवार नहीं होती। इसमें सारे अणु एक दूसरे से स्फटिक की तरह जुड़े होते हैं। इस बर्फ को शोधकर्ताओं ने एमॉरफस बर्फ का नाम दिया है।
रासायनिक परीक्षण में पाया गया है कि इसका घनत्व की दूसरे प्रकार के बर्फ से अलग है। इस हिसाब से यह पानी के बिल्कुल करीब वाली स्थिति में है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के केमिस्ट रोसू फिनसेन ने अपने शोध दल के साथ मिलकर इसे तैयार किया है।
इसे बनाने के बाद यह बताया गया है कि इस नये किस्म के बर्फ का घनत्व 1.06 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है जबकि पानी का एक ग्राम होता है। इसलिए इसे पानी के सबसे करीब का बर्फ भी माना गया है। दरअसल अपने शोध के क्रम में वैज्ञानिकों ने अत्यंत ठंडे स्टील के ठोस गेंदों के करीब पानी के रखा था।
पानी जमने के बाद जो बर्फ इन स्टील के बॉलों के करीब बना, वह पहले से तय मापदंडों से बिल्कुल अलग था। इसी वजह से उसका गहन परीक्षण कर सारे अंतर को देखा गया है। पानी के इतने करीब के घनत्व का कोई बर्फ इससे पहले कृत्रिम तौर पर नहीं बनाया जा सका था। इसी कॉलेज के दूसरे केमिस्ट क्रिस्टोफ सालजमान ने कहा कि इससे कई धारणाएं भी बदल जाएंगी।
वर्तमान में अंतरिक्ष विज्ञान भी सुदूर आकाश में पानी की ही खोज कर रहा है। यह खोज इसलिए जारी है ताकि धरती के विकल्प के तौर पर बसने लायक कोई इलाका खोजा जा सके। अब नये किस्म का यह बर्फ तैयार होने के बाद किसी भी इलाके में पानी इस स्वरुप में है अथवा नहीं, उसकी भी जांच होगी।
वैज्ञानिक इसे महत्वपूर्ण जानकारी मानते हैं। कई शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रचुरता में आसानी से उपलब्ध होने की वजह से आम इंसान पानी की कीमत को नहीं समझता लेकिन विज्ञान के स्तर पर इसकी संरचना काफी पेचिदगी भरा है।
इस शोध के बारे में बताया गया है कि शोध दल ने इसे काफी अधिक ठंडा करने के लिए तरल नाइट्रोजन का प्रयोग किया। इससे तापमान को शून्य से दो सौ डिग्री तक नीचे ले जाने में मदद मिली। इसमें सामान्य बर्फ डालकर उसे हिलाने के बाद ऐसे नया बर्फ तैयार हुआ है। यह देखने में शीशे जैसा है लेकिन यह घास पर ठंड में जमने वाले बर्फ के बुरादों से भी भिन्न है। इसलिए नये किस्म के इस बर्फ की रासायनिक संरचना पर अभी और शोध चल रहा है।