इस्लामाबादः पाकिस्तान ने कभी अमेरिकी सेना के खिलाफ और तालिबान के समर्थन में जिन आतंकी गुटों को पनाह और मदद दी थी, आज वे लोग भी पाकिस्तान की सरकार के गले की हड्डी बन गये हैं।
पेशावर के एक मसजिद में हुए विस्फोट के बाद पहले तो टीटीपी के एक कमांडर ने इसकी जिम्मेदारी ली लेकिन बाद में इसी आतंकवादी संगठन के प्रवक्ता ने इस हमले में उनके संगठन का हाथ होने से साफ इंकार कर दिया।
दरअसल अफगानिस्तान ने भी मसजिद में आतंकी कार्रवाई की निंदा करते हुए इसे इस्लाम के खिलाफ बताया है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच कड़वे रिश्तों के बीच ही पाकिस्तान को अपने ही देश के अंदर सक्रिय इस आतंकवादी संगठन को अब झेलना पड़ रहा है।
यह संगठन पिछले पंद्रह वर्षों से सक्रिय रहा है लेकिन अब पाकिस्तान की सरकार को इस संगठन से परेशानी होने लगी है। लेकिन इसके साथ ही जुड़ा हुआ यह सवाल भी है कि आखिर ऐसा संगठन पाकिस्तान में इतना अधिक संगठित और मजबूत कैसे हुआ।
सभी जानते हैं कि वर्ष 2007 में अमेरिकी और नाटो सेना के खिलाफ छापामार युद्ध करते तालिबान की मदद के लिए पाकिस्तान के कई आतंकवादी संगठन एकजुट हुए थे। उन्हें परोक्ष तौर पर पाकिस्तान की सेना का भी समर्थन हासिल था।
अफगानिस्तान में तालिबान का शासन लागू होने के बाद इन संगठनों के लिए वहां कोई काम नहीं बचा था। पहले अपने देश से अफगानिस्तान जाने में इन आतंकी संगठनो की मदद करना ही अब पाकिस्तान के लिए घाटे का सौदा बन गया है।
अब टीटीपी ने पाकिस्तान सरकार को ही चुनौती देना प्रारंभ कर दिया है। इस क्रम में पाकिस्तान की पुलिस और सेना पर कई हमले हो चुके हैं। तालिबान ने अपने जेलों में बंद टीटीपी के लोगों को छोडने के साथ साथ स्पष्ट किया कि वे अफगानिस्तान की धरती पर किसी आतंकी कार्रवाई की इजाजत नहीं देंगे।
इसके बाद भी पाकिस्तान अच्छी तरह जान रहा है कि टीटीपी के शिविर अफगानिस्तान में हैं और तालिबान शासन का उन्हें समर्थन भी है। इसी वजह से पाकिस्तान की सरकार के साथ सीज फायर होन के बाद अचानक से टीटीपी ने इस सीज फायर को समाप्त करने का एलान कर दिया।
अब पाकिस्तान की सेना और सरकार ने जिनलोगों को अपने ही समर्थन से मजबूत बनाया था, वे अब पाकिस्तान की सत्ता को लगातार चुनौती दे रहे हैं। आशंका इस बात की भी है कि आने वाले दिनों में टीटीपी के हमले और बढ़ेंगे क्योंकि पाकिस्तान खुद ही कमजोर सत्ता की परेशानियों से जूझ रहा है।