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ब्रह्मांड की आधी दूरी से आ रहा है संकेत

  • इसकी पहचान एक्सरे किरण के तौर पर

  • सीधी धरती पर नहीं आती तो पता नहीं चलता

  • भावी उन्नत टेलीस्कोपों से और जानकारी मिल पायेगी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने एक अज्ञात रोशनी की पहचान की है, यह चमक के तौर पर सीधे धरती की तरफ आ रही है। इस चमक का ठिकाना खोजते हुए वैज्ञानिकों ने पाया है कि दरअसल एक ब्लैक होल से यह प्रकाश सीधे हमारी तरफ आ रही है। इसका कारण और बाकी जानकारी अब तक नहीं मिल पायी है।

लेकिन यह पता चला है कि जहां से यह रोशनी धरती की चरफ एक फ्लैश की तरह आ रहा है वह उस पूरे ब्रह्मांड के आधी दूरी पर मौजूद है। इस रोशनी की पहचान करने के बाद यह बताया गया है कि यह दरअसल एक्सरे है, जो बहुत ही तेज है। इसके साथ ही उसके रेडियो संकेत भी धरती तक पहुंच रहे हैं। इस तरंग को फिलहाल एटी 2022 सीएमसी नाम दिया गया है। अभी इसके बारे में और अधिक जानकारी जुटाने का काम खगोल वैज्ञानिकों के द्वारा किया जा रहा है ताकि इसके बारे में और बताया जा सके।

इसकी पहचान सबसे पहले कैलिफोर्निया के एक खगोल शोध केंद्र के वैज्ञानिकों ने की थी। इसके बारे में नेचर एस्ट्रोनॉमी पत्रिका में जानकारी दी गयी है। यह पाया गया है कि इस रोशनी की गति भी प्रकाश की गति के जितनी ही है और यह काफी दूरी पर स्थित एक बहुत बड़े ब्लैक होल से निकल रही है।

शोध की गाड़ी आगे बढ़ने पर इसमें एमआईटी और यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के लोग भी शामिल हुए। इस बारे में नजर रखा जाने लगा तो पता चला कि इस ब्लैक होल ने अपने पास के एक तारे को अचानक निगलना प्रारंभ कर दिया। इस प्रक्रिया में उसके आस पास ऊर्जा का विस्फोट होने लगा।

वैसे इस घटना के देखकर यह उम्मीद बंधी है कि ब्लैक होल द्वारा तारों को निगलने की प्रक्रिया के बारे में और अधिक जानकारी मिल पायेगी। यह पहले ही पता चल चुका है कि तारों को निगल जाने के क्रम में ब्लैक होल के आस पास जो गैस फैलती है, उसकी रोशनी से ही ब्लैक होल कहां स्थित है, इसका पता चल जाता है। वरना इसके पहले ब्लैक होल का अनुमान लगाना भी कठिन था।

वैसे शोध दल के मुताबिक धरती तक पहुंचने वाले सिग्नलों में यह अब तक का सबसे दूरी का संकेत है। यह करीब साढ़े आठ बिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी से आ रहा है। इतनी दूरी से सीधे धरती तक आने वाली इस रोशनी ने वैज्ञानिकों की उत्सुकता को भी बढ़ा दिया है। यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के प्रोफसर डॉ मैट निकोल ने कहा कि जहां से यह रोशनी आ रही है, वहां का तापमान करीब तीस हजार डिग्री है।

वहां से आते वक्त कुछ रोशनी को सौर मंडल भी सोख रहा है। शायद इस रास्ते के उतार चढ़ाव की वजह से वहां के रेडियो सिग्नल साफ साफ नहीं पहुंच रहे हैं। लेकिन इस एक घटना से यह साफ हो जाता है कि पूरे ब्रह्मांड के आकार के बारे में पहले जो परिकल्पना की गयी थी, उसका वास्तविक आकार कहीं और अधिक है। शोध दल ने यह बताया है कि अगर यह रोशनी धरती की सीध में नहीं होती तो इतनी स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाती। वैसे इस किस्म का आचरण का पता पहले भी तीन बार चल चुका है। शोधदल को उम्मीद है कि भविष्य के और अधिक उन्नत टेलीस्कोपों की मदद से इस बारे में और अधिक जानकारी मिल पायेगी।

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