लोकसभा में केंद्र सरकार के शांति विधेयक पर चर्चा जारी
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यूपीए सरकार में इसी का विरोध किया था
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भोपाल गैस त्रासदी से अलग राय कैसे है
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एक कॉरपोरेट समूह में ऐसा बिल लाया गया
राष्ट्रीय खबर
नई दिल्ली: लोकसभा में बुधवार को शांति विधेयक यानी सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया बिल 2025—पर चर्चा के दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस देखने को मिली। कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद मनीष तिवारी ने विपक्ष की ओर से चर्चा की शुरुआत करते हुए मसौदा कानून की कड़े शब्दों में आलोचना की।
उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भाजपा सरकार परमाणु दायित्व (न्यूक्लियर लायबिलिटी) शासन पर 2010 में बनी ऐतिहासिक सर्वसम्मति को तोड़कर भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों के साथ समझौता कर रही है।
परमाणु रंगभेद और ऐतिहासिक संदर्भ अपने 23 मिनट के संबोधन में तिवारी ने भाजपा पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जब तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार भारत के परमाणु रंगभेद को खत्म करने की कोशिश कर रही थी, तब भाजपा ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर इस कार्यक्रम को पटरी से उतारने का प्रयास किया था। उन्होंने कहा, आज जो लोग परमाणु ऊर्जा की बात कर रहे हैं, उन्होंने ही कभी भारत के परमाणु भविष्य में बाधा उत्पन्न की थी। तिवारी ने मांग की कि इस विधेयक की गंभीर खामियों को देखते हुए इसे संयुक्त संसदीय समिति या स्थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिए।
निजी क्षेत्र की भागीदारी और क्रोनी कैपिटलिज्म का आरोप मनीष तिवारी ने विधेयक में निजी भागीदारी के प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए इसे एक बड़े कॉर्पोरेट समूह के हितों से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि यह बेहद चौंकाने वाला है कि एक निजी औद्योगिक घराने द्वारा परमाणु क्षेत्र में उतरने की घोषणा के ठीक एक महीने बाद यह बिल पेश किया गया है। उन्होंने तंज कसते हुए पूछा, क्या यह महज एक संयोग है? हालांकि, केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने इन आरोपों को निराधार और राजनीति से प्रेरित बताते हुए तुरंत खारिज कर दिया।
मुआवजे की सीमा और जवाबदेही पर विवाद विपक्ष का सबसे मुख्य विरोध परमाणु दायित्व की सीमा को लेकर है। विधेयक में मुआवजे की अधिकतम सीमा 410 मिलियन डॉलर (लगभग 3,000 करोड़ रुपये) रखी गई है। इसकी तुलना करते हुए तिवारी ने कहा कि 15 साल पहले भोपाल गैस त्रासदी के लिए मुआवजा 470 मिलियन डॉलर था। उन्होंने मांग की कि इस सीमा को बढ़ाकर कम से कम 10,000 करोड़ रुपये किया जाना चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि यदि कोई परमाणु दुर्घटना होती है, तो उसका उत्तरदायित्व विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर भी होना चाहिए, न कि केवल भारतीय ऑपरेटरों पर।
अन्य विपक्षी दलों का रुख कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी के आदित्य यादव, तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय और राकांपा (शरद पवार) की सुप्रिया सुले ने भी विधेयक का विरोध किया। विपक्षी नेताओं ने परमाणु कचरे के निपटान के लिए स्पष्ट तंत्र की कमी और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) की स्वायत्तता पर चिंता जताई। शशि थरूर ने इसे शांति बिल के बजाय अस्पष्ट बिल करार देते हुए कहा कि यह देश की सुरक्षा और पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।