चैटजीपीटी पहले से इस्तेमाल में हैं पर एक्स के चैटबॉट ने राजनीतिक तूफान खड़ा करने में कामयाबी पायी है। लेकिन इससे यह सवाल उठता है कि यह दोनों कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित तकनीक किसी विचारधारा के समर्थक अथवा विरोधी तो नहीं हैं। यह प्रश्न इसलिए प्रासंगिक हैं क्योंकि चीन का डीपसीक चीन की राजनीति अथवा दमन से संबंधित सवालों का सही उत्तर नहीं देता है।
फिर भी यह अब स्वीकारा जाना चाहिए कि इन्होंने भारतीय सत्ता पक्ष यानी भाजपा को परेशानियों के बीच खड़ा कर दिया है। आम तौर पर भोली भाली आचरण करने वाली भारतीय जनता अब इस नई तकनीक का मजा ले रही है तो दूसरी तरफ फर्जी कहानियों और मुख्य धारा की मीडिया के सहारे एजेंडा परोसने वाले लोगों को हर पग पर सत्य की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
महाराष्ट्र के नागपुर सहित देश के कई भागों में अचानक से औरंगजेब के मुद्दे पर उठा विवाद यही सवाल खड़ा करता है कि इस मुगल सम्राट की चर्चा से किसी एक गरीब का पेट भरता है क्या। वैश्विक स्तर पर देखें तो एक एक्स-उपयोगकर्ता ने राजनीतिक कम्पास परीक्षण चलाया, जहाँ उसने दिखाया कि ग्रोक- एलन मस्क के स्वामित्व वाले एआई चैटबॉट की राजनीतिक प्राथमिकताएँ ओपनएआई के चैटजीपीटी के समान दिखती हैं।
टेक अरबपति ने कहा कि कंपनी अपने एआई चैटबॉट को और अधिक राजनीतिक रूप से तटस्थ बनाने के लिए तत्काल कार्रवाई कर रही है। शोधकर्ता डेविड रोज़ाडो, जो एक वैज्ञानिक हैं और जिन्होंने (एक्स पर) परीक्षण चलाया, की एक पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए, मस्क ने कहा, वह चार्ट स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है, लेकिन हम ग्रोक को राजनीतिक रूप से तटस्थ बनाने के लिए तत्काल कार्रवाई कर रहे हैं।
जान लीजिए कि यह परीक्षण क्या था? बताया गया था कि 60 से ज़्यादा सवालों की मदद से ऑनलाइन टेस्ट में व्यक्ति की राजनीतिक मान्यताओं को दो अक्षों के साथ दर्शाया जाता है। डेविड रोज़ाडो ने अपने पोस्ट में बताया कि चैटजीपीटी और ग्रोक ने एक जैसे नतीजे दिए। उन्होंने ग्राफ की एक तस्वीर भी शामिल की, जिसमें दिखाया गया कि दोनों चैटबॉट कितने करीब से प्लॉट किए गए हैं।
उनके टेस्ट में ग्रोक चैटजीपीटी की तुलना में बाईं ओर ज़्यादा दिखाई दिया। एक फॉलो-अप प्रतिक्रिया में, मस्क ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि टेस्ट सटीक लग रहा था। इस टेस्ट पर एलन मस्क ने क्या कहा? क्विज़ से कई सवालों को सूचीबद्ध करते हुए, एलन मस्क ने कहा, यह परीक्षण सटीक नहीं लगता है। कुछ सवाल पूरी तरह से हास्यास्पद हैं और कई में कोई सूक्ष्मता नहीं है।
इस बीच, वैज्ञानिक रोज़ाडो ने एक अनुवर्ती पोस्ट में कहा कि ग्रोक के बारे में उनके पोस्ट के कुछ ही मिनटों के भीतर, ग्रोक के इगोर बाबुश्किन ने उनसे संपर्क किया, जिन्होंने पद्धतिगत सवालों और ग्रोक को बेहतर बनाने में वास्तविक रुचि के साथ संपर्क किया। उन्होंने मस्क को भी तुरंत नोटिस किया और घोषणा की कि वे ग्रोक को और अधिक राजनीतिक रूप से तटस्थ बनाने के लिए तेजी से कार्य करेंगे।
उन्होंने आगे कहा, क्या समर्पित टीम है… इसमें कोई संदेह नहीं है कि ग्रोक का भविष्य उज्ज्वल है। अब देश के भीतर सत्य जांचने का यह नया हथियार आम लोगों के अलावा उनलोगों के भी काम आ रहा है जो आम तौर पर शोर गुल के सहारे अपनी बात को रखना पसंद नहीं करते। वरना आईटी सेल के छिपे हुए चेहरों का काम ही किसी विपरित विचारधारा की भद्दी आलोचना करना है ताकि सामने वाला हतोत्साहित हो जाए।
ग्रोक के आने के बाद हर कोई यह जांच सकता है कि भाजपा के लिए काम करने वाले ऐसे नामों ने अचानक से अपने चेहरे हटाकर भगवान के चित्र लगा दिये हैं। लेकिन सावरकर से लेकर आरएसएस तक के इतिहास को यह नई तकनीक चंद क्षणों में खंगालकर उस सच को सामने ला देती है, जिसे सत्ता पक्ष नकारता रहा है।
लिहाजा अब साइबर सेल का सीधा मुकाबला आधुनिक विज्ञान से हो गया है। यानी यह लड़ाई गोबर खाने का समर्थन करने वालों के साथ सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष से सकुशल वापसी के बीच है। ग्रोक में अनेक ऐसे सवाल उठाये गये हैं, जिनके उत्तर ने निश्चित तौर पर भाजपा के तमाम प्रचार को पल भर में धराशायी कर दिया है, जिसके पीछे काफी मेहनत की गयी थी।
अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता का मुकाबला किस मुकाम तक पहुंचता है, यह देखना इसलिए भी रोचक होगा क्योंकि भारतीय आबादी में अब भी मोबाइल की पहुंच निरंतर बढ़ती जा रही है। पहले पल भर में व्हाट्सएप संदेशों को विभिन्न समूहों में प्रसारित करने वालों को भी इस ग्रोक के उत्तरों से दो चार होना पड़ रहा है और यह निश्चित तौर पर एकतरफा प्रचार करने वालों के लिए एक अत्यंत असहज स्थिति बन गयी है।
[…] बोलता है। जी हां मैं मस्क साहब के नये ए आई चैटबॉट की बात कर रहा हूं। लगता है भाई साहब ने […]