आदिवासियों के उबलते आक्रोश को नजरअंदाज करना भारी पड़ा
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बेहतर स्थिति से यहां पहुंची गीता कोड़ा
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अर्जुन मुंडा को भितरघात भी झेलना पड़ा
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चमरा लिंडा भाजपा को फायदा नहीं दिला पाये
राष्ट्रीय खबर
रांचीः झारखंड के लोकसभा चुनावों में भाजपा को पिछली बार के मुकाबले बहुत अधिक बुरा परिणाम देखना पड़ा है। जाहिर है कि खास तौर पर आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की पराजय वह संकेत साफ करती है, जिसे पहले से ही महसूस किया जा रहा था। यह मुद्दा दरअसल जमीन घोटाला में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का था।
झारखंड का पढ़ा लिखा आदिवासी समुदाय यहां के जमीन संबंधी कानूनों को बेहतर जानता है। इसलिए जब एक जमीन के मामले में ईडी ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया तो जमीन के स्वामित्व की जांच हुई और ईडी के साथ साथ भाजपा के आरोपों को भी आदिवासी समुदाय के बहुमत ने गलत पाया। जिस जमीन को लेकर हेमंत सोरेन गिरफ्तार हुए थे, उसका स्वामित्व भूईहरी था और असली मालिक के नाम पर ही था।
इससे यह बात अंदर ही अंदर फैलती गयी कि भाजपा दरअसल आदिवासियों से नफरत करती है। इसी वजह से आदिवासी मुख्यमंत्री को जबरन और झूठे मामले में जेल में डाला गया। अब इसके परिणामों पर गौर करें तो सिंहभूम की सीट पर कांग्रेस से भाजपा में गयी गीता कोड़ा को चुनाव के पहले कोई चुनौती नहीं थी। हेमंत सोरेन और उनके सलाहकारों ने पूर्व मंत्री जोबा मांझी को मैदान में उतारकर उनके स्वर्गीय पति देवेंद्र नाथ मांझी से जुड़ी सहानुभूति को भी उभार दिया। जिसका परिणाम अब सामने आया है। भाजपा के दिग्गज नेता भी वहां चुनाव प्रचार करने के बाद भी गीता कोड़ा को जीता नहीं पाये।
इसी तरह खूंटी का मामला भी है, जहां प्रदेश के अन्यतम कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा मैदान में थे। वैसे अर्जुन मुंडा के मामले में यह चर्चा भी है कि इस बार भाजपा के ही दूसरे नेता नीलकंठ सिंह मुंडा उनके साथ पूरी ताकत से नहीं जुड़े। दूसरी तरफ सरना कोड का मुद्दा भी हेमंत के खिलाफ चला गया। एग्जिट पोल में जीत की संभावना व्यक्त होने के बाद भी स्थानीय पत्रकारों ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि खूंटी से इस बार कालीचरण मुंडा लोकसभा में पहुंचेंगे। चुनाव की गाड़ी इसी दिशा में बढ़ती नजर आयी।
लोहरदगा सीट पर भी सरना कोड और हेमंत सोरेन का मुद्दा उभरा पर कुछ लोग मानते थे कि चमरा लिंडा के मैदान में होने का लाभ भाजपा को मिल सकेगा। यह आकलन भी गलत साबित हुआ क्योंकि एकमुश्त मतदान ने सुखदेव भगत की राह को लगातार आसान बनाने का काम किया।
दुमका की सीट पर भी हेमंत सोरेन की भाभी को भाजपा की टिकट पर मैदान में उतारना एक जुआ था। भाजपा ने यह जुआ खेला क्योंकि उसे दूसरे के घरों में फूट डालकर लाभ उठाने को प्रेरित किया। बावजूद इसके भाजपा के रणनीतिकार यह भूल गये कि संथाल के आदिवासी आज भी दरअसल दिशोम गुरु यानी शिबू सोरेन को ही भगवान की तरह पूजते हैं। उनके खेमा से बाहर निकलकर किसी का आदिवासियों के बीच नये सिरे से पैठ बनाना आसान काम नहीं था।