-
पांच जजों की बेंच में सुनवाई जारी
-
सरकार को स्वतंत्रता और छूट चाहिए
-
देश बचाने का तर्क भी महत्वपूर्ण
भूपेन गोस्वामी
गुवाहाटी : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार को 25 मार्च, 1971 के बाद असम और उत्तर-पूर्वी राज्यों में अवैध प्रवासियों की आमद पर डेटा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने केंद्र को यह भी निर्देश दिया कि वह पूर्वोत्तर राज्यों विशेषकर असम में अवैध आप्रवासन से निपटने के लिए प्रशासनिक स्तर पर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी दे।
सीमा पर बाड़ लगाने की सीमा और सीमा पर बाड़ लगाने को पूरा करने की अनुमानित समयसीमा के संबंध में विवरण प्रस्तुत करना होगा। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश पारित किया, जिसे असम समझौता, 1985 लागू करने के लिए जोड़ा गया था।
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) 2019 और नागरिकता कानून की धारा 6ए पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने अहम टिप्पणी की। पूर्वोत्तर के कई राज्य उग्रवाद और हिंसा से प्रभावित हैं। इस बात को रेखांकित करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देश को बचाने के लिए जरूरी फैसले करने के नजरिए से सरकार को स्वतंत्रता और छूट दी जानी चाहिए।
असम पर लागू नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकारों को राष्ट्र की समग्र भलाई के लिए समझौता करना होगा। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, हमें सरकार को भी वह छूट देनी होगी। आज भी उत्तर पूर्व के कुछ हिस्से हैं, हम उनका नाम नहीं ले सकते, लेकिन यह इलाके उग्रवाद से प्रभावित, हिंसा से प्रभावित राज्य हैं। हमें देश को बचाने के लिए सरकार को जरूरी फैसले / समायोजन करने की छूट देनी होगी। कानून की इस धारा की संवैधानिक वैधता की जांच करने के लिए अदालत ने 17 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने का फैसला लिया है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ा है। एक दिन पहले इसी मामले में शीर्ष अदालत ने सरकार से असम में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के लाभार्थियों का डेटा मांगा।
अदालत ने कहा कि उसके सामने ऐसी कोई सामग्री नहीं है जिससे पता चल सके कि 1966 और 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रभाव इतना बड़ा था कि सीमावर्ती राज्य की जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक पहचान पर इसका प्रभाव पड़ा। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि असम के स्वदेशी लोग अपनी ही मातृभूमि में भूमिहीन और विदेशी बनकर रहने को बाध्य हैं।
कानून का यह हिस्सा केवल पूर्वोत्तर राज्य पर लागू है। बता दें कि सीजेआई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ साफ कर चुकी है कि अदालत असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की वैधता पर विचार नहीं कर रही है। अदालत इस मामले को नागरिकता कानून की धारा 6ए के पहलुओं तक ही सीमित रखेगी।