महिला पहलवानों के आरोप और जंतर मंतर पर जारी धरना के क्रम में अब राजपूत संगठन ब्रजभूषण सिंह के समर्थन मे आगे आये हैं। अनुमान है कि कुछ और ऐसे संगठन भी सक्रिय होंगे। दरअसल खेल महासंघ के बड़े पदाधिकारी के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगे हैं और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिताओं में पदक जीतने वाली खेल प्रतिभाओं को अपनी मांग मनवाने के लिए धरने पर बैठना पड़ा है।
महिला पहलवानों ने पहले भी इस मामले में आंदोलन किया था। जनवरी में खेल मंत्रालय ने जांच के लिए प्रसिद्ध बॉक्सर मैरी कॉम की अगुआई में कमेटी गठित की थी। समिति ने माह के पहले सप्ताह में इस संबंध में अपनी रिपोर्ट सौंप दी । लेकिन किसी अंतिम निष्कर्ष की घोषणा न होने से महिला पहलवान क्षुब्ध होकर धरने पर बैठ गईं। मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा।
न्यायालय ने मामले में प्राथमिकी दर्ज न करने को गंभीर मसला बताया है। सुप्रीम कोर्ट के दबाव में दिल्ली पुलिस ने एफआईआर लिख ली लेकिन गिरफ्तारी का प्रयास नहीं किया गया। हालांकि महिला पहलवानों के बयान लिए जाने शुरू हो गए हैं। खिलाड़ी बृजभूषण की गिरफ्तारी से पहले धरना समाप्त करने को तैयार नहीं है। ऐसे में दिल्ली पुलिस को लेकर सवाल अभी बने हुए हैं।
उधर विवाद के केंद्र में बने महासंघ के प्रमुख इसे व्यक्तिगत रंजिश का मामला कहते हुए खुद को निर्दोष बता रहे हैं। महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि देश के शीर्ष पहलवानों के विरोध प्रदर्शन के कारण पिछले चार महीने से खेल की सभी गतिविधियां ठप पड़ी हैं। निस्संदेह, वैश्विक स्तर पर लगातार प्रतिस्पर्धी होते जा रहे खेलों में इस तरह के विवाद से खिलाड़ियों की एकाग्रता ही भंग होती है।
दरअसल विभिन्न भारतीय खेल संगठनों में दबंग राजनेताओं के वर्चस्व के चलते ऐसे आरोप गाहे-बगाहे लगाए जाते रहे हैं। पहलवानों के धरने पर जिस तरह विपक्ष के नेता पहुंच रहे हैं उससे मामले के राजनीतिकरण की भी भरपूर आशंका है। खिलाड़ियों ने राजनैतिक दलों से भी साथ आने कहा है।
तय है कि अब यह मुद्दा आगामी चुनाव में उछाला जाएगा। जानकारों के मुताबिक मामले को लेकर केंद्र सरकार भी दबाव में दिखाई दे रही है। क्योंकि आरोप सत्तारूढ़ दल के सांसद पर ही लगे हैं। हकीकत जो भी हो, सच्चाई तो सामने आनी ही चाहिए। निस्संदेह, ऐसे प्रकरण से खेल संगठनों समेत पूरे खेल तंत्र के प्रति देश में अविश्वास पैदा होगा।
आशा की जा सकती है कि सरकार की ओर से ऐसे कदम उठाए जाएंगे जिससे महिलाओं और खिलाड़ियों में कोई अच्छा संदेश जाए। इसके बीच की कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के समर्थन में एक संगठन का आगे आना दरअसल किसान आंदोलन के दौरान हुई राजनीति की याद दिला गया।
उस वक्त भी सरकार समर्थक मीडिया और कुछ खास लोगों ने अचानक से ही किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी और ना जाने क्या क्या कहा था। लेकिन इसके बाद भी किसान डटे रहे और नतीजा क्या हुआ, यह सभी के सामने हैं। भाजपा के कई नेताओं की जमीन ही कमजोर हो गयी। भले ही पश्चिमी उत्तरप्रदेश के चुनाव में भाजपा को अच्छी सफलता मिली लेकिन इस एक किसान आंदोलन ने जयंत चौधरी को इलाके का बड़ा नेता बना दिया।
अब जंतर मंतर पर किसानों का जत्था अलग अलग राज्य से पहुंच रहा है। कई राज्यों की खाप के चौधरी और पंचायतों के लोग भी महिला पहलवानों को समर्थन देने वहां क्रमवार तरीके से आने लगे हैं। यह धीरे धीरे किसान आंदोलन जैसा तेवर अख्तियार करता जा रहा है। इतना तो साफ है कि दिल्ली पुलिस को ऊपर से निर्देश है कि ब्रजभूषण सिंह के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाए वरना जिन धाराओं में एफआईआर दर्ज हुआ है, उससे तो आम आदमी कब का गिरफ्तार हो चुका होता।
जो बात भाजपा समझकर भी समझना नहीं चाहती कि इस एक घटना से भले ही उत्तरप्रदेश के कुछ इलाकों में भाजपा मजबूत बनी रहे लेकिन हरियाणा से उसकी जमीन तेजी से खिसक रही है क्योंकि खुद हरियाणा के मंत्री अनिल विज चिंता जता चुके हैं। उन्हें जमीनी हकीकत का पता है। जिस तरीके से किसानों और खासकर महिलाएं जंतर मंतर पर पुलिस का बैरिकेड तोड़कर पहुंची, वह भी बता देता है कि इन चार राज्यों के आंदोलनकारियों ने किसान आंदोलन के वक्त के पुलिस दमन से बहुत कुछ सीखा है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि दिल्ली पुलिस की लाठी जिन जवानों के हाथों में हैं, वे भी इन्हीं राज्यों के सामान्य परिवारो से आते हैं। कोई बड़ी बत नहीं है कि वहां आने वाले जत्थों में पुलिस वालो के अपने घर के लोग भी हों। ऐसे में सिर्फ अधिकारियों की बदौलत इस आंदोलन को रोकना केंद्रीय गृह मंत्री के बूते की बात नहीं रह जाएगी। आंदोलन और सरकार की जड़ता से दरअसल नरेंद्र मोदी की उस छवि को ही धक्का पहुंचा है, जिसे बड़ी सावधानी के साथ गढ़ा गया था। वह दिनोंदिन टूटता ही जा रहा है।