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इंसानी दिमाग पर बुरा असर डालती है अधिक गर्मी

  • पेट्रोल पंप या ट्रैफिक जाम में अक्सर नजर आता है

  • मनोश्चिकित्सक गर्मी में ऐसे अधिक लोग पाते हैं

  • बिना बात का भी उलझना इसकी पहचान है

राष्ट्रीय खबर

रांची: कई स्थानों पर मामूली बातों पर लोगों को आपस में उलझते देखकर आम आदमी हैरान होता है। जिन मुद्दों पर झगड़ा नहीं होना चाहिए, उस पर भी कई बार लोग हाथापायी पर उतर आ रहे हैं। ऐसा उदाहरण रांची के पेट्रोल पंपों पर पहले पेट्रोल लेने अथवा सड़क चलते दो बाइकों के सवारों में आगे निकलने के दौरान देखा इनदिनों आम बात है।

कई बार अपर बाजार की तंग गलियों में दो चार पहिया वाहनों के बीच से अपनी दो पहिया निकालने में जुटे मोटरसाइकिल या स्कूटर सवार भी इसी बात पर उलझ जाते हैं। वैसे पहले निकलने की चाह में सामने वाले वाहनों का रास्ता रोककर खड़ा होना भी इसमें शूमार है। इससे कई बार पहले ट्रेफिक जाम औऱ बाद में वाद विवाद होने लगता है।

अक्सर ऐसे विवादों को सुलझाने में पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ जाता है। अब गर्मी के मौसम पर इन परिस्थितियों के बारे में मानसिक चिकित्सा विशेज्ञषों ने कहा है कि इस तरह की घटना के लिए तापमान-प्रेरित तनाव को जिम्मेदार ठहराया है। चिकित्सक अपने ओपीडी में तापमान (गर्मी) से संबंधित तनाव के रोगियों की संख्या में वृद्धि देख रहे हैं।

मनुष्य के व्यवहार करने के तरीके पर तापमान का सीधा प्रभाव पड़ता है और इसलिए, गर्मियों के दौरान, ज्यादातर मई से जून तक, रोगियों की आमद बढ़ जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अत्यधिक गर्मी में इंसानी दिमाग अपना संतुलना खोने लगा है। इसी वजह से सड़कों पर अनियंत्रित व्यवहार जिसमें कोई अत्यधिक आक्रामक हो जाता है और हिंसक व्यवहार प्रदर्शित करता है, जिनमें से अधिकांश अकारण होते हैं।

एक मनोचिकित्सक ने इस तरह के व्यवहार को सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) करार दिया। रांची के बारे में उन्होंने कहा यह शहर छोटे अंतराल पर नाटकीय मौसम परिवर्तन का अनुभव करता है। तापमान में इस तरह के आमूल-चूल परिवर्तन का मानव मनोदशा में परिवर्तन के साथ सीधा संबंध है।

पर्याप्त नींद और विश्राम चिकित्सा, जैसे कि संगीत सुनना, अस्त-व्यस्त नसों को शांत करने और व्यक्तिगत स्तर पर आक्रामकता से निपटने में मदद करता है। ऐतिहासिक रूप से, एसएडी आमतौर पर ठंडे देशों में रहने वाले लोगों से जुड़ा होता है, जहां महीनों तक सूरज की रोशनी दिखाई नहीं देती है। हालांकि, भारत जैसे देशों में यह चलन बढ़ रहा है, जो किसी के मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है।

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