संसद का काम काज ठप है। दरअसल राहुल गांधी की सदस्यता आनन फानन में रद्द किये जाने और अब उन्हें घर खाली करने का नोटिस दिये जाने के बाद तनातनी और अधिक है। विपक्ष पहली बार एकस्वर से अडाणी मुद्दे पर जेपीसी के गठन की मांग कर रहा है। इस विवाद के बीच ही सीएजी की एक रिपोर्ट सरकार की परेशानी बढ़ाने जा रही है।
सीएजी की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय स्टेट बैंक को पुनर्पूंजीकरण अभ्यास के हिस्से के रूप में वित्त वर्ष 2018 में देश के सबसे बड़े ऋणदाता द्वारा इस तरह के फंड के बिना 8,800 करोड़ रुपये दिये गये थे।
सोमवार को संसद में पेश की गई एक कैग रिपोर्ट में कहा गया है। केंद्र सरकार (आर्थिक और सेवा मंत्रालय) पर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की 2023 की अनुपालन लेखापरीक्षा रिपोर्ट संख्या 1 के अनुसार, वित्त मंत्रालय के अधीन विभाग ने पुनर्पूंजीकरण से पहले अपने स्वयं के मानक अभ्यास के अनुसार पूंजी की आवश्यकता का आकलन नहीं किया। साथ में यह भी कहा गया है कि भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी तरफ से इस रुपये की मांग भी नहीं की थी।
यह पैसा क्यों और किसके फायदे के लिए दिया गया था, यह मामला उलझने जा रहा है। यह तब हो रहा है जब आम चुनाव में अब एक साल से थोड़ा अधिक समय ही बचा है। गुजरात की एक अदालत द्वारा राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराए जाने से विपक्ष और सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के बीच विभाजन की लकीरें और गहराया जाना अब लगभग तय है।
माहौल इतनी तेजी से बदला है कि अब भारतीय जनता पार्टी द्वारा दिए गए अधिकांश प्रस्तावों का स्पष्ट विरोध होने की संभावना है जिससे संसद में कानून बनाने के साथ ही शीर्ष पदाधिकारियों की नियुक्ति को भी सबसे पहले नुकसान होगा। कांग्रेस सदस्य मनीष तिवारी ने चीन के साथ सीमा पर झड़पों के मामले को सरकार को संसद के समक्ष तथ्य रखने के लिए लोकसभा में बार-बार स्थगन प्रस्ताव पेश करने की कोशिश की है।
उन्हें इसके लिए रोका भी गया। उन्होंने कहा, यह देखना होगा कि (सरकार और विपक्ष के बीच) कोई सहयोग होगा या नहीं या यहां तक कि सहयोग की संभावना भी है या नहीं। अब आज होने वाले लोक लेखा समिति (पीएसी) के सदस्यों के चुनाव के बाद यह साफ होगा कि वे भारत सरकार के खर्च के लिए संसद द्वारा आवंटित की गई राशि के खातों की जांच का काम कैसे करते हैं।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट अक्सर पीएसी जांच का प्रारंभिक बिंदु होती है। 1960 के दशक से पीएसी के अध्यक्ष हमेशा विपक्ष के नेता रहे हैं। इसका चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से होता है। इसके लिए 22 सदस्य चुने जाते हैं, जिसमें 15 लोकसभा से और सात राज्यसभा से होते हैं।
इस साल चुनाव राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के बाद होगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष और सत्तारूढ़ पार्टी अपने वोट का उपयोग कैसे करती है, विशेष रूप से दूसरी वरीयता के वोट के मामले में। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि निष्क्रिय संसद में भी विपक्ष नीति-निर्माण में कितना प्रभाव डालता है।
यह प्रभाव विभाग की स्थायी समितियों के माध्यम से डाला जाता है जहां विपक्ष और सत्ता पक्ष के सांसद कानून बनने से पहले नीति और कानूनों की जांच करते हैं। एक और चुनाव है जिसको लेकर फिलहाल सरकार में कोई चर्चा नहीं हो रही है और वह लोकसभा के उपाध्यक्ष पद का जो लगभग चार वर्षों से खाली पड़ा है।
सत्ता पक्ष का कहना है कि तत्काल इस चुनाव की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि विधेयक पारित भी किए जा रहे हैं और सदन में चर्चा भी हो रही है। एक मंत्री ने तर्क दिया कि नौ सदस्यों का एक पैनल है जो लोकसभा अध्यक्ष की सहायता के लिए सभापति के रूप में कार्य कर सकता है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश कहते हैं, पिछले चार सालों से लोकसभा में कोई उपाध्यक्ष नहीं है। यह असंवैधानिक है।
मार्च 1956 का ही एक उदाहरण देखिए जब नेहरू ने इस पद के लिए विपक्षी अकाली दल के सांसद और अपने आलोचक, सरदार हुकम सिंह का नाम प्रस्तावित किया था और उन्हें सर्वसम्मति से चुना गया था। उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका लंबित है।
जिन संवैधानिक पदों पर विपक्ष के साथ संयुक्त रूप से विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है उनमें से एक को छोड़कर सभी को भर दिया गया है जो लोकपाल का पद है जिसके पास प्रधानमंत्री सहित किसी के भी खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने की शक्ति है। इसलिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अब अडाणी से मोडानी बने मामले की दिशा और दशा भी तय होगी, जिसपर नरेंद्र मोदी चुप है।