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एक धक्का पड़ा तो पृथ्वी भी खत्म हो जाएगी

हमारे सौरमंडल के गुरु ग्रह पर निर्भर है बाकी सब चीजें

  • गुरु और मंगल के बीच कभी था ऐसा ग्रह

  • बाहरी जगत से भी कोई आया तो गड़बड़ी होगी

  • कंप्यूटर मॉडल के जरिए भी इसकी परख की गयी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में अब यह माना जा रहा है कि मंगल और गुरु ग्रह के बीच अगर कोई ग्रह होता तो वह पृथ्वी और यहां मौजूद जीवन के लिए भी खतरा होता। इसलिए शोधकर्ताओं ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया है कि वर्तमान में हमारी सौरमंडल के इन दो ग्रहों के बीच ऐसा कुछ नहीं है।

लेकिन वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी भी दी है कि किसी दूसरे सौर मंडल का कोई ग्रह अगर इस रास्ते पर आ गया तब भी तबाही आ सकती है। एक वैज्ञानिक प्रयोग के दौरान इसे बेहतर तरीके से समझ लेने के बाद ही शोधकर्ताओं ने यह टिप्पणी की है। इस बारे में एक वैज्ञानिक लेख प्लैनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

इस पत्रिका में प्रकाशित परिणाम सौर मंडल के लिए अच्छे नहीं माने जा सकते हैं। यह बताया गया है कि अगर वाकई कोई ग्रह वहां पर होता और वह अपनी कोहनी से बृहस्पति ग्रह को हल्का धक्का भी देता तो वह एक मामूली धक्का पूरे सौरमंडल को अस्थिर करने के लिए पर्याप्त था। यह अच्छी बात है कि हमारे पास यह नहीं है।

बताया गया है कि बृहस्पति ग्रह दूसरे सभी ग्रहों की तुलना में बहुत बड़ा है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी से 318 गुना अधिक है, इसलिए इसका गुरुत्वाकर्षण प्रभाव गहरा है। यदि हमारे सौर मंडल में एक सुपर-अर्थ, एक गुजरता हुआ तारा, या कोई अन्य खगोलीय पिंड बृहस्पति को थोड़ा सा भी परेशान करता है, तो अन्य सभी ग्रह गहराई से प्रभावित होंगे।

इस बारे में यूसी रिवरसाइड प्रयोग के अनुसार, मंगल और बृहस्पति के बीच घूमने वाला एक स्थलीय ग्रह पृथ्वी को सौर मंडल से बाहर धकेलने और इस ग्रह पर जीवन का सफाया करने में सक्षम होगा। यूसीआर खगोल वैज्ञानिक स्टीफन केन ने समझाया कि उनका प्रयोग ग्रह विज्ञान में दो उल्लेखनीय अंतरालों को दूर करने के लिए था।

पहला हमारे सौर मंडल में स्थलीय और विशाल गैस ग्रहों के आकार के बीच का अंतर है। सबसे बड़ा स्थलीय ग्रह पृथ्वी है, और सबसे छोटा गैस विशाल नेपच्यून है, जो पृथ्वी से चार गुना चौड़ा और 17 गुना अधिक भारी है। बीच में कुछ भी नहीं है।  केन ने कहा, अन्य स्टार सिस्टम में ऐसे कई ग्रह हैं जिनका द्रव्यमान इस अंतराल में है। हम उन्हें सुपर-अर्थ कहते हैं।

अन्य अंतर स्थान में है, सूर्य के सापेक्ष, मंगल और बृहस्पति के बीच। ग्रह वैज्ञानिक मानते हैं कि प्राचीन काल में उन दो ग्रहों के बीच कुछ था। शायद वह अब पूरी तरह नष्ट हो चुका है। दरअसल वैज्ञानिक गणना के मुताबिक यह अंतराल हमारे सौर मंडल की वास्तुकला और पृथ्वी के विकास में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।

केन ने मंगल और बृहस्पति के बीच विभिन्न द्रव्यमानों की एक श्रृंखला के साथ एक ग्रह के गतिशील कंप्यूटर सिमुलेशन चलाए, और फिर अन्य सभी ग्रहों की कक्षाओं पर प्रभाव देखा। सुपर-अर्थ के द्रव्यमान और सटीक स्थान के आधार पर, इसकी उपस्थिति अंततः बुध और शुक्र के साथ-साथ पृथ्वी को सौर मंडल से बाहर निकाल सकती है। यह यूरेनस और नेपच्यून की कक्षाओं को भी अस्थिर कर सकता है, साथ ही उन्हें बाहरी अंतरिक्ष में भी फेंक सकता है।

इसका सीधा अर्थ है कि सूर्य के ईर्दगिर्द स्थापित इस सौर मंडल का पूरी तरह नष्ट हो जाना ही है। गनीमत है कि अभी ऐसा कुछ नहीं है। प्रयोग के दौरान केन और उनके सहयोगियों ने उस काल्पनिक ग्रह के द्रव्यमान को छोटा कर दिया और इसे सीधे मंगल और बृहस्पति के बीच में रख दिया, तो उन्होंने देखा कि ग्रह का लंबे समय तक स्थिर रहना संभव है।

लेकिन किसी भी दिशा में छोटे कदम से सब कुछ तहस नहस हो जाएगा। बृहस्पति जैसे ग्रह, अपने सितारों से दूर गैस के दिग्गज, केवल लगभग 10% समय में पाए जाते हैं, उनकी उपस्थिति यह तय कर सकती है कि पड़ोसी पृथ्वी या सुपर-अर्थ की कक्षाएँ स्थिर हैं या नहीं।

इन परिणामों ने केन को सूर्य के चारों ओर ग्रहों को एक साथ रखने वाले नाजुक क्रम के लिए एक नया सम्मान दिया। हमारा सौर मंडल पहले की तुलना में अधिक सूक्ष्मता से ट्यून किया गया है। केन ने कहा कि यह सब जटिल घड़ी गियर्स की तरह काम करता है। इसमें जरा सी भी हेरफेर होने से सब कुछ नष्ट हो जाता है। पूरा सौरमंडल भी इसी तरह एक सटीक संतुलन के आधार पर टिका हुआ है।

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