भारतवर्ष के व्यापार घाटे में इजाफे ने सरकार को प्रेरित किया कि वह आयात पर सक्रियता से प्रतिबंध लगाए। वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण भारत का वाणिज्यिक वस्तु निर्यात फरवरी में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 8.8 फीसदी कम होकर 33.88 अरब डॉलर रह गया। चालू वित्त वर्ष में अब तक यानी अप्रैल से फरवरी तक वाणिज्यिक निर्यात पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 7.55 फीसदी बढ़ा है।
वहीं फरवरी में वाणिज्यिक वस्तु आयात भी 8.2 फीसदी कम हुआ और व्यापार घाटा 17.43 अरब डॉलर था। इस बीच यह खबर भी आयी है कि बीते पांच वर्षों (2018-22) के दौरान भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक बना रहा।
वैश्विक हथियार आयात में 11 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत सऊदी अरब (9.6 फीसदी), कतर (6.4 फीसदी), ऑस्ट्रेलिया (4.7 फीसदी) और चीन (4.6 फीसदी) से आगे रहा। इस बीच रक्षा मंत्रालय ने संसद में एक लिखित उत्तर में बताया है कि विदेशी हथियार खरीद पर भारत का व्यय 2018-19 के कुल व्यय के 45 फीसदी से कम होकर दिसंबर 2022-23 में 36.7 फीसदी रह गया।
चीन अपने व्यापक रक्षा उपकरण आयात की भरपाई पाकिस्तान जैसे देशों को हथियार निर्यात से कर देता है लेकिन भारत का रक्षा निर्यात मोटे तौर पर स्थिर रहा है। भारत ने 2018-19 में 10,746 करोड़ रुपये के रक्षा उपकरणों का निर्यात किया और इस वर्ष तक यह बढ़कर केवल 14,000 करोड़ रुपये ही हुआ है।
भारत का रक्षा उद्योग उच्च मूल्य वाले निर्यात की बाट जोह रहा है। दूसरी तरफ भारत सरकार के कोष की बात करें तो अब तक का व्यापार घाटा 247.53 अरब डॉलर है।
पिछले वर्ष की समान अवधि में यह लगभग 172 अरब डॉलर था। सेवा निर्यात में निरंतर मजबूत वृद्धि ने समग्र घाटे यानी वस्तु और सेवा क्षेत्र के व्यापार घाटे को कम करने में मदद की। अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद के करीब 2.5 फीसदी के बराबर रहेगा तथा आने वाले वर्ष में इसमें कुछ और अधिक मदद मिल सकती है लेकिन इसके बावजूद घाटे की भरपाई एक चुनौती बनी रहेगी।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवक में कमी आई है और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा निरंतर बिकवाली भी समग्र भुगतान संतुलन पर दबाव डाल सकती है। अडाणी प्रकरण ने भी भारतीय बाजार की साख को बट्टा लगाया है। वैश्विक वित्तीय बाजारों में व्याप्त अस्थिरता और बड़े केंद्रीय बैंकों द्वारा संभावित नीतिगत कदमों को लेकर अनिश्चितता के कारण पूंजी की आवक प्रभावित होती रह सकती है।
वैसे भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है जिससे तात्कालिक चुनौतियों से निपटा जा सकता है और बाहरी मोर्चे पर स्थिरता बरकरार रखी जा सकती है। समय के साथ मुद्रा में व्यवस्थित गिरावट भी बाहरी खाते को स्थिर बनाने में मदद करेगी। वृहद आर्थिक स्थिरता के नजरिये से देखें तो सरकार द्वारा आयात प्रतिबंध को लेकर दिया गया उत्साह सही नहीं है।
यह फैसला दीर्घकालिक आर्थिक प्रबंधन के नजरिये से भी देखें तो यह न केवल अनावश्यक है बल्कि नुकसानदेह भी साबित हो सकता है। सरकार बीते कई वर्षों से लगातार प्रयास कर रही है कि आयात में कमी की जाए। यही वजह है कि अन्य गतिरोधों के साथ शुल्क दरों में भी इजाफा किया गया।
सरकार अब आयात पर नियंत्रण के लिए गुणवत्ता को लेकर नए आदेश जारी कर सकती है। सरकार ने जो रुख अपनाया है उसमें कई दिक्कतें हैं और उससे वांछित परिणाम हासिल नहीं होगा। किसी भी अफसरशाही के लिए एक सक्रिय बाजार अर्थव्यवस्था में गैर जरूरी आयात का निर्धारण करना मुश्किल होगा।
इससे लागत बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धी क्षमता प्रभावित होगी। किसी भी बाजार अर्थव्यवस्था के लिए अपनी घरेलू क्षमता वाले क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं का आयात सामान्य बात है।
यह बात ध्यान देने वाली है कि देश का सेवा निर्यात बहुत अच्छी स्थिति में है। इसका ज्यादातर हिस्सा सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित है और उसे विकासशील देशों को निर्यात किया जा रहा है। लेकिन अब उसमें भी वैश्विक मंदी की आहट है।
जरूरी नहीं है कि उन देशों की कंपनियां भारतीय कंपनियों से इसलिए आयात कर रही हों कि उनके यहां क्षमता की कमी हो बल्कि वे ऐसा इसलिए भी कर सकती हैं कि भारत से आयात करना किफायती पड़ सकता है।
इसके लिए सरकारी सोच को बदलने की जरूरत है। अकेले अडाणी के विकास से देश का विकास नहीं होगा, इस सच को स्वीकार करना होगा। देश में जिस तरीके से स्टार्टअप काम कर रहे हैं, ठीक उसी तरह छोटे और लघु उद्योगों एवं कारोबारों को भी बढ़ावा देना समय की मांग है। वर्तमान में नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना लॉकडाउन ने जो स्थिति बिगाड़ दी है, उससे अबरने के लिए सरकार को पहल करनी होगी।