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जैविक चिप का प्रयोग पहले हो चुका है
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सुपर कंप्यूटिंग में यह जैव सेल बेहतर होगा
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इससे ऊर्जा संबंधी पर्यावरण का संकट भी कम होगा
राष्ट्रीय खबर
रांचीः यूं तो कंप्यूटर की दुनिया में नित नये शोध और आविष्कार हो रहे हैं। अब अत्यंत तेज गति की कंप्यूटिंग की चाह ने वैज्ञानिकों को क्वांटम कंप्यूटर बनाने को प्रेरित किया है। इन कंप्यूटरों के चिप के लिए जैविक कोष के प्रयोग का काम भी पूरा हो चुका है।
अब शोधकर्ता उससे आगे की सोच पर काम कर रहे हैं। इसी वजह से अब जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, मानव मस्तिष्क कोशिकाओं द्वारा संचालित एक बायोकंप्यूटर हमारे जीवनकाल के भीतर विकसित किया जा सकता है।
वे इस बात की उम्मीद करते हैं कि ऐसी तकनीक आधुनिक कंप्यूटिंग की क्षमताओं का तेजी से विस्तार करेगी और अध्ययन के जरूरती आयामों में और सुविधा प्रदान करेगी।
इस टीम ने फ्रंटियर्स इन साइंस जर्नल में ऑर्गनॉइड इंटेलिजेंस के लिए अपनी योजना की रूपरेखा संबंधी लेख प्रकाशित किया है। जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड व्हिटिंग स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में पर्यावरणीय स्वास्थ्य विज्ञान के प्रोफेसर थॉमस हार्टुंग ने इस बारे में कहा कि कम्प्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रौद्योगिकी क्रांति चला रहे हैं, लेकिन वे एक सीमा तक पहुंच रहे हैं।
बायोकंप्यूटिंग, कम्प्यूटेशनल पावर को छोटा और उन्नत बनाने के लिए हमारी मौजूदा तकनीकी सीमाओं को पार करने के लिए इसकी दक्षता बढ़ाने का एक बड़ा प्रयास है।
लगभग दो दशकों से वैज्ञानिकों ने मानव या पशु परीक्षण का सहारा लिए बिना किडनी, फेफड़े और अन्य अंगों पर प्रयोग करने के लिए छोटे ऑर्गेनोइड्स, पूरी तरह से विकसित अंगों के समान प्रयोगशाला में विकसित ऊतक का उपयोग किया है।
अभी हाल ही में जॉन हॉपकिन्स में हार्टुंग और सहकर्मी ब्रेन ऑर्गेनोइड्स के साथ काम कर रहे हैं। न्यूरॉन्स और अन्य सुविधाओं के साथ कलम की नोंक से बने एक छोटे से आकार कोष बने हैं। यह अत्यंत छोटे आकार के कोष सीखने और याद रखने जैसे बुनियादी कार्यों को बनाए रख सकते हैं।
यानी इसका कंप्यूटिंग की दुनिया में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह मानव मस्तिष्क कैसे काम करता है, इस पर शोध के नये आयामों को प्रदर्शित करता है। वर्तमान में हम लोग कंप्यूटर के सिस्टम से हेरफेर या छेड़छाड़ कर सकते हैं लेकिन यही काम मानव मस्तिष्क के साथ नैतिक रूप से नहीं कर सकते।
हार्टुंग ने 2012 में मानव त्वचा के नमूनों से कोशिकाओं का उपयोग करके एक भ्रूण स्टेम सेल जैसी स्थिति में मस्तिष्क कोशिकाओं को विकसित करना और कार्यात्मक ऑर्गेनोइड्स में इकट्ठा करना शुरू किया। प्रत्येक ऑर्गेनॉइड में लगभग 50,000 कोशिकाएं होती हैं, जो फल मक्खी के तंत्रिका तंत्र के आकार के बराबर होती हैं।
वह अब इस तरह के ब्रेन ऑर्गेनोइड्स के साथ एक फ्यूचरिस्टिक कंप्यूटर बनाने की कल्पना करता है। हार्टुंग ने कहा कि इस जैविक हार्डवेयर पर चलने वाले कंप्यूटर अगले दशक में सुपर कंप्यूटिंग की ऊर्जा खपत मांगों को कम करना शुरू कर सकते हैं।
वर्तमान में पूरी दुनिया के लिए ऊर्जा की खपत भी पर्यावरण के लिए एक गंभीर चुनौती बनती जा रही है। भले ही कंप्यूटर मनुष्यों की तुलना में संख्याओं और डेटा को शामिल करने वाली गणनाओं को तेजी से संसाधित करते हैं, जटिल तार्किक निर्णय लेने में दिमाग बहुत चालाक होते हैं, जैसे बिल्ली से कुत्ते के अंतर को पल भर में समझ लेना।
हार्टुंग ने कहा कि मस्तिष्क अभी भी आधुनिक कंप्यूटरों से बेजोड़ है। फ्रंटियर, केनटकी में नवीनतम सुपर कंप्यूटर के लिए 600 मिलियन डॉलर खर्च कर करीब 6,800 वर्ग फुट की संरचना तैयार की गयी है।
केवल पिछले साल जून में, यह पहली बार एक मानव मस्तिष्क की कम्प्यूटेशनल क्षमता से अधिक हो गया। फिर भी इसकी ऊर्जा खपत चिंता का विषय है। हार्टुंग ने कहा कि ऑर्गेनॉइड इंटेलिजेंस को माउस की तरह स्मार्ट सिस्टम को पावर देने में दशकों लग सकते हैं।
लेकिन मस्तिष्क के अंगों के उत्पादन को बढ़ाकर और उन्हें कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ प्रशिक्षित करके, वह एक ऐसे भविष्य की उम्मीद करते हैं जहां बायोकंप्यूटर बेहतर कंप्यूटिंग गति, प्रसंस्करण शक्ति, डेटा दक्षता और भंडारण क्षमताओं का समर्थन करते हैं।
हार्टुंग ने कहा कि किसी भी प्रकार के कंप्यूटर के तुलनीय लक्ष्य को हासिल करने में दशकों लगेंगे लेकिन अगर हम इसके लिए फंडिंग प्रोग्राम बनाना शुरू नहीं करते हैं, तो यह और भी मुश्किल हो जाएगा।
पर्यावरणीय स्वास्थ्य और इंजीनियरिंग के जॉन हॉपकिन्स सहायक प्रोफेसर लीना स्मिर्नोवा ने कहा कि ऑर्गेनॉइड इंटेलिजेंस न्यूरोडेवलपमेंटल विकारों और न्यूरोडीजेनेरेशन के लिए दवा परीक्षण अनुसंधान में भी क्रांति ला सकता है।
स्मिर्नोवा ने कहा कि हम आम तौर पर विकसित दाताओं बनाम ऑटिज़्म वाले दाताओं से मस्तिष्क ऑर्गेनॉइड से मस्तिष्क ऑर्गेनॉइड की तुलना करना चाहते हैं। जो उपकरण हम जैविक कंप्यूटिंग के लिए विकसित कर रहे हैं, वे वही उपकरण हैं जो हमें जानवरों का उपयोग किए बिना या रोगियों तक पहुंचने के लिए ऑटिज़्म के लिए विशिष्ट न्यूरोनल नेटवर्क में परिवर्तन को समझने की अनुमति देंगे। इसलिए इस शोध का दोतरफा लाभ तो अभी से ही स्पष्ट है।