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सारे उपचुनावों में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं
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कुशल प्रशासक के तौर पर दीपक प्रकाश सफल
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कई नामों पर पार्टी कार्यालय में चल रही है चर्चा
राष्ट्रीय खबर
रांची : भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश का कार्यकाल शनिवार को खत्म हो रहा है। दिल्ली से झारखंड भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा शीघ्र किये जाने की संभावना है। नये प्रदेश अध्यक्ष के लिये भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी या प्रदेश महामंत्री और राज्यसभा सांसद आदित्य साहू नाम सबसे अधिक आ रहा है।
प्रदेश भाजपा के अधिकांश नेताओं की सहमति इन दोनों नेताओं के नाम पर है। उधर पार्टी के अंदर दीपक प्रकाश को ही 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव तक एक्सटेंशन दिये जाने की चर्चा है, हालांकि इसकी उम्मीद कम नजर आ रही है।
भाजपा के सूत्रों के हवाले से खबर है कि पार्टी के प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने शीर्ष नेतृत्व के पास दीपक प्रकाश को लेकर अच्छा फिडबैक नहीं दिया है। प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए भाजपा के अंदर हाल के दिनों में कई नाम सामने आ रहे थे।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास, राज्यसभा सांसद समीर उरांव, महामंत्री प्रदीप वर्मा, मेयर आशा लकड़ा, विधायक अमर बाउरी और अनंत ओझा के नाम की चर्चा पार्टी में चल रही थी, लेकिन अब स्थिति लगभग साफ हो चुकी है। पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने यह जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया और आदित्य साहू का नाम आगे कर दिया।
उधर रघुवर दास ने विधायक अमर बाउरी का नाम आगे किया, लेकिन बाद में आदित्य साहू के नाम पर सहमति दे दी। प्रदेश भाजपा के नेताओं और कार्यकतार्ओं का एक बड़ा वर्ग दीपक प्रकाश से खुश नहीं है।
एक पदाधिकारी ने बताया कि दीपक प्रकाश के नेतृत्व में भाजपा लोकसभा और विधानसभा चुनाव में झारखंड में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकती। प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदले गये तो 2024 के चुनावों में भी उपचुनावों की तरह भाजपा को झारखंड में हार का सामना करना पड़ेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि दीपक प्रकाश उपचुनावों की हार की नाकामी को ढकने के लिए उन सीटों पर वोट प्रतिशत बढ़ने की बात कहते हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व सबकुछ देख रहा है। दीपक प्रकाश भाजपा में एक कुशल और कठोर प्रशासक की भूमिका अच्छा निभा रहे हैं।
पार्टी का अंदरूनी कलह उन्होंने कभी सतह पर नहीं आने दिया। प्रदेश के सांसदों-विधायकों, पदाधिकारियों और कार्यकतार्ओं पर हावी रहे, लेकिन चुनाव जीतने की रणनीति बनाने में वे विफल रहे हैं।