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नौकरी के मुद्दे पर सरकार की बढ़ती चुनौती

देश में रोजगार एक बहुत बड़ा सवाल बनता जा रहा है। लगातार केंद्र सरकार के प्रयासों और प्रचारों के बाद भी इसकी जानकारी रखने वाली सरकारी एजेंसियां भी यह मान रही है कि रोजगार घट रहे हैं।

दरअसल नोटबंदी और जीएसटी के बाद अचानक से कोरोना महामारी की चुनौती की वजह से छोटे और मध्यम कारोबारियों पर जो आर्थिक चोट पहुंची थी, उससे देश अब तक उबर नहीं पाया है। बार बार केंद्र सरकार की तरफ से दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का प्रचार तो किया जाता है लेकिन भारतीय आबादी के औसत में यह कितना कारगर है, इसे हर कोई अपनी दैनंदिन जीवनचर्या में समझ सकता है।

दूसरी तरफ रही सही कसर भी अडाणी प्रकरण ने निकाल दी है, जिसमें आरोपों से घिरती सरकार इस पर सीधी  बात करने के बदले दूसरे मुद्दों पर शोर मचा रही है। देश की जनता का ध्यान इस बार प्रयास के बाद भी भाजपा भटका नहीं पा रही है। यह बड़ी परेशानी की बात है क्योंकि रोजगार के अवसर कम होने से देश का युवा अब नाराज है।

आंकड़ों पर बात करें तो नई औपचारिक नौकरियों का सृजन दिसंबर में कम हुआ है और यह लगातार तीसरे महीने 10 लाख से कम है। सोमवार को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की ओर से जारी आंकड़ों से रोजगार के बाजार में दबाव का पता चलता है।

कर्मचारी भविष्य निधि के नए मासिक उपभोक्ताओं की संख्या दिसंबर में 14.5 प्रतिशत घटकर 8,02,250 रह गई है, जो नवंबर में 9,37,780 थी। अक्टूबर में महज 7,80,170 सबस्क्राइबर ईपीएफ में शामिल हुए थे, जो मई 2021 के बाद का सबसे कम मासिक पंजीकरण था।

इसके पहले वित्त वर्ष 23 में मासिक नए सबस्क्राइबरों की संख्या अप्रैल से सितंबर तक लगातार 6 महीने 10 लाख से ऊपर बनी हुई थी। जुलाई में संख्या 11,59,350 के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। पेरोल की संख्या में शुद्ध बढ़ोतरी की गणना नए सबस्क्राइबरों की संख्या, इससे बाहर हुए लोगों की संख्या और पुराने सबस्क्राइबरों की वापसी के आधार पर किया जाता है।

इस हिसाब से दिसंबर में 7.7 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है और संख्या 14,93,031 हो गई है, जो नवंबर में 13,85,923 थी। बहरहाल शुद्ध मासिक पेरोल के आंकड़े अनंतिम प्रकृति के हैं और इसमें अक्सर अगले महीने तेज बदलाव हो जाता है। यही वजह है कि नए ईपीएफ सबस्क्राइबरों के आंकड़ों की विश्वसनीयता शुद्ध बढ़ोतरी की तुलना में अधिक होती है।

दिसंबर में शामिल किए गए नए सबस्क्राइबरों में 18 से 25 साल की उम्र के लोगों की संख्या 4,46,358 है, जो नवंबर के 5,28,484 की तुलना में 15.5 प्रतिशत कम है। यह आंकड़े अहम होते हैं क्योंकि 18 से 25 साल के उम्र में सामान्यतया श्रम बाजार में आए नए लोग होते हैं और इससे तेजी का पता चलता है।

नए पुरुष सबस्क्राइबरों की संख्या 14.9 प्रतिशत गिरी है, जबकि महिला सबसक्राइबरों की संख्या इसकी तुलना में कम यानी 12.9 प्रतिशत गिरी है। अपनी तरफ से सर्वे कराने वाले सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर महीने में भी नौकरियों का कमजोर प्रदर्शन जारी रहा है और बेरोजगारी दर दिसंबर में बढ़कर 8.30 प्रतिशत हो गई है, जो नवंबर में 8.03 प्रतिशत थी।

सीएमआईई के मुताबिक शहरी बेरोजगारी बढ़ने की वजह से ऐसा हुआ है। मुख्य रूप से ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि श्रम बल बढ़ा है, लेकिन अर्थव्यवस्था में पर्याप्त नौकरियों का सृजन नहीं हुआ है। दूसरी तरफ कारोबार को चालू रखने के दबाव में भी पीएफ और जीएसटी के नियम छोटे कारोबारियों पर दबाव डाल रहे हैं।

सरकार की तरफ से नियमित और मासिक स्तर पर भुगतान नहीं होने के बाद भी उनपर पीएफ, इएसआई और जीएसटी का नियमित भुगतान करने का दबाव है। इसमें विलंब से फाइन लगता है जो कारोबार की गति को और धीमा करता जा रहा है। यह सारी परिस्थिति तब है जबकि मोदी सरकार ने दो करोड़ रोजगार का वादा किया था।

यह वादा अब कितना पूरा हो रहा है, इस पर सवाल उठने लगे हैं। पहले देश में रोजगार का एक नियमित जरिए सेना में बहाली का भी था। केंद्र सरकार द्वारा अग्निवीर योजना को लागू किये जाने की वजह से उसका आकर्षण भी कम हुआ है। दूसरी तरफ सरकार की तरफ से लगातार आश्वासन दिये जाने के बाद भी इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं हो पायी है।

दूसरी तरफ निजी क्षेत्रों पर भी भीषण आर्थिक दबाव है। इस वजह से कारोबारी विस्तार की गति धीमी हो गयी है। जिस कारण जाहिर तौर पर अब देश की चुनावी राजनीति भी प्रभावित होती नजर आ रही है। देश में लोकसभा चुनाव करीब आने की वजह से यह मसला भी वर्तमान सत्तारूढ़ दल के लिए एक बड़ी चुनौती बनी है, जिसमें अडाणी का मुद्दा जुड़कर यह और पेचिदा हो गया है।

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