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लो वोल्टेज की बाधा को पार किया
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भविष्य के संचार उपकरणों के लिए
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सिर्फ संरचना का आणविक ढांचा बदला
राष्ट्रीय खबर
रांचीः इलेक्ट्रानिक उपकरणों को और कार्यकुशल बनाने पर काफी अरसे से काम चला आ रहा है। इसी निरंतर शोध की वजह से पहले वाल्ब से चलने वाले रेडियो बने।
उसके बाद ट्रांजिस्टर की खोज ने इन रेडियो के आकार को छोटा और उसके काम करने की क्षमता को बढ़ा दिया। इसके बाद इलेक्ट्रानिक चिप का जमाना आ गया। इससे बने मोबाइल अब रेडियो के अलावा कई अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों को अपने अंदर समेट लेने में कामयाब हुए हैं।
मोबाइल और संचार की दिशा में और तेज गति हासिल करने के लिए क्रमवार तरीके से टू जी, थ्री जी, फोर जी और अब फाइव जी का काम भी भारत में चल रहा है। इसी प्रयास को आगे बढ़ते हुए नये ऐसे उपकरण बनाये गये हैं जो भविष्य के सिक्स जी की संचार सुविधा को लागू कर सकेंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को तेज गति प्रदान करने की क्षमता एक सरल सिद्धांत पर आ गई है। इसमें उपकरणों का आकार छोटा होने के बाद भी उसकी कार्यकुशलता बढ़ती ही जा रही है।
ईपीएफएल के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में पावर एंड वाइड-बैंड-गैप इलेक्ट्रॉनिक्स रिसर्च लैब (पावरलैब) के एलिसन मटिओली बताते हैं कि बेहतर इलेक्ट्रॉनिक्स प्रदर्शन के लिए आगे उपकरणों को छोटा करने ही एक व्यवहारिक समाधान नहीं है। इसलिए इस दिशा में नया प्रयोग किया गया है जो सफल रहा है।
इस दिशा में गैलियम नाइट्राइड से बने सामग्रियों का परीक्षण पहले ही हो चुका था। लेकिन उससे गति में बढ़ोत्तरी की दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई थी। यह इलेक्ट्रानिक्स और संचार वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती थी। इसी चुनौती के जवाब में, मटिओली और पीएचडी छात्र मोहम्मद समिजादेह निकू एक नया दृष्टिकोण लेकर आए, जो इन सीमाओं को पार कर सकता है और टेराहर्ट्ज उपकरणों की एक नई श्रेणी को सक्षम कर सकता है।
अपने डिवाइस को सिकोड़ने के बजाय, उन्होंने इसे पुनर्व्यवस्थित किया, विशेष रूप से गैलियम नाइट्राइड और इंडियम गैलियम नाइट्राइड से बने अर्धचालकों पर उप-तरंगदैर्ध्य दूरी पर मेटास्ट्रक्चर नामक पैटर्न वाले संपर्कों की नक्काशी की। परीक्षण में पता चला कि ये मेटास्ट्रक्चर डिवाइस के अंदर बिजली के क्षेत्रों को नियंत्रित करने की अनुमति देते हैं, असाधारण गुण पैदा करते हैं जो प्रकृति में नहीं होते हैं।
महत्वपूर्ण रूप से, उपकरण टेराहर्ट्ज़ रेंज (0.3-30 टेराहर्ट्ज के बीच) में विद्युत चुम्बकीय आवृत्तियों पर काम कर सकता है। यानी आज के इलेक्ट्रॉनिक्स में उपयोग की जाने वाली गीगाहर्ट्ज़ तरंगों की तुलना में काफी तेज़। इसलिए वे किसी दिए गए सिग्नल या अवधि के लिए बहुत अधिक मात्रा में जानकारी ले सकते हैं, जिससे उन्हें 6G संचार और उससे आगे के अनुप्रयोगों के लिए काफी संभावनाएं मिलती हैं।
वह खुद बताते हैं कि हमने पाया कि माइक्रोस्कोपिक स्केल पर रेडियो फ्रीक्वेंसी फ़ील्ड में हेरफेर करने से आक्रामक डाउनस्केलिंग पर भरोसा किए बिना इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रदर्शन में काफी वृद्धि हो सकती है। इस बारे में उनका लेख जर्नल नेचर में प्रकाशित किया जा चुका है।
क्योंकि टेराहर्ट्ज़ फ़्रीक्वेंसी वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रबंधन के लिए बहुत तेज़ है, और प्रकाशिकी अनुप्रयोगों के लिए बहुत धीमी है, इस रेंज को अक्सर ‘टेराहर्ट्ज़ गैप’ के रूप में जाना जाता है। शोधकर्ता ने इलेक्ट्रॉनिक्स-आधारित दृष्टिकोण में, प्रेरित रेडियोफ्रीक्वेंसी को नियंत्रित करने की क्षमता उप-तरंगदैर्ध्य पैटर्न वाले संपर्कों के संयोजन किया। साथ ही लागू वोल्टेज के साथ इलेक्ट्रॉनिक चैनल का नियंत्रण भी किया।
आज बाजार पर सबसे उन्नत उपकरण 2 टेरा हर्टज तक की आवृत्ति प्राप्त कर सकते हैं, पॉवरलैब के मेटाडेवाइस 20 टेराहर्ट्ज तक पहुँच सकते हैं। इसी तरह, टेराहर्ट्ज़ रेंज के पास काम करने वाले आज के उपकरण 2 वोल्ट से कम वोल्टेज पर टूट जाते हैं, जबकि मेटाडेविसेस 20 वोल्ट से अधिक का समर्थन कर सकते हैं।
इस पॉवरलैब में विकसित इलेक्ट्रॉनिक मेटाडेविसेस कॉम्पैक्ट, उच्च-आवृत्ति चिप्स का उत्पादन करके एकीकृत टेराहर्ट्ज़ इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए आधार बना सकते हैं, जो पहले से ही स्मार्टफ़ोन के साथ उपयोग किए जा सकते हैं, उदाहरण के लिए। शोध दल का दावा है कि परीक्षण में इसने प्रति सेकंड 100 गीगाबिट्स तक के डेटा ट्रांसमिशन का प्रदर्शन किया है, जो पहले से ही 10 गुना अधिक है।