अजब गजबविज्ञानस्वास्थ्य

रिमोट कंट्रोल से काम करेगा जैविक रोबोट

जेनेटिक विज्ञान और माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स के संयुक्त प्रयास से मिली कामयाब

  • कोई बैटरी नहीं लगी है इस रोबोट में

  • चूहों के टिश्यू की थ्री डी प्रिटिंग हुई है

  • इसमें ऊर्जा के अपने उपाय किये गये हैं

राष्ट्रीय खबर

रांचीः चिकित्सा विज्ञान में जेनेटिक विज्ञान के साथ साथ अब माइक्रो इलेक्ट्रानिक्स का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। इससे पहले ही रोबोटिक सर्जरी और लेजर संचालन से मरीजों को अत्यधिक लाभ हुआ है। अब शल्यक्रिया के बदले किसी भी बीमारी को शरीर के अंदर ही ठीक करने की दिशा में यह जेनेटिक विज्ञान कदम बढ़ा रहा है।

रोबोटिक्स की दुनिया में भी सॉफ्ट रोबोट बनाने का प्रयोग सफल होने के बाद जैविक रोबोट बनाने में भी कामयाबी मिली थी। अब इलेक्ट्रानिक्स के तालमेल से ऐसा जैविक रोबोट बनाया जा सका है, जिसे बाहर से निर्देशित किया जा सकता है।

यानी किसी इंसानी शरीर के अंदर प्रवेश करने वाला यह जैविक रोबोट अंदर का हाल बताता रहेगा, इसके आधार पर चिकित्सक उस रोबोट को क्या काम करना है, यह निर्देशित करते रहेंगे। इस विधि से उपचार होने की स्थिति में मरीजों को शल्यक्रिया के कष्ट से भी नहीं गुजरना पड़ेगा।

इस विधि को यूनिवर्सिटी ऑफ इलोनियस और नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी सहित कई शोध संस्थानों के संयुक्त प्रयास से विकसित किया गया है। इसे शोध दल ने हाईब्रिड ई-रोबोट का नाम दिया है। इसे लचीले पदार्थों से तैयार किया गया है।

जिसमें जीवित मांसपेशियां हैं और इसमें बाहर के निर्देश पर काम करने में सक्षम अत्यंत छोटे आकार के माइक्रो इलेक्ट्रानिक्स उपकरण लगाये गये हैं। इस बारे में प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका साइंस रोबोटिक्स में जानकारी प्रकाशित की गयी है।

इस शोध से जुड़े वैज्ञानिक और प्रोफसर रशीद बशीर ने कहा कि जैविक रोबोट को माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ जोड़ना कोई आसान काम नहीं था। इन दोनों के तालमेल की सुविधा कितनी है, उसकी जानकारी अब मिल रही है। उनका मानना है कि अब इस विधि के सफल होने के बाद सिर्फ चिकित्सा में ही नहीं बल्कि सेंसिंग और पर्यावरण संबंधी कार्यों में भी इसका बेहतऱ इस्तेमाल हो सकेगा। प्रोफसर बशीर ग्रेनर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के डीन भी हैं।

शोध दल ने पहले बॉयोबॉट यानी जैविक रोबोट तैयार किये। इन्हें तैयार करने के लिए चूहों के टिश्यू का इस्तेमाल किया गया। चूहों से यह टिश्यू प्राप्त करने के बाद उन्हें थ्री डी प्रिंटर पर तैयार किया गया। इससे उसका पॉलिमर का ढांचा बनाया जा सका।

बता दें कि इसी दल ने वर्ष 2012 में भी चलने वाले जैविक रोबोट तथा वर्ष 2016 में रोशनी से काम करने वाले जैविक रोबोट तैयार किया था। दूसरी तरफ नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफसर जॉन ए रॉजर्स ने इसके लिए माइक्रो उपकरण तैयार किये। बहुत ही छोटे आकार तथा बिना बैटरी के माइक्रो एलईडी को इससे जोड़ा गया।

इस रोशनी की बदौलत बाहर से इन जैविक रोबोटों को नियंत्रित करने वालों को अंदर का हाल जानने में सुविधा होती है। इलेक्ट्रानिक उपकरणों को इनके अंदर डालने के बाद उन्हें बाहर से निर्देशित करना आसान काम हो गया था। इन्हें एक साथ जोड़ने के बाद ही उनका क्रमवार तरीके से परीक्षण किया गया है।

इन जैविक रोबोटों को आसानी से चलने के लिए ही बैटरी और तार हटाये गये हैं। इनके अंदर एक क्वायर है जो ऊर्जा प्रदान करता है और इसमें माइक्रो एलईडी बनाने का काम यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टेन में सहायक प्रोफसर झेंलवेई ली की देखरेख में पूरा किया गया है।

बाहर से निर्देश मिलने पर यह एलईडी काम करने लगते हैं। इस रोशनी के जरिए जैविक रोबोट सक्रिय भी हो जाता है। परीक्षण में देखा गया है कि इस जैविक रोबोट के शरीर के किसी भी हिस्से तक संकेत पहुंचा कर उसे सक्रिय किया जा सकता है। इस कारण जैविक रोबोट को किसी भी दिशा में भेजा जा सकता है।

अब इसका व्यवहारिक परीक्षण करने की तैयारी चल रही है। ताकि इसकी उपयोगिता को साबित किया जा सके। शोध दल को उम्मीद है कि इस विधि से कैंसर की पहचान तथा ईलाज का काम भी ज्यादा बेहतर तरीके से किया जा सकेगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button