अडाणी विवाद पर संसद में नरेंद्र मोदी के आक्रामक भाषण के बाद भी परिस्थितियां भाजपा के अनुकूल जाती नहीं दिख रही है। यह सवाल अब आम बनता जा रहा है कि जब भारत के दूसरे औद्योगिक घरानों और आम आदमी का पैसा इतनी तेजी से नहीं बढ़ा तो आखिर सिर्फ एक औद्योगिक घराने की संपत्ति में इस तरीके से बढ़ोत्तरी कैसे हुई।
नरेंद्र मोदी के भाषण के बाद केरल में राहुल गांधी ने साफ साफ कह दिया कि संसद में अपनी बात रखते हुए नरेंद्र मोदी के हाथ कांप रहे थे और उन्हें बार बार पानी पीते वक्त ऐसा होता हुआ देखा गया है। राहुल गांधी पर लोकसभा के अंदर के बयान के लिए नोटिस जारी किया गया है जो अपने आप में सवालों से घिरा हुआ है।
लोकसभा में राहुल गांधी ने सिर्फ सीधा सवाल पूछा था और अडाणी एवं मोदी के विदेश दौरों पर स्पष्टीकरण मांगा था। अब तक इस बारे में कोई उत्तर नहीं आया है। लगातार हंगामा होने की वजह से सदन को बीच में ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है।
इस विवाद का पटाक्षेप होने की उम्मीद के बीच कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने अडाणी की शेयरों को बतौर जमानत लेने से इंकार कर परेशानी और बढ़ा दी है। नतीजा है कि अडाणी को अब अमेरिका की एक बहुत बड़ी कानूनी कंपनी का सहारा लेना पड़ा है ताकि वह हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का सामना कर सके।
इस विवाद के जारी रहने के बीच ही सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला पहुंच जाने की वजह से सरकार अस्थिर मुद्रा में नजर आने लगी है। पेगासूस की तरह इसे भी राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा कहकर जानकारी देने से इंकार नहीं किया जा सकता।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए एक मजबूत नियामक ढांचे की जरूरत है। अगर केंद्र सहमत होता है तो नियामक सुधारों का सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एक समिति गठित करने के निर्देश की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।
रिपोर्ट के चलते अडानी समूह की कंपनी के शेयर की कीमतें गिर गईं और छोटे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि वास्तव में हमें परेशान करने वाली बात यह है कि हम भारतीय निवेशकों के हितों की रक्षा कैसे करें?
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अदालत ने सेबी का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को संकेत दिया है कि देश के भीतर नियामक तंत्र को विधिवत मजबूत करने के संबंध में इसकी चिंता है ताकि भारतीय निवेशकों को अचानक अस्थिरता से बचाया जा सके जो हाल के सप्ताहों में देखा गया है।
पीठ ने कहा कि सेबी की प्रतिक्रिया में प्रासंगिक कारक शामिल हो सकते हैं और निवेशकों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है। इसने आगे कहा कि यदि केंद्र सुझाव को स्वीकार करने के लिए तैयार है, तो समिति की आवश्यक सिफारिश की जा सकती है और सॉलिसिटर जनरल द्वारा कानूनी और तथ्यात्मक मैट्रिक्स पर एक संक्षिप्त नोट सोमवार तक दाखिल किया जा सकता है।
मेहता ने शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मद्देनजर सेबी ने स्थिति पर बारीकी से नजर रखी है। दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने सोमवार को सुनवाई तय करते हुए सेबी को नियामक व्यवस्था और हिंडनबर्ग रिपोर्ट विवाद के मद्देनजर उठाए गए कदमों पर जवाब देने को कहा।
हिंडनबर्ग विवाद के संबंध में अधिवक्ता विशाल तिवारी और एमएल शर्मा ने दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। यानी याचिकाओं पर सुनवाई होने की वजह से अब केंद्र सरकार ने परोक्ष तौर पर यह स्वीकार कर लिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशित किसी जांच समिति का स्वागत करेगी। इससे पहले संसद में संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग पर ही हंगामा हो रहा था।
यह एक ऐसा मुद्दा है जो फिलवक्त को भाजपा के गले की हड्डी बनता हुआ दिख रहा है। दरअसल आम आदमी जब कोरोना के बाद बिगड़े आर्थिक हालातों से जूझ रहा है, एक व्यक्ति के धन का ईजाफा एक स्वाभाविक प्रश्नचिह्न बनकर उभरा है।
भाजपा के लिए चिंता का विषय यह है कि इससे जुड़े नये नये तथ्य लगातार सामने आते जा रहे हैं, जिसमें मॉरिशस की छह कंपनियों से भारत आने वाले 42 हजार करोड़ का मामला भी है। इसलिए लोकसभा चुनाव के करीब आने के दौर में यह एक ऐसा मुद्दा है जो भाजपा को परेशान कर सकता है। चुनावी राजनीति में ऐसे मुद्दे क्या गुल खिला सकते हैं, यह तो देश ने बोफोर्स तोप सौदे के मामले में देखा है।