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ह्वेल और शार्क समुद्र में दूरी तक जाते हैं
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साइबेरिया के पक्षी भारतीय इलाके में आते हैं
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दूसरे इलाकों में जाने का मिला जुला परिणाम आया
राष्ट्रीय खबर
रांचीः समुद्र के कई प्राणी और अत्यंत ठंढे प्रदेशों में रहने वाले पक्षियों का हजारों मील का सफर पूर्व से ही जानकारी में है। समुद्र के कई जानवर मौसम के हिसाब से आचरण करते हैं। दूसरी तरफ प्रवासी पक्षियों के भी मौसम के हिसाब से आने जाने का क्रम शायद लाखों वर्षों से चला आ रहा है।
कई बार प्राकृतिक दुर्योग मसलन आंधी तूफान या ज्वालामुखी के प्रभाव से इनकी यात्रा प्रभावित होती है। लेकिन परीक्षण में यह पाया गया है कि इस यात्रा में इन प्राकृतिक कारणों से भटकाव मामूली होता है और सफर पर निकला झूंड जल्द ही अपनी गलतियों को सुधारता हुआ सही रास्ते को पकड़ लेता है।
इस स्थिति के बीच कई बार समुद्री जीवों से लेकर प्रवासी पक्षियों का अप्रत्याशित इलाकों में पाया जाना, एक सवाल बना हुआ है। इसी वजह से पर्यावरण वैज्ञानिक यह सवाल खुद से ही कर रहे हैं कि क्या किसी बाहरी शक्ति के प्रभाव से धरती के चुंबकीय गुण बदल रहे हैं।
दरअसल इन पशु पक्षियों के अपने रास्ते से भटक कर कई हजार मील दूर चले जाने की कई घटनाएं हाल के दिनों में प्रकाश में आयी हैं। इंग्लैंड के इलाके में एक पैंग्विन भटककर आ गया था। इस इलाके में उत्तरी ध्रुव का पैंग्विन कैसे पहुंचा यह स्पष्ट नहीं हो पाया है।
दूसरी तरफ दुनिया के कई समुद्री इलाकों में नयी प्रजाति के ह्वेल और शार्क नजर आये हैं। इस पर पर्यावरण वैज्ञानिकों का ध्यान इसलिए गया है क्योंकि प्राकृतिक तौर पर वे संबंधित इलाकों तक नहीं आया करते थे।
ठीक इसी तरह साइबेरिया के जो पक्षी कड़ाके की ठंड में भारतीय इलाके में आते हैं, उन्हें चीन के अलावा थाईलैंड और अफ्रीकी देशों तक चले गये हैं। इसलिए यह सवाल अब प्रासंगिक होता जा रहा है। इस बारे में शोध कर्ता हाल के दिनों में सूर्य से निकली सौर आंधियों के साथ इसका रिश्ता भी तलाश रहे हैं।
यह पहले से पता है कि जब कोई बड़े आकार की सौर आंधी पृथ्वी के वायुमंडल के आ टकराती है तो बिजली की आपूर्ति पर इसका असर पड़ता है। इसकी वजह से पृथ्वी का चुंबकीय गुण भी अस्थायी तौर पर प्रभावित होता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका साइंस रिपोर्टस में अमेरिकी शोध दल ने इस पर अपना पेपर प्रस्तुत किया है।
जिसमे कहा गया है कि प्रवास के लिए पक्षी इससे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। कई बार इस गलती की वजह से उस पूरे झूंड का या तो सफाया हो जाता है अथवा नये इलाके में वे शिकारियों के हत्थे चढ़ जाते हैं।
अमेरिकी रिपोर्ट में वहां पक्षियों की आबादी तेजी से कम होने की चर्चा की गयी है। दूसरी तरफ चुंबकीय गुणों अथवा तरंगों का क्या प्रभाव पक्षियों पर पड़ता है, यह तो हम पूरे भारतवर्ष में गौरेयों को देखकर समझ सकते हैं। जिन इलाको में मोबाइल टावर लगाये गये हैं, वहां अब गौरेया नजर ही नहीं आते हैं।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने वहां के स्थानीय पक्षियों के ऊपर अपना यह शोध किया है। उनका मानना है कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की गड़बड़ी की वजह स ऐसे प्रवासी पक्षी भी रास्ता भटक जाते हैं। कुछ ऐसा ही समुद्र में प्रवास पर निकलने वाले पशुओं के साथ भी होता है।
कोरोना काल के दौरान अलास्का के इलाके से सॉलमन मछलियां ही गायब हो गयी थी, जिसके असली कारण का पता नहीं चल पाया था। शोध में इस दल को मिला जुला परिणाम मिला है। कुछ मामलों में प्रवासी पर निकला पूरा झूंड ही गलत जगह पर जाने की वजह से समाप्त हो गया।
दूसरी तरफ ऐसे झूंड भी मिले जो दूसरे इलाके में जाने के बाद वहां बस गये क्योंकि वहां का माहौल उन्हें अपने पुराने इलाके से ज्यादा पसंद आया। पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिण ध्रुव को अनेक पक्षी अपनी आंखों में मौजूद खास गुण की वजह से समझ पाते हैं। इसे यूसीएलए ने स्पष्ट किया है। जब कभी इसमें कोई गड़बड़ी होती है तो ऐसे पक्षियों को भी गलत दिशा में जाने का संकेत मिल जाता है। इसी वजह से यह गड़बड़ी सामने आ रही है।