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चूहे के आंतरिक अंगों का बदलाव देखा गया
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उल्टे परीक्षण में जवान चूहा बूढ़ा हो गया
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इंसानों पर आजमाने में अभी समय लगेगा
राष्ट्रीय खबर
रांचीः इंसान उम्र को पछाड़ने की जद्दोजहद में काफी लंबे अरसे से उलझा हुआ है। इसकी दूसरी चाह मौत के पहले तक पूरी तरह सक्रिय और जवान बने रहना भी है। वैज्ञानिक परीक्षण में यह पहले ही साबित हो चुका है कि इंसानी शरीर का गठन की अमर होने लायक नहीं है। इसलिए उसे कभी न कभी तो मरना है।
इसलिए लोग उम्र के बोझ तले दबकर मरने से बेहतर मानते हैं कि सक्रिय जीवन जीते हुए उनकी मौत हो जाए। इस दिशा में काफी पहले से अनुसंधान चल रहा था। अब चूहों पर इसका परीक्षण सफल होने का दावा किया गया है। बोस्टन लैब में एक बुजुर्ग और अंधे चूहे पर जब इसे आजमाया गया तो शोध दल ने पाया कि यह चूहा फिर से स्वस्थ हो गया है। उसकी देखने की शक्ति लौट गयी थी और उसका दिमाग भी जवान हो गया था। इन बदलावों की वजह से उसकी मांसपेशियां औ किडनी का टिश्यू भी किसी जवान चूहे के जैसा हो गया था।
इससे पता चल गया कि जेनेटिक स्तर पर अब उम्र के प्रभाव को पीछे धकेला जा सकता है। दूसरी तरफ इस परीक्षण के दूसरे पहलु की भी जांच की गयी। इसमें एक जवान चूहे को उल्टी दिशा के प्रयोग में शामिल किया गया। इससे पता चला कि वह उम्र के पहले ही बूढ़ा हो गया है तथा उसके शरीर की सारी मांसपेशियां किसी बूढ़े चूहे के जैसी हो चुकी हैं। यानी एक परीक्षण से यह साबित हो गया कि इस तकनीक से खास तौर पर चूहों के उम्र के आगे पीछे किया जा सकता है। हावर्ड मेडिकल स्कूल के ब्लावाटनिक इंस्टिट्यूट के प्रोफसर और इस परीक्षण के नेता डेविड सिनक्लेयर ने इस बारे में जानकारी दी है। वह काफी लंबे समय से जेनेटिक बदलाव के जरिए इसे हासिल करने की दिशा में काम करते आ रहे हैं। प्रो. सिनक्लेयर पॉल एफ ग्लेन सेंटर फॉर बॉयोलॉजी से भी जुड़े हुए हैं।
इस शोध से जुड़े शोध छात्र जेई ह्यून यांग ने कहा कि इस एक परीक्षण से यह भी साबित हो गया कि उम्र के प्रभाव के बारे में जेनेटिक स्तर पर पहले जो मान्यता थी, वह पूरी तरह सही नहीं थी। हर शरीर अपनी जवानी की तमाम सूचनाओं को जेनेटिक स्तर पर संजोकर रखता है। इसके जरिए ङी उम्र को आगे पीछे किया जा सकता है। इसके जरिए अब इंसानों के उम्र जनित बीमारियों का ईलाज भी संभव होने की उम्मीद की जा रही है।
इस प्रक्रिया को कंप्यूटर की भाषा में समझाते हुए कहा गया है कि शरीर के अंदर मौजूद डीएनए को कंप्यूटर का हार्डवेयर समझा जा सकता है।इसके साथ जिनोम के साफ्टवेयर मिलकर ही काम करते हैं। दोनों के बीच संकेतों के आदान प्रदान से यह पता चलता है कि किसे कब और क्या करना है। इन संकेतों में सुधार की जेनेटिक पद्धति ही उम्र की गाड़ी को आगे पीछे कर सकता है। कई बार खास डीएन की श्रृंखला के टूट जाने अथवा क्षतिग्रस्त होने पर उम्र जनित बीमारियों होती हैं। अब इस विधि से उन्हें ठीक किया जा सकता है।
शरीर मे मौजूद सेलों को मिलने वाले संकेतों को यदि बदल दिया जाए तो यह प्रक्रिया बदल जाती है। इस काम को करने के लिए सिनक्लेयर की प्रयोगशाला के जेनेटिक वैज्ञानिक युआनचेंग लू ने एक सेल तैयार किया, जो आचरण में प्लूरिपोटेंट सेल की तरह काम करता है। यह शरीर के किसी भी सेल के साथ घुल मिल जाता है।
इसे तीन या चार किस्म के बदलावों से एक मिश्रण जैसा बनाया गया है। इसे जब आंख के सेलों में प्रवेश कराया गया तो उसने आंख के अंदर की अंधेपन को दूर कर चूहे को फिर से देखने की शक्ति दी। इससे पता चल गया कि तीन जिनों को सक्रिय होने का आदेश देकर यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। जिस चूहे को जवान बनाया गया, उसकी उम्र किसी अस्सी साल के इंसान जैसी स्थिति की थी। बदलाव के बाद वह पूरी तरह जवान हो गया था। अब वैज्ञानिक परीक्षणों की लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही इंसानों पर इसका परीक्षण प्रारंभ हो पायेगा।