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सूर्य से सबसे करीब थी हमारी धरती दो दिन पहले

  • अब हम फिर सूरज से दूर जाने लगे हैं

  • छह जुलाई को सबसे अधिक दूरी पर होंगे

  • सौर तूफानों का सिलसिला दो वर्षों बाद बढ़ेगा

राष्ट्रीय खबर

रांचीः उत्तर भारत के इलाके मे कड़ाके की ठंड और कोहरे की वजह से अधिकांश लोग इस बात को महसूस ही नहीं कर पाये कि हम एक सौर तूफान के दौर से गुजर गये। यह घटना चार जनवरी की है जब पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य के सबसे करीब थी।

यह संयोग था कि इसी दौरान सूर्य से भीषण लपट निकली। इसे खगोल वैज्ञानिकों ने देखा जबकि आम आदमी की आंखों से इसे देख पाना संभव भी नहीं था। वैज्ञानिक इसे भी अंतरिक्ष अनुसंधान के लिहाज से एक सुखद संयोग मान रहे हैं क्योंकि सूर्य को सबसे करीब से देखने का मौका इनलोगों को धरती पर स्थापित खगोल दूरबीनों से मिला।

वैसे इस सौर तूफान को हल्के किस्म का माना गया है। सूर्य के सबसे करीब होने की यह घटना हर साल ही होती है। इस बार सौर तूफान का निकलना नई बात थी। अब फिर से धरती अपनी धुरी पर आगे बढ़ते हुए सूर्य से दूर जाने लगी है। सूर्य के सबसे करीब की दूरी को वैज्ञानिक परिभाषा में पेरिहिलॉयन कहा जाता है। अब छह जुलाई को पृथ्वी सूर्य से सबसे अधिक दूरी पर होगी।

सौर तूफान का असर भी बिजली आपूर्ति पर मामूली तौर पर पड़ा। इसी घटना की वजह से उत्तरी ध्रुव पर औरा भी दिखे लेकिन आम आदमी की नजरों से यह सब कुछ ओझल रहा। वैसे अनेक वर्षों से सूर्य के इतने करीब आने का यह सिलसिला जाड़ा के मौसम में ही होता है।

इसके जरिए उत्तरी गोलार्ध में ठंड की शुरुआत माना जाता है। दरअसल अपनी धुरी पर घूमती धरती का उत्तरी ध्रुव इस दौरान थोड़ा तिरछा होकर सूर्य से सबसे अधिक दूरी पर होता है। इस वजह से वहां का मौसम और ठंड वाला हो जाता है।

इस बार के घटनाक्रमों की वजह से खगोल वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सूर्य के करीब आने की यह घटना दिन बदल रही है। यह पहले से ही पता था कि प्रति एक सौ वर्षों में यह दो दिन आगे निकल जाती है। वैज्ञानिक गणना के मुताबिक सन 1246 में एक अजीब वाक्या हुआ था जब पेरिहिलॉयन और विंटर सॉल्सटिस एक ही दिन पड़े थे। इसलिए आज से हजारों वर्ष बाद शायद वर्ष 6430 में फिर यह स्थिति मार्च 20 को उत्पन्न होगी।

सूर्य पर लॉकडाउन की स्थिति के बाद भी सौर लपटों का निकलना अजीब है। आम तौर पर इस लॉकडाउन के दौर में सूर्य काफी कम ताप वाला हो जाता है। यह स्थिति एक बार प्रारंभ होने के बाद चालीस वर्षों तक बनी रहती है। वैसे सूर्य के लॉकडाउन का असर पूरी दुनिया पर दिख रहा है।

अनेक ऐसे स्थानों पर भी तापमान रिकार्ड स्तर पर नीचे चला गया है, जहां इसकी उम्मीद नहीं की गयी थी। इस दौरान सूर्य से जो लपटें निकली हुई दिखाई पड़ती हैं वे तस्वीरों में बहुत छोटी है लेकिन धरती से इतनी दूरी पर होने की वजह से वैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसी लपटें सूर्य के ऊपर कई लाख मील तक चली जाती हैं।

इन घटनाओँ के आधार पर नासा का अनुमान है कि सूर्य में इस किस्म का सौर तूफान जुलाई 2025 में आयेगा। यह हाल के दिनों का सबसे बड़ा सौर तूफान पैदा करेगा। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि उसके बाद से सौर तूफान की स्थिति और भयावह होगी और उनके बीच का अंतराल भी अगले ग्यारह वर्षों तक कम होता चला जाएगा।

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