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पानी का स्वाद भी अब पीने लायक नहीं
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इलाके के पर्यावरण के लिए नया खतरा
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अनेक दल जुटे हैं कारण का पता लगाने
राष्ट्रीय खबर
रांचीः अलास्का से प्रवाहित होने वाली अनेक नदियों में यह बदलाव देखकर वहां काम करने वाले वैज्ञानिक हैरान है। इन नदियों में पहली बिल्कुल साफ और स्वच्छ जल प्रवाहित होता था। अब इन सारे नदियों के जल का रंग नारंगी हो गया है। इसके अलावा इन नदियों का जो साफ पानी होता था वह भी अब धुंधला नजर आने लगा है।
ऐसा क्यों हुआ है, इस बारे में अब तक कोई ठोस जानकारी नहीं मिली है। वैसे प्रारंभिक शोध में इस पानी में अब एसिड की मात्रा बहुत अधिक होने का पता चला है। लेकिन इसके आगे की जानकारी नहीं मिल पायी है। वहां शोध के लिए गये अलास्का पैसिफिक यूनिवर्सिटी के प्रोफसर रोमन डायल और उनके छह सहयोगियों को नदियों में पानी लायक साफ पानी ही नहीं मिला। शोध दल ने इस जल का स्वाद भी लिया है। इसके आधार पर वे कह रहे हैं कि इस पानी में किसी खनिज का स्वाद आता है। इसलिए अब आस पास के इलाकों में होने वाले खनन कार्य की तरफ लोगों का ध्यान गया है।
वहां कई दशक से खनन और उद्योग का काम चल रहा है। इससे पहले ऐसी स्थिति कभी नहीं आयी थी। इसलिए अब इस पर गंभीरता से शोध हो रहा है। वहां के नदियों में हुए इस बदलाव की सूचना पर प्रोफसर डायल के साथ अलास्का यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट ऑफ अलास्का के निदेशक पैट्रिक सुलिवैन और आर्महर्स्ट कॉलेज के बेकी हेविट भी इस काम में जुट गये हैं।
यह सभी उस क्षेत्र के जानकार वैज्ञानिक हैं। शोध के प्रारंभिक आंकड़ों के आधार पर प्रोफसर डायल ने कहा कि ऐसा लगता है कि मौं कोई नौसिखुआ हूं जिसे इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। हम सिर्फ यह बता सकते हैं कि इन नदियों का पानी अब पीने लायक नहीं रह गया है। इस बारे में भूविज्ञान के जानकारों ने प्रारंभिक आकलन किया है कि यह किसी खनिज कबाड़ का जलस्रोत में आने का नतीजा हो सकता है। लेकिन अगर ऐसा है भी तो वह कहां पर हो रहा है, इसका पता भी नहीं चल पाया है।
इन तमाम जलस्रोतों का प्रवाह अनेक इलाकों से गुजरता है। इनमें से आर्कटिक नेशनल पार्क, कोबुक वैली नेशनल पार्क, सेलाविक वाइल्डलाइफ रिफ्यूज जैसे संरक्षित इलाके भी हैं। ये सभी आबादी से दूर हैं। जंगली इलाकों से होते हुए यह सारे जलप्रवाह किसी स्थान पर इस तरीके से प्रदूषित हो रहे हैं, उसके लिए पूरे इलाके की छानबीन जरूरी है।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह दरअसल किसी खास किस्म के पत्थरों के संपर्क में आने का परिणाम है ना ही किसी खनिज कबाड़ के नदियों में मिलने का। वैसे कई इलाकों में पुराने बर्फ के गलने को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। प्राचीन बर्फ, जिन्हें परमाफ्रास्ट कहा जाता है, अपने साथ अनेक किस्म के खनिज और खासकर लोहा को शामिल किये रहते हैं।
उनके पिघलने की वजह से इस जल में ऐसा स्वाद परिवर्तन हो सकता है। लेकिन रंग नारंगी क्यों हैं, इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पायी है। शायद इस पानी में एसिड की मात्रा अधिक होने की वजह से प्राकृतिक तौर पर यह रंग परिवर्तन हो रहा है।
यह चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि वहां के नदियों के प्रदूषण से इंसान के साथ साथ अनेक प्रजातियों का जीवन जुड़ा हुआ है। इसकी वजह से इन नदियों पर आधारित फुड चेन भी पूरी तरह नष्ट हो सकता है। इसलिए असली कारण को खोजकर उसका निदान करना आवश्यक हो गया है।