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नईदिल्लीः विधि आयोग ने फिर से देश के सारे चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की तैयारियां की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थक काफी दिनों से इसके लिए माहौल बना रहे हैं। उनलोगों का तर्क है कि लोकसभा और देश के सारे विधानसभाओँ का चुनाव एक साथ संपन्न कराने पर खर्च कम होगा।
इस बारे में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने वर्ष 2019 में एक सर्वदलीय बैठक भी बुलायी थी लेकिन कई प्रमुख दलों ने इस बैठक में भाग ही नहीं लिया था। इससे पहले ही वर्ष 2018 में विधि आयोग ने इसकी सिफारिश की थी और सभी राजनीतिक दलों से अपना पक्ष रखने को कहा था। उसके बाद से विधि आयोग के सारे पद ही रिक्त पड़े हुए थे।
अब नये सिरे से विधि आयोग का गठन होने के बाद फिर से यही प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है। दरअसल पिछले माह ही मोदी सरकार ने कर्नाटक के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ऋतु राज अवस्थि को विधि आयोग का अध्यक्ष बनाया था। उसके बाद आयोग के पांच अन्य सदस्यों को भी मनोनित किया गया।
आयोग में नये सदस्यों के आने के बाद 29 नवंबर को इस आयोग की बैठक में फिर से यह प्रस्ताव लाया गया। आयोग ने इससे जुड़े छह मुद्दो पर संबंधित पक्षों से अपनी राय रखने को कहा था। अभी कई बार त्रिशंकु विधानसभा अथवा लोकसभा की स्थिति में दोबारा चुनाव कराने की आवश्यकता पड़ती है।
इस समस्या से बचने के लिए सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री अथवा राज्य के मुख्यमंत्री का चुनाव कराने पर भी आयोग ने राय मांगी है। अगर ऐसा होता है तो संविधान की दसवीं अनुसूची में फिर से संशोधन करने की आवश्यकता होगी क्योंकि वर्तमान संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है। अभी लोकसभा अथवा विधानसभा में अध्यक्ष का चुनाव बहुमत वाले दल की इच्छा पर होता है जबकि संविधान के मुताबिक इसे सर्वसम्मति के आधार पर करने की बात लिखी हुई है।
विधि आयोग की सिफारिश के साथ साथ केंद्रीय विधि मंत्री किरण रिजिजू ने भी कहा है कि सभी चुनाव एक साथ होने पर देश का चुनावी खर्च काफी बच जाएगा। उनकी दलील है कि अलग अलग समय में चुनाव होने की वजह से देश के विकास की गति भी बाधित होती है।
दूसरी तरफ आयोग की सिफारिश जारी होने के बाद विरोधी दलों ने फिर से यह आरोप लगाया है कि दरअसल सत्ता पर कब्जा करने की यह भाजपा की दूसरी चाल है। माकपा ने पहले ही इसका विरोध किया था। अब पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य नीलोत्पल बसु ने कहा है कि एक साथ सभी चुनाव कराने का अर्थ है कि कई विधानसभाओँ की समय सीमा को कम करना पड़ेगा, यह भी संविधान विरोधी कार्य होगा। इसलिए भाजपा की चाल पर विधि आयोग जो काम करना चाहती है वह दरअसल संविधान विरोधी है।