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रिटायरमेंट की सीमा 65 साल करने के प्रस्ताव को संसद की स्थायी समिति का समर्थन

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने फैसला दिया

  • केंद्र में जजों के मुद्दे पर पहले से ही विचार जारी

  • दो फैसलों का पूरे देश पर असर पड़ना तय है

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः उत्तर प्रदेश से शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए खुशखबरी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने लखनऊ विश्वविद्यालय के अध्यापन कर्मचारियों-शिक्षकों के हित में बड़ा फैसला सुनाया है।लखनऊ हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि इन कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 3 साल बढ़ाई जाए।

न्यायमूर्ति ओपी शुक्ला की पीठ ने डॉ प्रेमचंद्र मिश्रा और अन्य की याचिका पर यह आदेश पारित किया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है किलखनऊ विश्वविद्यालय के अध्यापन कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष की जाए। नियमों में आवश्यक बदलाव करने के लिए राज्य सरकार को तीन महीने का समय दिया गया है।

2023 में इस निर्देश के लागू होने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय के अध्यापन कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 3 साल और बढ़ जाएगी। इस अदालती फैसले का राष्ट्रव्यापी प्रभाव पड़ना तय है क्योंकि उच्च न्यायालयों में जजों की सेवानिवृत्ति पर भी संसद की स्थायी समिति ने ऐसा ही विचार व्यक्त किया है। अब दो स्थानों पर इसके लागू होने की स्थिति में देश भर में इसे लागू करना पड़ जाएगा।

इसके आधार पर देश भर में सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा और बढ़ायी जा सकती है। दरअसल संसदीय स्थायी समिति ने इसका समर्थन किया है। प्रस्ताव में सेवानिवृत्ति की आयु को तीन साल और बढ़ाकर 65 साल करने पर विचार किया गया था। दरअसल हाईकोर्ट के कामकाज और न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर लगातार बढ़ रहे दबाव के बीच सुशील कुमार मोदी के अध्यक्षता में कार्मिक लोक शिकायत कानून और न्याय पर संसदीय पैनल न्यायपालिका की बैठक आयोजित की गई थी।

जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता का आवाहन किया गया। इसमें अनुसूचित जाति जनजाति और ओबीसी लोगों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व के मौके देने की बात की गई है। इसके अलावा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु को 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने का भी समर्थन किया गया। अगर ऐसा होता है तो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु के बराबर हो जाएगी।

इस बैठक में न्यायाधीशों द्वारा अपनी संपत्ति घोषित करने की आवश्यकता जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की गई। संसदीय पैनल के सदस्य द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु के बराबर लाने का समर्थन किया गया है।

कहा जा रहा है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष है जबकि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष में सेवानिवृत्त होते ।हैं ऐसे में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भी रिटायरमेंट 62 की जगह 65 वर्ष में किया जाना चाहिए। यूपीए सरकार द्वारा 2010 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु को बढ़ाकर 65 वर्ष करने का प्रस्ताव तैयार किया गया था।

संविधान के 114 वें संशोधन के विधेयक पेश किए गए थे। हालांकि बिल शामिल नहीं होने की वजह से यह फैसला अधर में लटक गया था। हाई कोर्ट के न्‍यायाधीशों की सेवानिवृति की आयु 65 वर्ष करने के लिए साल 2010 में संविधान (114वां संशोधन) विधेयक पेश किया था। हालांकि संसद में उस पर विचार नहीं किया जा सका और 15वीं लोकसभा के विघटन के साथ ही इसकी अवधि समाप्त (लेप्स) हो गई। बता दें कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में सेवानिवृति होते है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं।

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