नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट में एक साथ अनेक याचिकाओं पर विचार चल रहा है। इसमें केंद्र सरकार की तरफ से पहले ही यह दलील दी जा चुकी है कि ऐसा फैसला लेने के पहले भारतीय रिजर्व बैंक तथा अन्य जिम्मेदार लोगों के साथ विचार विमर्श किया गया था। दूसरी तरफ पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदांवरम ने सवाल उठाया है कि कोर्ट ने जिन दस्तावेजों की मांग की थी, वे केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध नहीं कराये गये हैं। उन्होंने कहा है कि दस्तावेजों को पेश नहीं करना ही यह संदेह पैदा करता है कि केंद्र सरकार इस मामले में सच नहीं बता रही है।
यह मुद्दा और भी प्रासंगिक इसलिए भी है क्योंकि इससे पहले ही सूचनाधिकार कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने आरबीआई के निदेशक मंडल की 561 वीं बैठक की कार्यवाही की प्रति हासिल की है। इस कार्यवाही की प्रति में यह पता चलता है कि आरबीआई का निदेशक मंडल इस किस्म के किसी फैसले से अवगत नहीं था। फैसले से सिर्फ छह घंटा पूर्व उन्हें ऐसी जानकारी मिली थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में पांच सौ और एक हजार के नोटों का प्रचलन बंद करने जा रहे हैं। नायक के मुताबिक आरबीआई के निदेशक मंडल के कई सदस्यों ने कहा था कि दरअसल देश का कालाधन नकदी में नहीं है। यह सोना अथवा अचल संपत्तियों में रखी हुई है। इसलिए नोटबंदी से देश को कोई फायदा नहीं होने वाला है।
यह विवाद इसलिए बना हुआ है क्योंकि नोटबंदी का एलान करते वक्त प्रधानमंत्री ने सारा काला धन वापस आने तथा आतंकवादियों की फंडिंग पर रोक लगने की बात कही थी। नोटबंदी समाप्त होने के बाद यह पता चला कि जो भी नोट बाहर थे उनका अधिकांश बैंकों में लौट चुका है और काला धन का पता नहीं चल पाया है। दूसरी तरफ स्विस बैंक से मिली जानकारी के मुताबिक इसके बाद वहां जमा भारतीय निवेशकों को पैसा और बढ़ गया है।
इस वजह से ही नोटबंदी के इस फैसले पर सवाल उठाये गये हैं। इसमें आरोप लगाया गया है कि चंद लोगों को फायदा पहुंचाने के मकसद से पूरे देश की अर्थव्यवस्था को तहत नहस करने का ऐसा गलत फैसला लिया गया था। जिस कारण बैंकों के बाहर कतारों में खड़े सैकड़ों लोगों की जान चली गयी। आरबीआई निदेशक मंडल की बैठक में जाली नोट के बारे में भी टिप्पणी की गयी है, जिसमें यह कहा गया है कि जितनी मात्रा में जाली नोट भारतीय बाजार में हैं, वे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित नहीं कर सकते हैं। अब पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदांवरम ने भी पांच जजों की पीठ के सामने यही मुद्दे रखे हैं।
उन्होंने फिर से दोहराया कि रिजर्व बैंक के निदेशकों अथवा केंद्रीय मंत्रिमंडल को भी इतने बड़े फैसले की जानकारी नहीं थी। इधर एक ऐसी गलती से पूरी देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी। अब उसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति को केंद्र सरकार बचाने के लिए सच नहीं बता रही है। उन्होंने संविधान पीठ को बताया कि संबंधित किसी भी जिम्मेदार अधिकारी अथवा मंत्री को यह पता तक नहीं था कि प्रचलन में रही मुद्रा का 86 प्रतिशत रद्द कर दिया जाएगा। यह रकम पांच सौ और एक हजार रुपये में ही थी।
पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने अपने 12 अक्टूबर के आदेश में इस नोटबंदी से संबंधित फैसले के कुछ खास दस्तावेजों की मांग की थी। अब भी यह दस्तावेज पेश नहीं किये गये हैं। दूसरी तरफ सूचना के अधिकार से यह जानकारी पहले ही बाहर आ चुकी है कि भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशकों की बैठक की कार्यवाही में क्या कुछ हुआ था।
पांच जजों की इस संयुक्त पीठ में न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमणियम और वीभी नागारत्न शामिल हैं। अदालत ने रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार दोनों से ही नोटबंदी के फैसले से संबंधित दस्तावेजों की मांग की थी। जो अब तक अदालत में पेश नहीं किये गये हैं। श्री चिदांवरम ने अदालत का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि इन घटनाओं से यह संदेह और बढ़ता है कि नोटबंदी के गलत फैसले के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को बचाने की साजिश हो रही है। उन्होंने कहा कि यह सामान्य समझदारी के आधार पर उनका आकलन है कि नोटबंदी का फैसला लेने के बाद अगले 26 घंटे में उसे लागू कर दिया गया। इसकी वजह से देश को जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ा है। शाम साढ़े पांच बजे आरबीआई की बैठक हुई और रात को आठ बजे नोटबंदी का एलान बिना किसी तैयारी के कर दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकार की दलील है कि इस नोटबंदी के पहले काफी विचार विमर्श किया गया था लेकिन दस्तावेजों में ऐसे विचार विमर्श की कोई जानकारी ही नहीं मिल रही है। इधर घटनाक्रमों से यह साबित कर दिया है कि आनन फानन में लिये गये इस एक फैसले से भारत को आर्थिक नुकसान पहुंचा है।