गोड्डा सांसद के बड़बोलेपन से नाराज हैं न्यायिक समुदाय
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पहले एजी के पास गयी थी शिकायत
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एटर्नी जनरल ने कोई उत्तर नहीं दिया
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सीजेआई के खिलाफ की थी गंभीर टिप्पणी
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निर्देश दिया कि भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ शीर्ष अदालत और भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना के खिलाफ उनकी टिप्पणी के लिए अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की मांग वाली याचिका को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।
इस मामले का उल्लेख न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष एक वकील ने किया, जिन्होंने अदालत को बताया कि अटॉर्नी जनरल ने दुबे के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने की अनुमति के अनुरोध का जवाब नहीं दिया है। वकील ने कहा, यह टिप्पणी वायरल है।
दुबे ने सीजेआई को गृहयुद्ध के लिए जिम्मेदार बताया है। अटॉर्नी जनरल की ओर से इस पर कोई जवाब नहीं आया है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, इसे अगले सप्ताह सूचीबद्ध करें। इस मामले का उल्लेख सोमवार को भी इसी पीठ के समक्ष किया गया था। हालांकि, पीठ ने तब वकील से एजी के समक्ष मामला बनाने को कहा था।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, एजी के समक्ष मामला बनाएं। वह अनुमति देंगे। न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के अनुसार, कोई भी निजी व्यक्ति अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की सहमति प्राप्त करने के बाद ही सर्वोच्च न्यायालय में न्यायालय की अवमानना याचिका दायर कर सकता है।
दुबे ने पिछले सप्ताह के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि सीजेआई खन्ना देश में सभी गृहयुद्धों के लिए जिम्मेदार हैं। उनकी टिप्पणियों के बाद, कुछ वकीलों ने एजी को पत्र लिखकर न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत दुबे के खिलाफ न्यायालय की अवमानना याचिका दायर करने की अनुमति मांगी थी। दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इसे निजी विचार कहकर पार्टी से इसका पीछा छुड़ा लिया है।
दुबे की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब भाजपा से जुड़े नेताओं ने न्यायपालिका, विशेष रूप से शीर्ष अदालत के खिलाफ कार्यकारी निर्णय लेने और न्यायिक आदेशों के माध्यम से कानून लिखने के आरोप में मोर्चा खोल दिया है।
दुबे ने शीर्ष अदालत द्वारा वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं में हस्तक्षेप करने के तुरंत बाद सीजेआई पर निशाना साधा था, जिसके कारण सरकार ने विवादास्पद कानून के कुछ प्रावधानों को लागू नहीं करने पर सहमति जताई थी।
इससे पहले उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि देश में न्यायाधीशों की कोई जवाबदेही नहीं है और देश का कानून उन पर लागू नहीं होता। धनखड़ ने राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में राज्यपाल और भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों की व्याख्या पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के मद्देनजर न्यायपालिका पर कटाक्ष किया था।