शेयर बाजार में पारदर्शिता संबंधी याचिका पर शीर्ष अदालत का फैसला
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प्रशांत भूषण ने मामले की पैरवी की
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विदेशी निवेश से कई खतरों का उल्लेख
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पारदर्शिता के बिना लेनदेन की गड़बड़ी है
नईदिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने भारत के वित्तीय बाजारों में पारदर्शिता की मांग करने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा की जनहित याचिका मंगलवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने भारत के वित्तीय बाजारों में पारदर्शिता और निवेशक जागरूकता के लिए अंतिम लाभार्थी मालिकों (यूबीओ) के विवरण के साथ-साथ वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के पोर्टफोलियो होंिल्डग्स का सार्वजनिक किया जाना अनिवार्य करने की मांग वाली सुश्री मोइत्रा की जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
पीठ ने हालांकि, याचिकाकर्ता से कहा कि वह संबंधित अधिकारियों के समक्ष अभिवेदन कर सकते हैं। पीठ ने मामले का निपटारा करते हुए अभिवेदन करने की स्वतंत्रता दी, जिस पर कानून के अनुसार विचार किया जाएगा। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण इसके लिए सहमत हो गए, लेकिन उन्होंने अदालत से मामले को लंबित रखने को कहा।
केंद्र सरकार की ओर से सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता भी मौजूद थे। शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता ने दावा किया कि भारत के वित्तीय बाजारों में एआईएफ और एफपीआई के तेजी से विस्तार ने पारदर्शिता संबंधी गंभीर चिंताओं को जन्म दिया है।
उनकी याचिका में कहा गया है, म्यूचुअल फंडों के विपरीत (जो कड़े सार्वजनिक प्रकटीकरण मानदंडों के अधीन हैं) एआईएफ और एफपीआई अपारदर्शी संरचनाओं के तहत काम करते हैं, जिससे बाजार में हेरफेर, मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी का जोखिम बढ़ जाता है।
याचिका में बताया कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) (एक वैधानिक निकाय) भारत में प्रतिभूति बाजारों को विनियमित करता है। अपने अधिदेश के हिस्से के रूप में सेबी भारत में वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के संचालन की देखरेख करता है।
भारत में एआईएफ और एफपीआई के विनियमन के लिए सेबी (वैकल्पिक निवेश कोष) विनियम, 2012 और सेबी (विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक) विनियम, 2019 अधिनियमित किए गए हैं। याचिका में दावा किया गया है कि यूबीओ के पूर्ण सार्वजनिक प्रकटीकरण की कमी ईमानदार बाजार सहभागियों और विशेष रूप से खुदरा निवेशकों की अपने व्यवसाय को स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से संचालित करने की क्षमता को बाधित करती है और इसलिए यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) का उल्लंघन है।
याचिका में दावा किया गया है, विदेशी ताकतों या ऐसी संस्थाओं के कारण पूंजी बाजारों में कोई भी अस्थिरता पूरे वित्तीय प्रणाली की अखंडता को कमजोर करेगी। एआईएफ और एफपीआई के संचालन में पारदर्शिता और निगरानी की कमी वित्तीय बाजारों की अखंडता को खतरे में डालती है, जिसका सार्वजनिक कल्याण, निवेश और अर्थव्यवस्था पर और भी बुरा असर पड़ सकता है।