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हां तुम मुझे यूं भूला ना पाओगे

चाहकर भी लोग भूलने नहीं देते हैं। कब्र में पड़े पड़े शायद बोर हो रहे थे, भाईलोगों ने नाम ले लेकर जगा ही दिया। अपने अंतिम मुगल बादशाह औरंगजेब की बात कर रहा हूं। कुछ ऐसा चल पड़ा है मानो कब्र खोद दी तो भारत अगली सुबह ही दुनिया का सबसे अमीर देश बन जाएगा, सारी गरीबी दूर हो जाएगी और हरेक के बैंक खाता में पंद्रह पंद्रह लाख रुपये भी आ जाएंगे।

कमाल है कि लोग सपने से बाहर निकलना भी नहीं चाहते। अरे भाई इस शोर से अगर एक रोटी भी हवा से पैदा हो जाए तो बता देना। अब तक इतने सारे लोग मुफ्त के राशन पर जिंदा हैं और चले हैं कब्र खोदने।

कब्र तो मुंबई में भाई कुणाल कामरा ने खोद ही दिया। जिन बातों को लोग भूलने लगे थे, एक शो ने उन सभी बातों की याद दिला दी और हालत यह है कि नीचे से ऊपर तक पूरी सत्ता ही उसे कोसने में जुट गयी है। पता नहीं इस बीमारी का क्या ईलाज किया जाए। अगर आप सही हैं तो सही बने रहिए, किसी के कहने से आपका ना तो नाम बदलेगा और ना चरित्र ही बदलेगा। फिर परेशानी किस बात की है भइया। क्या एक कॉमेडियन के नाम बिना लिये कुछ कह देने से आपके पुराने घाव हरा हो गये हैं। आखिर इतनी परेशानी किस बात की है।

आगे दिल्ली दरबार पर  नजर दौड़ाते हैं तो फिर से माइक होने की बीमारी का असली राज भी सामने आ ही गया। वहां भी एक दूसरा पलटू राम बैठा है, जो अपनी ही बातों से बार बार मुकर जाता है जबकि इंडिया का मैंगो मैन पुराने और नये वीडियो में उनकी बातों को देख सुनकर हैरान है। क्या आदमी इतनी जल्दी भी गिरगिट से पहले रंग बदल सकता है।

इसी बात पर फिल्म पगला कहीं का, का यह गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था हसरत जयपुरी ने और संगीत में ढाला था शंकर जयकिशन ने। इसे मोहम्मद रफी ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल इस तरह हैं।

तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे

हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे

जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे

संग संग तुम भी गुनगुनाओगे

हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे

हो तुम मुझे यूँ …

वो बहारें वो चांदनी रातें

हमने की थी जो प्यार की बातें

वो बहारें वो चांदनी रातें

हमने की थी जो प्यार की बातें

उन नज़ारों की याद आएगी

जब खयालों में मुझको लाओगे

हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे

हो तुम मुझे यूँ …

मेरे हाथों में तेरा चेहरा था

जैसे कोई गुलाब होता है

मेरे हाथों में तेरा चेहरा था

जैसे कोई गुलाब होता है

और सहारा लिया था बाहों का

वो शाम किस तरह भुलाओगे

हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे

हो तुम मुझे यूँ …

मुझको देखे बिना क़रार ना था

एक ऐसा भी दौर गुज़रा है

मुझको देखे बिना क़रार ना था

एक ऐसा भी दौर गुज़रा है

झूठ मानूँ तो पूछलो दिल से

मैं कहूंगा तो रूठ जाओगे

हाँ तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे

जब कभी भी …

खैर भूला पाओ या ना पाओ, असली बात भी बताना चाहिए कि आखिर परेशानी किस बात की है। इन झगड़ों में लोगों को फिर से उलझाकर आखिर हासिल क्या करना है। कई संशोधन विधेयक भी पारित हो रहे हैं पर कोई यह नहीं बताता कि आम आदमी की जेब पर इसका असर क्या होगा। देश अगर तरक्की कर ही रहा है तो मैंगो मैन की तरक्की क्यों नहीं हो रही है।

आंकड़ों के मकड़जाल में उलझे लोगों की जेब लगातार हल्की क्यों होती जा रही है जबकि कर्जमाफी का कारोबार सिर्फ बड़े लोगों के लिए ही अब भी जारी है। अभिनेत्री प्रीति जिंटा के मामले में इतने दिनों बात यह सच्चाई सामने आ ही गयी, जिसके बारे में खुद अभिनेत्री ने पहले बड़ी जोर से कहा था कि उन्होंने पूरा कर्ज अदा कर दिया है। फिर यह कर्जमाफी किसके लिए है, यह आखिर कौन बताएगा। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ऑक्सफोर्ड में भाषण दे आयी तो भाजपा वालों ने यह मांग कर दी कि अब ममता बनर्जी के विदेश दौरे पर प्रतिबंध लगाया जाए।

आखिर हम तरक्की कर भी रहे हैं अथवा दिमागी तौर पर हर रोज पीछे जा रहे हैं, यह सोचने वाली बात है। शायद इसीलिए पुरानी कहावत बनी थी कि पुराना पाप बार बार घूम फिरकर सामने नजर आता रहता है और लोग इसी वजह से परेशान भी होते रहते हैं। मुंबई की माइक (कुणाल कामरा) से लेकर संसद की माइक तक में एक जैसा तेवर ही बताता है कि कुछ लोग सिर्फ बोलते रहना चाहते हैं। उन्हें दूसरे की सुनना पसंद नहीं। मैंगो मैन है कि वह बार बार इन्हीं जख्मों को कुरेद देता है।

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