राजलक्ष्मी सहाय की चार पुस्तकों के लोकार्पण पर संबोधन
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एक साथ चार पुस्तकों का विमोचन हुआ
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देश की मिट्टी से जुड़ी हैं ऐसी रचनाएं
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भविष्य में इनपर रिसर्च भी होंगे
राष्ट्रीय खबर
रांचीः यदि वाकई सही अर्थों में देश को प्रगति करना है तो हर नागरिक को अपनी संस्कृति के साथ साथ मूल्यों को भी कायम रखना होगा। बाहरी दुनिया से खुद को काटकर सिर्फ परिश्रम कर चीन ने ऐसा कर दिखाया है। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने आज यह बातें कही। वह रांची विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के सभागार में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। यह समारोह राजलक्ष्मी सहाय द्वारा लिखित चार पुस्तकों पर आधारित था, जो मूल रूप से इसी भारतीय संस्कृति, सोच और देशभक्ति की भावनाओं से सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं।
श्री हरिवंश ने दुनिया के अनेक विद्वानों का उल्लेख करते हुए कहा कि आज भी तमाम किस्म की चुनौतियों के बीच भारत के टिके रहने की असली वजह उसकी सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक मूल्य ही हैं। वरना रोम,ग्रीक और अनेक अन्य शक्तिशाली साम्राज्य इनकी कमी की वजह से इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गये।
उन्होंने कहा 1990 के पहले तक पड़ोसी देश चीन की स्थिति भारत के आस पास ही थी। लेकिन पूरी दुनिया से खुद को काटकर इस देश ने खुद को परिश्रम के लिए तैयार किया और नतीजा है कि वह दुनिया का महाशक्ति बन चुका है। भारत को भी अगर तरक्की करना है तो हमें अपने सामाजिक मूल्यों के आधार पर आगे बढ़ना होगा। सिर्फ पश्चिम के अंधानुकरण से यह लक्ष्य कभी हासिल नहीं हो पायेगा।
समारोह में अपनी बात रखते हुए लेखिका राजलक्ष्मी सहाय ने अपने लेखक के इतिहास का वर्णन किया और कहा कि यह हरिवंश जी ही थे, जिन्होंने पहली बार उन्हें छापा था और किसी भी अखबार के पहले पन्ने पर किसी कहानी का छपना एक अस्वाभाविक बात थी। जब यह कहानी छपी तो उसी वक्त एक अखिल भारतीय हिंदी लेखन प्रतियोगिता में उनके स्कूल (जिसमें वह पढ़ाती थी) की तरफ से इसी कहानी को भेज दिया।
इस कहानी को पुरस्कार भी मिला पर कुछ समय बाद उनकी एक पूर्व सहयोगी ने ऊटी से फोन पर बताया कि उनकी यही कहानी वहां के किसी स्कूल के पाठ्यपुस्तक में शामिल की गयी है। उसके बाद से लिखने का जो क्रम चला वह निरंतर जारी रहा। उन्होंने साफ किया कि अपनी आंखों से देखने वाली घटनाओं को उन्होंने अपने दिल में जिस तरीके से महसूस किया है, उन्हें ही कहानी के तौर पर लिखा है।
इस मौके पर पत्रकार अनुज सिन्हा ने लिखने और अपनी संवेदना को स्थायी स्वरुप प्रदान करने के लेखिका के प्रयासों की सराहना की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति तपन शांडिल्य ने इस किस्म की रचनाओं के लिए लेखिका को साधुवाद दिया। रांची विश्वविद्यालय के कुलपति अजीत सिन्हा ने अपनी बात रखते हुए इन पुस्तकों को विश्वविद्यालय में स्थान देने के साथ साथ उनकी एक रचना प्रेमचंद से आगे पर भविष्य में रिसर्च होने की बात कही।
समारोह में मौजूद पूर्व डीजीपी नीरज सिन्हा ने भारतीय दर्शन और धार्मिक अवधारणा से इन रचनाओं को जोड़ा और भावी समाज के पथप्रदर्शक के तौर पर ऐसी रचनाओं की सराहना की। इस कार्यक्रम का संचालन प्रोफसर विनय भारत ने और धन्यवाद ज्ञापन प्रोफसर प्रकाश सहाय ने किया।