सपना वह भी अपने फायदे की हो तो देखना हर किसी को अच्छा ही लगता है। लेकिन आज के दौर में लोग यही सपना जागते हुए भी देखने लगे हैं। फेसबुक पर कितने लाइक मिले, इसे सोचकर खुश होना भी जागकर सपना देखने जैसा ही है। दूसरी तरफ आलू से सोना निकलेगा वाला सपना काफी दिनों के बाद लोगों की समझ में आया वरना लोग तो कुछ और ही मानकर चल रहे थे।
गनीमत है कि हर बैंक खाता में पंद्रह लाख का सपना अब वाकई जुमला साबित हो गया है वरना मेरे जैसे अब तक आस लगाकर बैठे होते। बेचारे बाबा रामदेव भी अब माहौल को भांपते हुए ऐसी बातें नहीं कहते हैं। वरना उन्हें भी पता है कि ज्यादा बोल गये तो पतंजलि के दरवाजे पर ईडी की दस्तक होगी और बाबाजी को जेल जाना पड़ जाएगा।
इसी किस्म का सपना अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता का भी है। लोग को यह नई तकनीक भी सपना ही दिखाती है। लोगों को यह गलतफहमी है कि यह अपने कंप्यूटर ज्ञान के आधार पर सब कुछ सही बताती है। भाई साहब इस सपने से भी बाहर आ जाइए। चीन के नये डीपसीक ए आई मॉडल की जांच से साफ हो गया है कि वह सिर्फ अपने फायदे की बात करती है।
लिहाजा इस सपने को वास्तविक समझना अपने आप को धोखा देना ही है। आज कल इसी ए आई वाले वीडियो से भी काफी कंफ्यूजन फैलता है और कई बार तो लोगों को अपना मौलिक जानकारी पर भी संदेह होने लगता है क्योंकि वे इसके ठीक उलट जानकारी ए आई से पाते हैं। अगर जानकारी नहीं हो तो पता दें कि हाल के दिनों में अपने देश में सिर्फ गूगल मैप पर भरोसा कर कई लोग जान गंवा चुके हैं या नाले में गिर चुके हैं।
कंप्यूटर आधारित ज्ञान पर बहुत अधिक भरोसा करने का यह खतरा छोटा है लेकिन कारगिल युद्ध के दौरान गलत जीपीएस आंकड़ों ने भारतीय सेना को भी भ्रमित करने का काम किया था। गनीमत था कि सेना के लोगों को अपनी आंखों पर ज्यादा भरोसा था। जिससे यह साफ हो गया कि अमेरिका द्वारा नियंत्रित जीपीएस भी भारतीय सेना को गलत जानकारी प्रदान कर रहा है। इसकी वजह पाकिस्तान की मदद करने की थी।
लिहाजा सिर्फ जागते हुए दिखने वाले सपनों पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। इसी बात पर फिल्म झुक गया आसमान का यह गीत याद आ रहा है। इस गीत को लिखा था हसरत जयपुरी ने और संगीत में ढाला था शंकर जयकिशन ने। इसे मोहम्मद रफी ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
कौन है जो सपनों में आया कौन है जो दिल में समाया
लो झुक गया आसमां भी इश्क़ मेरा रंग लाया
ओ प्रिया, ओ प्रिया…
ज़िन्दगी के हर इक मोड़ पे मैं गीत गाता चला जा रहा हूँ
बेखुदी का ये आलम न पूछो मन्ज़िलों से बढ़ा जा रहा हूँ, …
सज गई आज सारी दिशाएं खुल गईं आज जन्नत की राहें
हुस्न जबसे मेरा हो गया है मुझपे पड़ती हैं सबकी निगाहें, …
जिस्म को मौत आती है लेकिन रूह को मौत आती नहीं है
इश्क़ रौशन है रौशन रहेगा रौशनी इसकी जाती नहीं है, …
लिहाजा दूसरों के संसाधनों पर आधारित ए आई अथवा तकनीकी ज्ञान को हम अपने लिए फायदेमंद मान लें, यह भी दिन में सपना देखने जैसा ही है। आखिर करोड़ों या अरबों रुपया खर्च कर कोई भी देश अथवा बहुराष्ट्रीय कंपनी समाज सेवा करने तो नहीं आयी है। उसे तो अपना लाभ कमाना है।
दूसरे शब्दों में जब तक इस किस्म के ज्ञान का सब कुछ अपना नहीं होगा, हम हर सूचना को सही भी नहीं मान सकते। दिक्कत है कि चीनी कंपनियां कलपुर्जा बनाने में भी पेंच फंसाती है और बिना हमारी जानकारी के हमारी सूचनाएं अपने पास हासिल करती है। लिहाजा अगर इस वैज्ञानिक आयाम में बेहतर कुछ करना है तो सबसे पहले ऐसे छोटे कलपुर्जों के निर्माण से ही शुरूआत करनी होगी ताकि कोई भी दूसरा इसमें गलत जानकारी न दे और घर बैठे हमारी सूचनाएं हासिल ना करे।
इस दिशा में कितना काम हो रहा है, यह बताना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन इस दिशा में गैर सरकारी तौर पर कुछ अप्रवासी भारतीय फिनलैंड से आकर यहां कुछ कर रहे हैं, यह कहा जा सकता है। अच्छी बात यह भी है कि यह काम झारखंड से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ भी है। अगर प्रारंभिक प्रयोग सफल रहता है तो हम आने वाले दिनों में दिन में सपना देखने की बीमारी से मुक्त हो जाएंगे, इस बात की गारंटी है।