एक महल पर दोनों तरफ की मोर्चाबंदी से भाजपा की कमजोरी उजागर हो गयी। दरअसल जिस सीएजी रिपोर्ट में दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास का जिक्र भाजपा नेताओं की तरफ से किया गया है, वह रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है।
इससे सवाल यह खड़ा हो गया कि फिर भाजपा नेताओं को इस कथित रिपोर्ट की जानकारी किसने दी। दरअसल इस किस्म का खेल भाजपा ने पहले भी खेला था। इसी वजह से अब आम जनता खेल के नियमों को समझ गयी है।
सीएजी की वेबसाइट पर ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है। अगर ऐसी कोई जांच हुई भी है तो वह रिपोर्ट अब तक दिल्ली विधानसभा तक नहीं पहुंची है। चुनाव के मौके पर भाजपा के इन आरोपों के जबाव में जब केजरीवाल की टीम ने मीडिया को साथ लेकर इसी मुख्यमंत्री आवास का दौरा करने का कार्यक्रम बनाया तो दिल्ली पुलिस ने लोगों को वहां जाने से रोक दिया।
भाजपा के आरोपों में उस कथित शीश महल में सोने का टॉयलेट तक होने की बात कही गयी थी। मीडिया के साथ लोग चले जाते तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका। भाजपा नेता अगर आरोप लगा ही रहे थे तो उन्हें अपनी तरफ से मीडिया को वहां ले जाना चाहिए था ताकि वे अपने आरोपों को प्रमाणित कर सकें। वरना अभी तक तो सरकारी दस्तावेजों में इसके प्रमाण जनता तक नहीं पहुंचे हैं।
दूसरी तरफ दिल्ली मुख्यमंत्री आवास पर जाने से रोके जाने पर आम आदमी पार्टी के लोगों ने प्रधानमंत्री के निर्माणाधीन राजमहल की तरफ कूच करने का फैसला किया तो वहां भी दिल्ली पुलिस आड़े आ गयी। अब सवाल यह है कि शीश महल वनाम राजमहल के इस चुनावी युद्ध में जनता को सच जानने का अधिकार क्यों नहीं है।
दूसरा सवाल यह है कि सीएजी की रिपोर्ट अगर वैसी है तो वह भाजपा नेताओं के पास कैसे पहुंची क्योंकि नियम के मुताबिक यह रिपोर्ट तो सबसे पहले दिल्ली विधानसभा में जानी चाहिए। इससे संदेह पैदा होता है कि महल के नाम पर घनचक्कर चल रहा है और सत्येंद्र जैन को जेल में मिल रही अतिरिक्त सुविधा जैसा आरोप मढ़कर भाजपा वाले चुनाव जीतना चाहते हैं।
आज तक कई ऐसे राजनीतिक आरोपों का सही और संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया। सत्येंद्र जैन के जेल के कमरे की सीसीटीवी फुटेज भाजपा तक कैसे पहुंची, राज्यसभा में अभिषेक मनु सिंघवी की कुर्सी पर पचास हजार का बंडल किसने रखा तथा संसद के मकर द्वार के पास धक्कामुक्की के सीसीटीवी फुटेज का क्या हुआ।
इसी बात पर एक पुरानी फिल्म एक महल हो सपनो का, का यह टाईटल गीत याद आने लगा है।
इस गीत को लिखा था साहिर लुधियानवी ने और संगीत में ढाला था रवि ने। इस गीत को लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
इक महल हो सपनों का
फूलों भरा आँगन हो और साथ हो अपनों का
उड़ते बादल फ़र्श बने और धुँध की हों दीवारें
छत के झिलमिल तारे तेरा मेरा नाम पुकारे
इक महल हो सपनों का …
सपनों के इस महल में बिखरे मुस्कानों के मोति
मेरे प्यार की खुशबू फैले तेरे रूप की ज्योति
इक महल हो सपनों का …
मैं तेरे नयनों पर कर दूँ अपना सब कुछ वारी
मैं तेरी बाहों में चुप कर भूलूँ दुनिया सारी
इक महल हो सपनों का …
महल का यह विवाद इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली की जनसभा में यह कहा है कि वे लोग यानी आम आदमी पार्टी वाले शीश महल बना रहे हैं जबकि मैंने अपने लिए ऐसा कुछ नहीं किया।
कहने का अर्थ तो जनता के पैसे से आप पार्टी की शाहखर्ची से जुड़ा है। लेकिन इसे जनता को अपनी आंखों से देखने और अपने दिमाग से समझने से कौन रोक रहा है।
महल महल के इस खेल के बीच जनता को क्या मिलने वाला है, इस पर अब कोई चर्चा नहीं होती वरना पहले नरेंद्र मोदी खुद भी मुफ्त की रेवड़ी की बात किया करते थे।
अब तो भाजपा भी उसी रास्ते पर चल पड़ी है। फिर भी आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भाजपा शासित राज्यों में मुफ्त बिजली और पानी का जो सवाल खड़ा किया है, वह जनता के जेहन में बैठ चुका है।
आरोप चाहे कुछ भी लगता रहे पर दिल्ली के सरकारी स्कूल और अस्पताल बेहतर हुए हैं, इससे वहां के लोग अब इंकार तो नहीं करते। ऐसे मे महल महल के खेल से भाजपा कितने रन बटोर पायेगी, यह कहना कठिन है। वैसे देश की राजधानी के चुनावी मैदान में कांग्रेस के भी होने की वजह से भाजपा को वोट बंटने का थोड़ा फायदा होगा, यह तय है।